भारत में वायु गुणवत्ता का स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभाव -01 : – मधु सूदन यादव

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भौतिकतावाद के इस दौर में आज एक आम व्यक्ति अपने शारीरिक सुखों और विभिन्न प्रकार के शौक को पूरा के लिए इतना आत्मकेंद्रित हो चुका है कि वह अपने आसपास के बिगड़ते वातावरण को लेकर सुप्तावस्था में है। इक्कीसवीं सदी में जिस प्रकार से हम औद्योगिक विकास और भौतिक समृद्धि की ओर बढ़े चले जा रहे हैं,उसका मूल्य हो सकता हो कि आने वाली पीढ़ी चुकायेगी । इस सुख-समृद्धि ने मानव जीवन और पर्यावरण के बीच स्थापित सामंजस्य को भारी नुकसान पहुंचाया है।
फिर एक दिन दिवस मनाया जायेगा ,लेकिन अगले ही दिन सभी स्वार्थहीत में पर्यावरण बचाने के उपायों को भूल जाते हैं। वायु प्रदूषण दुनिया के लिए सबसे बड़ी पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों में से एक हो चुकी है। व‍िश्‍व की करीब 92 फीसदी आबादी दूष‍ित हवा में सांस ले रही है,
लेकिन अभी हम बात करेंगे भारत में वायु प्रदूषण के प्रभाव के बारे में ,तो आपसे हमे यही कहना है यदि आप अपने शहर की हवा में बहने वाले उन छोटे-परेशान प्रदूषकों के लिए नहीं हैं तो आप लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।
भारत में गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, आदि जैसी गंभीर समस्याओं की श्रेणी में वायु प्रदूषण की समस्या भी शामिल हो चुकी है वो बात अलग है समस्या के अनुसार उतना हम अभी जागरूक नही हुये है  
ज़मीनी हक़ीक़त की बात करे तो भारत मे अधिकांश उद्योग पर्यावरणीय दिशानिर्देशों, विनियमों और कानूनों के अनुरूप नहीं हो रहे है इसी कारण पर्यावरण के मामले में भारत दुनिया में सातवां सबसे असुरक्षित देश हो गया है । दुनियाभर में वायु प्रदूषण के सबसे खराब स्तर वाले शहरों की सालाना सूची में भारत के शहर एक बार फिर शीर्ष पर हैं। इस सूची के पहले दस शहरों में से छह और पहले तीस शहरों में कुल इक्कीस शहर भारत के हैं। दक्षिण एशिया (भारत, पाक, बांग्लादेश और नेपाल) को सबसे प्रदूषित क्षेत्र माना गया है। यहां हर साल 15 लाख लोग प्रदूषण की वजह से असमय मौत का शिकार हो रहे हैं।

आज देश की हवा में जहर घुल चुका है और इसे नजरअंदाज भी नही किया जा सकता । आज जब दिल्ली और कई शहरों की हवा में प्रदूषण के स्तर ने विश्व के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए तो इस बात को समझ लेने का समय आ गया है कि यह आज एक समस्या भर नहीं रह गई है।
इससे हर इंसान प्रभावित है, लिहाजा ये जाहिर है कि इसे फॉर ग्रांटेड लेना हमारी बेवकूफी होगी ।
मौजूदा परिदृश्यों को देखते हुये हम तो अभी यही कह सकते है कि वायुमंडल का प्रदूषण कम करने से ज्यादा चिंता भारत मे अभी लोगों के मानसिक प्रदूषण को कम करने की हो रही है. हालांकि भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारी संख्या में कानून, नियम और दिशानिर्देश हैं। समस्या यह है कि ये कहीं भी उतनी सख्ती से नहीं लागू किए गए, जितने की जरूरत थी।
देश में आज वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है लेकिन इसके खिलाफ जंग की शुरुआत भारत में करीब 114 साल पहले शुरू हुई थी। हालांकि यह आज भी किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाई है।
वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंग्रेजों ने पहला कानून 1905 में बनाया .लेकिन स्वतंत्र भारत में अस्सी के दशक में इस खतरे की गंभीरता को महसूस किया गया।
वायु प्रदूषण प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता है- भले ही वह अमीर हो या गरीब, बुजुर्ग हो या युवा, पुरुष हो या महिला, शहरी हो या ग्रामीण। वायु प्रदूषण सिर्फ़ नागरिकों के स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है

भारत देश में सबसे ज्यादा मौतें सड़क हादसों और मलेरिया के कारण होती है। विश्व में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। यदि हम आकड़ो पे नज़र डालें तो स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण से मौत का आंकड़ा स्वास्थ्य संबंधी कारणों से होने वाली मौत को लेकर तीसरा सबसे खतरनाक कारण है।
‘द ग्रेट स्मॉग ऑफ़ इंडिया’ नाम की किताब के लेखकों ने दावा किया है कि आज़ादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध में जितने लोग मारे गए, उनसे कहीं ज़्यादा लोगों की जान एक हफ़्ते में वायु प्रदूषण से चली जाती है आज की स्थिति ये है कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण प्रतिदिन 4500 लोगों की जान चली जाती है ।

