एक बार महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गांव में भ्रमण कर रहे थे। बुद्ध जी को काफी प्यास लगी थी। उन्होंने अपने एक शिष्य को गांव से पानी लाने की आज्ञा दी। जब वह शिष्य गांव के अंदर गया तो उसने देखा कि वहां एक नदी थी जहां बहुत सारे लोग कपड़े धो रहे थे, कुछ लोग नहा रहे थे जिससे नदी का पानी काफी गंदा दिख रहा था।
शिष्य को लगा कि गुरु जी के लिए ऐसा गंदा पानी ले जाना ठीक नहीं होगा। यह सोचकर वह वापस आ गया। महात्मा बुद्ध को बहुत प्यास लगी थी। इसलिए उन्होंने फिर से दूसरे शिष्य को पानी लाने भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य लौटा और पानी ले आया। महात्मा बुद्ध ने शिष्य से पूछा की नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे ले आए। शिष्य बोला कि प्रभु वहां नदी का पानी वास्तव में गंदा था लेकिन लोगों के जाने के बाद मैंने कुछ देर इंतजार किया और कुछ देर बाद मिट्टी नीचे बैठ गई और साफ पानी ऊपर आ गया।
बर्षो पहले पानी की समस्या भी जनसंख्या के हिसाब से नही थी और प्रदूषण भी ना के बराबर था , तब के समय लोगो का जीवन प्रकृति के साथ गहरा जुड़ाव था ।
“रहिमन पानी राखिए, बिना पानी सब सून” रहीम दास जी जल के महत्व को समझाते हुए यह पंक्ति 450 साल पहले कह गए थे। लेकिन क्या आज का मनुष्य इन पंक्तियों के महत्व को समझता है या समझने की जरा सी कोशिश भी कर रहा है? शायद नहीं! नहीं इसलिए, क्योंकि अगर मनुष्य जल के महत्व को समझता तो जल का इस कदर दोहन, बर्बादी ना कर रहा होता।
आज जरूरत है पुरानी परंपराओं और नए विचारों का उपयोग कर, सरल तरीकों से पानी का संरक्षण करना ।
पुरानी परंपराओं का का उपयोग करने से कुदरत से साथ सामंजस्य बना रहता है और नयी तकनीक आज के समय मे महंगा भी है और कभी कभी तो पर इससे प्रदूषण की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है I
साफ पानी की समस्या पूरे विश्व मे है इसका कारण जनसंख्या में तीव्र बढ़ोतरी ,अत्यधिक खफ़त और साथ ही लोगो की कुदरत के प्रति कम जागरूकता है । विकसित देशों में तो प्राथमिकता देने वाले मुद्दे के साथ साथ सरकार काम भी कर रही है पर बहुत से देशों में जल , वायु , खाद्द सुरक्षा आदि मुद्दों पे तो अभी तक प्राथमिकता में ही नही लिया गया है I
हम बात करने जा रहे है भारत के बारे में कि जहां की जनसंख्या की लगभग 70 % आबादी गांव में निवास करती है भारत, जो आबादी की दृष्टि से दुनिया के 17 फीसदी लोगों को अपने में समाए है जबकि कुल जल संसाधनों का महज 4 फीसदी ही उसके पास है। हमारे यहां औसतन हर साल 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर के करीब बारिश होती है। लेकिन एक समस्या यह है कि इसका आधे से कम इस्तेमाल लायक होता है। बाकी हिमालय में बर्फ के रूप में रहता है, या फिर जमीन की गहराई में चला जाता है। दूसरी बात यह है कि हमारी आबादी पिछले 70 वर्षों में 30 करोड़ से बढ़कर 130 करोड़ हो गई है, इसलिए प्रति व्यक्ति का पानी का हिस्सा कम हो गया है। पैमाने के हिसाब से आबादी पानी की कमी का अनुभव तब करती है जब आपूर्ति प्रति व्यक्ति 1000 क्यूबिक मीटर से कम हो जाए। हम जल्द ही यहां तक पहुंच जाएंगे, जबकि कई जिलों में पहले से ही पानी की यह स्थिति बन चुकी है। सच तो यह है कि हमारी बहुत सी समस्याएं जल संसाधनों की बेतरतीब शासन प्रणाली की वजह से ही हैं। और हम यह बदल सकते हैं।
