सिमलीपाल आग की वजह क्या है -Team Indian Environmentalism

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सिमलीपाल नेशनल पार्क उड़ीसा के मयूरभंज जिले में पड़ता है। यहां पिछले 2 हफ्ते से जंगल की आग लगी हुई है। यह नेशनल पार्क सिमलीपाल जैव मंडल (Biosphere) का एक हिस्सा है। सिमलीपाल जैव मंडल पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है। यह 5569 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह भारत का सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बायो स्पेयर रिजर्व है। इस बायो रिजर्व के अंदर भारत का भारत का सबसे पुराना टाइगर रिजर्व है। यह टाइगर रिजर्व 2750 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। “सिमलीपाल” नाम सिमूल नाम के शिल्क के पौधे के नाम पर रखा गया है। पर्यावरण के जानकार बताते हैं कि यहां पर पेड़ पौधों की सैकड़ों तरह की प्रजातियां हैं जिसमें बहुत सारे औषधीय पेड़ हैं। इसके अलावा इसमें आर्केड हैं और भारी संख्या में जीव जंतु भी मौजूद हैं। इस आग के कारण इन सभी पर खतरा मंडरा रहा है।
वैसे सिमलीपाल के क्षेत्र में हर साल फरवरी में आग की छिटपुट घटनाएं देखी जाती हैं। लेकिन इस साल की लगी हुई आग भयावह है। मयूरभंज जिले की राज परिवार की सदस्य अक्षिता मंजरी भंजदेव ने 1 मार्च को इसके बारे में ट्वीट कर दुनिया को इसकी जानकारी दी थी। उसके बाद जैसे ही यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर आई सरकार और प्रशासन ने आग बुझाने का काम शुरू कर दिया।
कुछ दिनों पहले या खबर आई थी कि आग पर नियंत्रण पा लिया गया है। लेकिन हाल की खबरें बताती हैं कि आग अभी पूरी तरह से बुझी नहीं है।
अगर आग के कारणों की बात करें तो इसके कई सारे कारण हैं। उड़ीसा का जंगल विभाग इसके लिए महुआ चुनने वाले स्थानीय आदिवासी लोगों को दोष देता है।जंगल विभाग का कहना है कि महुआ चुनने के लिए स्थानीय आदिवासी पत्तों में आग लगा देते हैं।
लेकिन सिमलीपाल में लगी आग के बारे में दुनिया को पहली बार बताने वाली अक्षिता धनंजय देव भंजदेव ने अपने ट्विटर पर लिखा है की आग के लिए आदिवासी पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं है। कई बार शिकारी भी जानबूझकर आग लगाते हैं ताकि वन्य जीव जंगल के कोर एरिया से बाहर आ जाए और उनका शिकार किया जा सके। इसके अलावा बीबीसी में छपी एक खबर में उन्होंने बताया है कि इस समस्या के स्थाई हल के लिए स्थानीय आदिवासियों, स्वयंसेवी संगठनों और जंगल विभाग के बीच संबंध में जरूरी है।
खैर इसका कारण चाहे जो भी हो लेकिन इससे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई करना संभव नहीं होगा।

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