कुछ साल पहले जब भारत में हर साल वायु प्रदूषण से 12 लाख लोगों के मरने की बात सामने आयी थी तो केंद्रीय मंत्रियों ने उस पर कोई कदम उठाने की बजाय उसे “हौव्वा” करार दे दिया. ठीक वैसे ही जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जलवायु परिवर्तन की समस्या को भारत और चीन जैसे विकासशील देशों का “हौव्वा” कहते हैं. फिर कभी कभी सरकार इन आकड़ो से विचलित होकर वृक्षारोपण के नाम पर तरह तरह के अभियान चलाने लगती है , लेकिन सरकार को समझना होगा कि वायु प्रदूषण की समस्या को सिर्फ पब्लिसिटी के दम पर नहीं लड़ा जा सकता ।ज़मीन पर ज़रूरी कदम उठाने होंगे ।
आज दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 15 भारत में हैं । राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक जिसे देश के बड़े शहरो के प्रदूषण के रियल टाइम मापन के उद्देश्य से इसे 2015 में लांच किया गया था।
यह आठ प्रदूषणकारी तत्वों – पीएम 10 ,पीएम 2.5 , नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड , ओजोन , अमोनिया , सल्फर डाई ऑक्साइड , कार्बन मोनो ऑक्साइड तथा लेड के आधार पर वायु गुणवत्ता की 6 श्रेणियों में बांटा गया है
अच्छी (0 से 50)
संतोषजनक (51-100)
सामान्य प्रदूषित (101-200)
ख़राब (201-300)
बहुत खराब (301-400)
गंभीर (401-500)
हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 60 और पीएम-10 की मात्रा 100 होने पर इसे सुरक्षित माना जाता है। लेकिन इससे ज्यादा हो तो वह बेहद नुकसानदायक हो जाती है।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 24 घंटे की अवधि में हवा में पीएम 2.5 का घनत्व 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए । भारत में पीएम 2.5 का स्तर तय सीमा से 500 फीसदी अधिक है ।

दिल्ली के डॉक्टर डॉ. अरविंद कुमार बताते है कि
प्रदूषित हवा में वही रसायन होते हैं जो कि एक सिगरेट में होते हैं. अब ये सभी को पता है कि सिगरेट पीने से कैंसर होता है. ऐसे में अगर कोई बच्चा आज के समय में दिल्ली में जन्म लेता है और वह लगातार इसी तरह की हवा में साँस लेता है तो वह 25 साल की उम्र तक 25 साल का स्मोकर हो जाता है. ऐसे में अगर किसी को 25 से 30 की उम्र में फेफड़ों का कैंसर हो रहा है तो इसमें अचंभे की बात नहीं होनी चाहिए ।
वह बताते हैं, “हम इस समय जिस हवा में साँस ले रहे हैं, जिसमें पीएम 2.5 का स्तर 300, 350 और पांच सौ तक जा रहा है. और वायु प्रदूषण का ये स्तर सिर्फ़ दिल्ली नहीं बल्कि उत्तर भारत के अलग-अलग शहरों में भी देखने को मिल रहा है. ऐसे में मैं ये कह सकता हूं कि अगर हवा में पीएम 2.5 का स्तर कम नहीं हुआ तो आने वाले सालों स्थिति भयावह होगी ।
सन 1990 के बाद से चीन में पीएम 2.5 (सूक्ष्म कणों) के प्रदूषण से होने वाली असमय मौतों में 17.22 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि भारत में यह आंकड़ा 48 फीसदी बढ़ गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि ओजोन प्रदूषण की वजह से चीन में होने वाली मौतों की संख्या 1990 के बाद से तकरीबन स्थिर है, लेकिन भारत में 148 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
भारत में वायु प्रदूषण के कारण समय से पूर्व मृत्यु सांस की बीमारियों, हृदय की बीमारियों, हृदयाघात, फेफड़ों के कैंसर और मधुमेह से जुड़ी हैं
यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप पूरे भारत में वायु प्रदूषण के स्तर में कमी लाई जाए तो भारतीयों की उम्र में औसतन 5.2 साल तक की वृद्धि होगी जबकि दिल्ली वालों की उम्र में 9.4 वर्ष की वृद्धि हो सकती है ।
अतः हवा की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को तुरंत प्रभावी कदम उठाने चाहिए। इसके लिए एक राष्ट्रव्यापी रणनीति लागू करने की जरूरत है।
अगले लेख में हम बात करेंगे वायु प्रदूषण के गहरे दुष्प्रभावों के बारे में। अभी के लिये सिर्फ इतना ही।

15 thoughts on “भारत में वायु गुणवत्ता का स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभाव -01 : – मधु सूदन यादव

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक लेखन का परिचय आपने दिया है महाशय।।

  2. आपके ज्ञान की सहरना जितनी ज्यादा कि जाए उतनी कम है इस सुंदर लेख के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है🙏🌄

  3. Thanks for providing such important information. Now a days we have been busy in our professional life, but still now if we will not aware of it, we will pay for this.

  4. बहुत ही उम्दा लिखा है आपने मधुसूदन सर। मै तो फैन हो गई आपकी।

  5. Thanks for letting me know, how serious the air pollution is..
    Like Unsung heroes, this is an unsung problem and an invisible problem

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