नीति आयोग ने पिछले साल पानी पर जारी रिपोर्ट में कहा था कि देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी और देश की जीडीपी में छह प्रतिशत की कमी देखी जाएगी। देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। करीब 2 लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं।
भारत की मुख्य समस्याओं में आसानी से पानी की उपलब्धता ,पानी का आवागमन , साफ पानी ,और पानी मे प्रदूषण शामिल किया जा सकता है । ये समस्या शहरो और गाँव दोनों में है ,अभी हम बात करते है गांव में पानी की समस्याओं और उनका निदान पारंपरिक विधियो के साथ साथ नई तकनीक का इस्तेमाल करके कैसे पानी की प्रबंधन करना ।
समस्या :
गाँवों में पीने के पानी की समस्या को तीन हिस्सों में देखा जाना चाहिए। एक तो भूजल का गिरता स्तर, दूसरा पीने लायक साफ पानी की आपूर्ति का अभाव और तीसरा, उपलब्ध पानी की गुणवत्ता। ग्रामीण भारत में विद्यमान पेयजल संकट को दूर करने के लिये हमें इन्हीं तीन समस्याओं पर काम करना होगा ।
गांव में पानी का दोहन मुख्यतः कृषि , जानवर को नहलाने , कपड़े धोने ,खाना बनाने में होता है , सबसे अधिक पानी की समस्या कृषि कार्यों के दौरान होती है गांव में ही सबसे ज्यादा पानी बर्बाद भी होता है और साथ मे ही एक उचित जल प्रबंधन ना होने के कारण पानी की बहुत बड़ी मात्रा नालियों , नालो में बहकर प्रदूषित हो जाता है समय के साथ लोगो मे कुदरत के प्रति जागरूकता में भी कमी आयी है इसका मुख्य कारण लोगो की जीवनशैली में परिवर्तन और जीवन जीने के लिए बुनियादी सुविधाएं के लिए संघर्ष करना है।
पहले के लोग तालाब और कुंए बनवाया करते थे और आज लोग इन सभी को भरवा कर मकान बना रहें।
आज के समय मे पानी की गुणवत्ता में सबसे भारी गिरावट आयी है जिसके कारण पानी के अंदर उपस्थित विभिन्न अवयव शरीर के ऑर्गन को नुकसान पहुचाते है और असामयिक मृत्यु की तरफ अग्रसर होते है l
गांव के उपलब्ध पानी मे महत्वपूर्ण अवयवों की कमी की साथ साथ आर्सेनिक की भी सबसे बड़ी समस्या आ चुकी है पिछले साल 25 जुलाई को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने बताया कि बिहार के 22 जिलों के भूगर्भ जल में आर्सेनिक मौजूद है, जबकि 13 जिले फ्लोराइड से प्रभावित हैं। एक अनुमान के मुताबिक आज भी करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल दूषित पानी के इस्तेमाल से बीमार पड़ते हैं, करीब 15 लाख बच्चे दस्त से अकाल मौत मरते हैं और पानी से होने वाली बीमारियों के कारण करीब 7.3 करोड़ कार्य-दिवस बर्बाद हो जाते हैं।
करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड वाले पानी के घातक नतीजों से जूझ रहे हैं, जबकि करीब 1 करोड़ लोग अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के शिकार हैं। कई जगहों पर पानी में लोहे (आयरन) की ज्यादा मात्रा भी बड़ी परेशानी का सबब है।
यदि हम बात करे भूजल संदूषण के बारे में , भूजल संदूषण तब होता है जब पानी में प्रदूषकों की उपस्थिति निर्धारित मात्रा से अधिक होती है या कह सकते हैं कि यह मात्रा पेय जल में निर्धारित प्रदूषकों की मात्रा से अधिक होती है। सामान्य तौर पर पाए जाने वाले संदूषकों में आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आयरन शामिल हैं जो प्रकृति से भूआनुवांशिक होते हैं। अन्य संदूषणों में बैक्टीरिया, फॉस्फेट और भारी धातुएं आती हैं जिनका कारण घरेलू सीवेज, कृषि कार्य और औद्योगिक अपशिष्ट सहित अन्य मानव गतिविधियां हैं। संदूषण के स्रोतों में कचरा भरावों, सैप्टिक टैंकों और लीकेज वाले भूमिगत गैस टैंकों से होने वाला प्रदूषण और उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग शामिल है। इस बात का संकेत मिलता है कि देश के लगभग 60% जिलों में भूमिगत जल को लेकर कोई न कोई समस्या है। या तो जल उपलब्ध नहीं है या उसकी गुणवत्ता में कमी है। कहीं-कहीं ये दोनों समस्याएं एक साथ हैं
