भारत में वायु गुणवत्ता का स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभाव -04 : ~मधु सूदन यादव

भारत सरकार ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वायु (प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम) अधिनियम 1981 पारित किया गया था ,केन्द्र में केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड तथा विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रदूषण नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना की गई। लेकिन लोगों में जागरूकता की अभाव और राजनैतिक कारणों से ,ये कानून उतने प्रभावी नही हुये कि हम एक निष्कर्ष पे आ सके । इस ब्लॉग में हम कुछ प्रभावी उपायों पे चर्चा करने की कोशिश करेंगे।

fog, train, lights


शुरुआत करते है देश की राजधानी दिल्ली से जहाँ सर्दी के शुरू होते ही पराली जलाने के कारण ,उसपे एक असफल बहस और प्रयास ,दिल्ली के लोगो का ध्यान केंद्रित करता है ।
पराली के धुएं से हवा दूषित होती है तो सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि एक गरीब किसान जो ज्यादा पढ़ा लिखा भी नहीं होता उससे यह अपेक्षा करना कि वो प्रदूषण के प्रति जागरूक हो जाए और पराली जलाने पर उससे जुर्माना वसूला जाए, ऐसी सोच ही बचकानी है। इसकी बजाय सरकार किसानों को विकल्प सुझाए। उन्हें पराली से छुटकारा पाने के जलाने से बेहतर तरीके बताए। जैसे उसे जैविक खाद में परिवर्तित करने के तरीके बताए। अगर किसानों के पास जगह और समय की समस्या हो,तो सरकार किसानों से पराली खरीद कर जैविक खाद बनाने का संयत्रों को प्रोत्साहित कर सकती है। इस प्रकार जब किसान पराली से कमाएंगे तो जलाएंगे ही क्यों। भारत मे आज के समय मे देश की सड़कों पर हर साल वाहनों की बढ़ती संख्या प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। परिवहन विभाग के नवीनतम डाटा के अनुसार राजधानी दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या एक करोड़ 5 लाख 67 हज़ार 712 हो गई है। आंकड़ों के मुताबिक राजधानी की सड़कों पर हर साल 4 लाख से अधिक नई कारें आ जाती हैं। प्रदूषण में इनका योगदान भी कम नहीं होता। इसके लिए सरकार तत्कालिक उपायों के अलावा दीर्घकालिक उपायों पर भी जोर दे ,जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट की संख्या, सुविधाजनक उपलब्धता और उसकी गुणवत्ता में सुधार करे ताकि लोग उनका अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित हों। निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें क्योंकि सड़क पर जितनी कम गाड़ियाँ रहेंगी उतना कम प्रदूषण भी होगा अपने बच्चों को निजी वाहन से स्कूल छोड़ने की जगह उन्हें स्कूल की बस में जाने के लिए प्रोत्साहित करें। जहाँ तक मुमकिन हो, खुद भी ऑफ़िस जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करे ।


पराली और वाहनों से निकलने वाले धुंए से भी खतरनाक होता है उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण। क्योंकि इनमें ईंधन के रूप में पेट कोक इस्तेमाल होता है जिससे डीज़ल के मुकाबले 65000 गुना अधिक प्रदूषण होता है इसलिए इसे दुनिया का डर्टी फ्यूल यानी सबसे गंदा ईंधन भी कहा जाता है और अमरीका से लेकर चीन तक में प्रतिबंधित है। लेकिन भारत में यह अगस्त 2018 तक ना सिर्फ विश्व के लगभग 45 देशों से आयात होता था, बल्कि इसे टैक्स में छूट के अलावा जीएसटी में रिफंड भी हासिल था। लेकिन अब सरकार जाग गई है और भारत के उद्योगों में ईंधन के रूप में इसके उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब यह आवश्यक है कि इस आदेश का पालन कढ़ाई से हो और उद्योगों में इसका उपयोग पूर्ण रूप से बंद होI हमारी दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली उत्पन्न करने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है और इससे निकलने वाला धुआँ  हमारे वातावरण के लिए बेहद खतरनाक होता है। इस तरह के प्रदूषण से बचने के लिए आपको सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे आपके पैसे भी बचेंगे और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होगा।


