नमस्कार दोस्तों आज हम आप के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं लोकज्ञान के पर्यावरण दर्शन से जुड़ी हुई देशज कहावतें।
आप देखेंगे की इन कहावतों को इस तरह गढ़ा गया है की ये किसी भी आम इंसान को आसानी से समझ आ जाती है और याद हो जाती है। आज जब हमारी पर्यावरण शब्दावली कठिन शब्दों, जारगंस और अंग्रेजी के उल्टे सीधे अनुवादों से भरती जा रही है ऐसे में ये कहावतें हमें एक रास्ता बताती हैं कि पर्यावरण की भाषा कैसी होनी चाहिये।
आइये इस लेख में पढ़ते हैं अकाल और सुकाल से संबन्धित कहावतें। ये कहावतें महाकवि घाघ एवं भड्डरी के द्वारा कही गई हैं।
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठकी, उपजै सातो तुर ॥
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातो प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय ।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाय ॥
यदि शुक्रवार का बादल शनिवार को छाया रहे तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जायेगा।
भादों की छठ चाँदनी, जो अनुराधा होय ।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय ॥
यदि भादों सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़ खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, आद्र रेख जुमवाहि ।
चंदा ऊगै दूजको सुखसे नरा अघाहिं ॥
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय ।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय ॥
यदि पूसकी अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार, बृहस्पतिवार पड़े तो घर पर बधाई बजे कोई दुखी नहीं दिखाई देगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय ।
महँग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय ॥
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र हो तो समझ लेना चाहिये अनाज महँगा होगा और वर्षा अल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अँधियारी। बदली घोर होय अधिकारी ।
सावन बदि दसमी के दिवसे । भरे मेघ चारो दिसि बरसे ॥
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारो दिशाओं में वर्षा होगी।
कहीं कहीं इसे ऐसे भी कहते हैं- “काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरी, पूस अमावस की सुधि करो। “
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज ।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथिके दिना, गुरु होवै सजूत ।
तो भाखै यों भडुरी, उपजै नाज बहूत ॥आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु वरसंत ।
नासैस लच्छन काल का, आनँद मानो संत ॥
आषाढ़ की पूर्णिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।
यदि वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा ।
सावन सुक्ला सप्तमी जो गरजै अधिरात ।
बरसै तो झूरा परै, नाहीं समौ सुकाल ॥
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो सूखा पड़ेगा, न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त विनासै, गली रेवती जलको नासै।
भरनी नासै तृनौ सहूतो, कृतिका बरसै अन्त बहूतो ॥
यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में सूखा पड़ेगा। रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी, भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जायेगी। और कृत्तिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।