पहले फ्लश वाले शौचालय के साथ ही ‘सैप्टिक टैंक’ भी बनते थे, जो आंतरिक प्रक्रिया से स्वयं साफ होते रहते थे; पर सीवर लाइन डलने से यह व्यवस्था केन्द्रित होकर बिगड़ गयी। I
पहले के समय में जिस तरह तालाबों के माध्यम से बारिश के जल को जमीन के अंदर पहुंचाया जाता था वह भी अब आबादी बढ़ने और शहरीकरण के कमजोर कानूनों के कारण खत्म होता जा रहा है l
सीधे सीधे तौर पे गांव में साफ पानी की समस्या एक आम नागरिक के जागरूकता से लेकर सरकार के नियत तक निर्भर करता है ,गांव में लोगो को पानी की उपलब्धता सबसे ज्यादा भूजल से पूरा होता है लोग तब तक वही पानी उपयोग में लाते है जब तक उन्हें किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या न हो जाये अथवा जब तक सरकार दखल न करे । उसका मुख्य कारण लोगो की गरीबी ,आसानी से साफ पानी की अनुपलब्धता , पानी की गुणवत्ता को प्राथमिकता न देना ,सरकारी तंत्र में बेवजह उलझने की रुचि न लेना ,अशिक्षा आदि है ।
समाधान :
भारत में मुख्य रूप से पानी का महत्व नहीं है। “लोगों को लगता है कि यह मुफ़्त है”।भारत की पानी की समस्याओं को मौजूदा ज्ञान, तकनीक और उपलब्ध धन से हल किया जा सकता है। भारत की जल स्थापना को स्वीकार करना होगा कि अब तक की गई रणनीति ने काम नहीं किया है।
ग्रामीण भारत में विद्यमान पेयजल संकट को दूर करने के लिये हमें उन्हीं तीन समस्याओं पर काम करना होगा, जिनकी पहचान हमने ऊपर के हिस्से में की है। भूजल के गिरते स्तर को रोककर उसे बढ़ाने का उपाय करना, उपलब्ध पानी को रिहायशी इलाकों के अंदर हैण्डपम्प या पाइप के जरिए ऐसी जगहों पर पहुँचाना, जहाँ से लोगों को 24 घंटे आसानी से पानी मिल सके और ऐसी जगहों पर जहाँ भूजल में रासायनिक संक्रमण है, या पानी खारा है, वहाँ उसका उपचार (ट्रीट) कर पाइप के जरिए घरों में पहुँचाने की व्यवस्था करना। इन तीनों बिंदुओं पर एक साथ प्रभावी तरीके से काम कर रही ग्रामीण भारत की प्यास को खत्म किया जा सकता है और करीब 70 प्रतिशत जनता को कई बीमारियों और अकाल मौतों से बचाया जा सकता है।
भूजलस्तर बढ़ाने के लिये एकमात्र तरीका वर्षा के जल का संरक्षण है। भूजलस्तर ठीक करने का तरीका तालाबों की खुदाई भी अति आवश्यक है । गावों के बाहर बड़े तालाब बनवाकर अगर उसी पानी को एकत्रित कर लिया जाये तो उससे भूजल स्तर सुधारने में काफी मदद तो मिलेगी ही साथ में उस पानी को सिंचाई में भी प्रयोग कर सकेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या का जो दूसरा रूप आपूर्ति के रूप में है, उसका समाधान सामाजिक भागीदारी के साथ किया जाना चाहिए। तीसरी समस्या, यानी ग्रामीण इलाकों में गुणवत्तायुक्त पानी की आपूर्ति करना सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत होती है। यहाँ सरकार को पीपीपी यानी निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की जरूरत होगी। पानी को आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन जैसे रसायनों से मुक्त कर साफ सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हालाँकि जल परियोजनाओं के लिये जारी होने वाले सरकारी फंड की शर्तों में एक बुनियादी कमी यह है कि वह सबसे कम बोली लगाने वाले के पक्ष में जाता है, न कि सबसे बेहतर गुणवत्ता का पानी उपलब्ध कराने वाले के पक्ष में। इस तरह की विसंगतियों को ठीक कर ग्रामीण इलाकों में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है।