घरों में सोलर पैनल लगवाने के साथ–साथ आप सौर  ऊर्जा पर चलने वाले वाहनों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं जिसमे डीज़ल या पेट्रोल की भी ज़रूरत नहीं होती है सौर ऊर्जा पर चलने वाले वाहनों से दूषित गैस उत्सर्जन की भी समस्या नहीं होती है और पर्यावरण के लिए  साईकिल के बाद सोलर वाहन ही सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साधन व आम जीवन की सुविधाएँ बढ़ाई जाएँ जिससे ग्रामीणों का रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन रोका जा सके।
शहरी क्षेत्रों में सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए कि कर्मचारी घर पर ही बैठकर काम करें। एक सप्ताह में सिर्फ एक दिन ही कार्यालय जायें और अब सूचना तकनीक के आ जाने से यह सम्भव भी है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका के कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाले 35% लोग सप्ताह में केवल एक दिन कार्यालय जाते हैं। बाकी काम घर पर बैठकर करते हैं। जिससे उनका आने-जाने का खर्च भी नहीं होता और वायु में प्रदूषण भी नहीं बढ़ता। आने जाने में जो वक्त लगता है उसका इस्तेमाल वे लोग दूसरे कामों में करते हैं। जैसे- बागवानी।
वायु को सर्वाधिक प्रदूषित करने वाले पेट्रोलियम पदार्थों के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश की जानी चाहिए। आयातित वस्तुओं में हम सबसे अधिक खर्च पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर करते हैं। हमारी जरूरत का लगभग 70 प्रतिशत पेट्रोलियम तेल आयातित है। इससे विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी इसके लिये तिलहन वृक्षों से प्राप्त होने वाले बीज के तेलों को पेट्रोलियम उत्पादों के स्थान पर उपयोग में लाया जा सकता है, इनमें नीम, तुंग, करंज व जेट्रोफा (रतन ज्योत) इत्यादि से प्राप्त होने वाले तेलों को बायो-डीजल के रूप में उपयोग में लाने की प्रबल व अपार सम्भावनाएँ हैं। वाहनों में 5 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए। इथेनॉल पर्यावरण हितैशी ज्वलनशील ईंधन है। यह पेट्रोल के अन्तर्दहन को बढ़ाता है जिसके परिणामस्वरूप कम-से-कम प्रदूषित गैसें वातावरण में विसर्जित होती हैं। इसे इंजन की बनावट में बिना कोई परिवर्तन किये प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा सीएनजी के प्रयोग से भी वायु प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है।


ऊर्जा के वैकल्पिक, सतत व स्वच्छ स्रोत के लिये पूरी दुनिया के अलग-अलग देशों में अपने-अपने ढंग से प्रयत्न किये जा रहे हैं। परमाणु ऊर्जा, सौर-ऊर्जा, पवन ऊर्जा व प्राकृतिक गैस आदि के रूप में कई विकल्प अब उपलब्ध हो चुके हैं। परन्तु विकिरण से जुड़े खतरों, अत्यधिक लागत व अन्य कमियों की वजह से इन पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। भारत में रतनजोत व करंजा से प्राप्त होने वाले तेल को बायो-डीजल के रूप में प्रयोग करने की प्रबल व अपार सम्भावनाएँ दिखती हैं। प्रदूषित वायु से होने वाले दुष्प्रभावों से आम जनता को अवगत कराना अति आवश्यक है। इसके लिये प्रदर्शनी, पर्यावरण सम्मेलन, पर्यावरण दिवस एवं वन महोत्सव आदि का आयोजन किया जा सकता है। वायु प्रदूषण पर हुई विभिन्न खोजों, अनुसन्धानों और परिणामों से जनता को अवगत कराया जाये ताकि पता चले कि प्रदूषित वायु के क्या-क्या दुष्परिणाम होते हैं और इसे कैसे कम किया जा सकता है।

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