प्राचीन भारत में अच्छी तरह से प्रबंधित कुएँ और नहर प्रणालियाँ,करेज, बावली, वाव आदि थीं। आज हमें स्थानीय स्तर पर स्वदेशी जल संचयन प्रणालियों को पुनर्जीवित और संरक्षित करने की आवश्यकता है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सभी प्रकार के भवनों के लिए वर्षा जल संचयन के गड्ढे खोदना अनिवार्य किया जाना चाहिए।गैर-पीने योग्य पानी को ताजे पानी में परिवर्तित करने में सक्षम प्रौद्योगिकियों, आसन्न जल संकट के संभावित समाधान की पेशकश करने की आवश्यकता है।
जन जागरूकता अभियान, जल संरक्षण के लिए कर प्रोत्साहन और प्रौद्योगिकी इंटरफेस का उपयोग भी पानी की समस्या को दूर करने में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है। जल परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल को अपनाने जैसा एक सहयोगी दृष्टिकोण मदद कर सकता है। जल निकायों के प्रदूषण और भूजल के प्रदूषण को रोकने के लिए निरंतर उपाय किए जाने चाहिए। घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल का उचित उपचार सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।
अंततः पानी के बारे में अमेरिका के एक पर्यावरण एनजीओ सिएरा क्लब के संस्थापक जॉन मुइर के कथन को कहकर विराम देता हूँ ” कि जब हम किसी चीज को दुनिया से अलग करने की कोशिश करते हैं, तो पता चलता है कि वह किसी न किसी रूप में दुनिया की बाकी सभी चीजों से जुड़ा हुआ है। अगर हम पानी की बात करें तो यह भी कुछ ऐसा ही है। जिस भी पानी को हम छूते हैं, जो भी पानी हम उपयोग करते हैं, वह संसार में मौजूद हर तरह के पानी से जुड़ा होता है। चूंकि पानी ग्रह पर खुद को रीसाइकल करता रहता है, इसलिए हम वही पानी पी रहे हैं जो लाखों साल पहले डायनासोर पिया करते थे। पानी न घटता है, न बढ़ता है, बस रूप बदलता रहता है। “
अभी के लिए बस इतना ही ।
बहुत ही ज्यादा उम्दा है आपका ये प्रयास
Thanks frnd
सुंदर लेख
Thanks
काफी अच्छा मुद्दा उठाया है। जल ही जीवन है इसे हमें भाषा में नहीं जीवन में उतारने की जरूरत है।।
काफी अच्छा लिखा है।।।
Thanks
Ek dam asan bhasha,me likha gya hai
Very easy to understand
इतनी ज्यादा प्रॉब्लम थी हमे आज पता चला है
Whole thing is written in truth nd easily everyone can understand it by reading it one time…. 👏👏👏👏👏reallyy superb 👌👌
Bahut sahi baat likha hai aapne 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
A very good initiative madhusudhan bro. I will be happy to participate in this event.
I want to do something for environment.
Any one can understand very easily,,, thanks bro
Wonderful and explained so cogently !
Many have lived without love but none without water. 👌👌👍👍👍
Bhot badiya explanation kiye ho madhu….., Great start…आज बूंद-बूंद नहीं बचायेंगे, तो कल बूंद बूंद को तरस जायेंगे
लोगों को जागरूक करने का एक अच्छा प्रयास । आंकड़ें बहुत अच्छे से पेश किए।। आगे के लिए शुभकामाएं।
बेहतरीन लेख
बेहतरीन लेख
Very good
Good Madhu…Grate work…go ahead….All the best..👍
Nice job bandhu. You are real civil Engineer
On ground level , it is showing real problem .
Very nice
Social work
Nice…