विकास का नाम विनाश का काम – रत्नेश सिंह

अपनी पौराणिक कथाओं से शुरू करते हैं। महाभारत के समय पांडवों को 12 साल के लिए वनवास और 1 साल का अज्ञातवास मिला था, ठीक वैसा ही रामायण में भगवान राम जी को भी 14 वर्षों का वनवास मिला था। आज अगर भगवान राम होते या पांडव होते और उन्हें जंगल जाना पड़ा, तो यकीन मानिए वो भी जंगल के लिए तरस जाएंगे। मैं ऐसा इसलिए बोल रहा हूं कि हमारा जीवन सीधे तौर पर प्रकृति से जुड़ा हुआ है। हम जंगल की बिना इस धरती की कल्पना भी नहीं कर सकते। पर जिस तेजी से हम अनावश्यक रूप से जंगलों की कटाई कर रहे है, इसका भुगतान भी हमें ही करना पड़ रहा है। ओजोन परत लगातार सिकुड़ रही है। शुद्ध-वायु ,शुद्ध-जल के लिए हम तरस रहे हैं। सिर्फ एक देश ही नहीं बल्कि पूरा मानव समाज ही इस धरती के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में यह चुनौती और भी गंभीर हो जाती है, तब जब हमारी लड़ाई हमारे सिस्टम से हो, हमारे अपने ही लोगों से हो। पूरी दुनिया में 5 जून को हर साल विश्व पर्यावरण दिवस यानी World Environment day मनाया जाता है। हर साल विश्व पर्यावरण दिवस के लिए एक थीम रखी जाती है और इस साल 2021 की Theme है, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली (Ecosystem Restoration) मतलब शहर-गांव को हरा-भरा करना, पेड़-पौधें लगाना, जगह-जगह बागीचों को बनाना इत्यादि। अगर दूसरे शब्दों में बोला जाए तो पेड़ लगाना और जंगल बनाना जिससे हमारा प्राकृतिक समन्वय बना रहे। जंगल बनाना तो छोड़िए हमारा देश जो है, वह उनको भी काटने में लगा हुआ है, जी हां, मैं मध्यप्रदेश के बक्सवाहा जंगल के बारे में बात कर रहा हूं। भारत के मध्य प्रदेश के छत्तरपुर जिले में बक्सवाहा जंगल को काटने का फैसला लिया गया है और इन पेड़ों की कटाई इस बार इसलिए नहीं हो रही है कि सड़के चाहिए, हॉस्पिटल चाहिए, इंफ्रास्ट्रक्चर या इलेक्ट्रिसिटी चाहिए। इस बार ये कटाई बेहद ही गैर-जरूरी चीज के लिए हो रही है। बताया जा रहा है कि इस जंगल के बीच जमीन के नीचे करीब साढ़े तीन करोड़ कैरेट हीरे का भंडार मौजूद है। डायमंड माइनिंग प्रोजेक्ट के तहत इन हीरो को निकालने के लिए करीब ढाई लाख पेड़ काटे जाएंगे, यह बस सरकारी आंकड़े हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि कटने वाले पेड़ों की संख्या करीब 4-5 लाख हो सकती है। इस प्रोजेक्ट में करीब 382 हेक्टेयर जंगल काटा जाएगा, जिसमें 46 प्रजातियों के लगभग दो लाख से ज्यादा पेड़ कटेंगे, जिसमें सागौन, महुआ, बेल, तेंदूपत्ता, आंवला, बरगद, जामुन, अर्जुन, पीपल और कई मेडिकल प्लांट जैसे बहुपयोगी पेड़ शामिल है। इस जंगल में बहुत सारे वन्यजीव भी मौजूद है। जैसे भारतीय बारहसिंघा, चौसिंघा, तेंदुआ आदि। यह सभी वन्यजीव Wildlife Protection Act, 1972 के तहत Schedule-1 में लिस्टेड है। यहां पन्ना टाइगर रिजर्व और नवरा देवी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी भी है, इस प्रोजेक्ट के चलते पूरा Eco-System Disturb हो सकता है। इस एरिया में माइनिंग का कॉन्ट्रैक्ट 2006 में ऑस्ट्रेलिया के रियो टिंटो कंपनी को मिला था, उसने बहुत पैसे खर्च किए, फिर भी 2016 तक माइनिंग शुरू नहीं हो पाई, Environment concern, Litigation Report, Protest के चलते इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया। 2017 में जब कंपनी ने बक्सवाहा में सर्वे किया था, तो यहां बहुत सारे बंदर दिखे थे, इसलिए इस परियोजना का नाम हीरा बंदर प्रोजेक्ट पड़ा।


अब हालिया रिपोर्ट 2019 आई है, इस रिपोर्ट में यह बोला गया है कि यहाँ संरक्षित वन्य प्राणियों के आवास होने के कोई प्रमाण नहीं है और इन जंगलों में बाघों की अब आवाजाही भी नही है।
ऐसा कैसे संभव है कि ढाई साल में सब विलुप्त हो गए? चलिए, अगर कुछ देर के लिए जंगलो और जानवरों को छोड़ भी देते हैं जो कि विकास के नाम पर हम हमेशा से करते आए हुए हैं तो Diamond Mining Project एक Water-intensive project है इसमें माइनिंग के लिए बहुत सारे पानी की जरूरत पड़ती है। इस Mining Project में प्रतिदिन 1.60 करोड़ लीटर पानी प्रयोग होगा, जिसके लिए एक मौसमी नाले का पानी बांध बनाकर डायवर्ट किया जाएगा। भारत सरकार के केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के मुताबिक बक्सवाहा तहसील सेमी क्रिटिकल श्रेणी में है, यह पहले से ही भीषण जल संकट है, बक्सवाहा तहसील में हालात ऐसे हैं कि सर्दियों में टैंकर से पानी सप्लाई होता है, यहां एक नाला/नदी है,उसी से 8-10 गांव के लोग अपना सिंचाई का काम करते हैं और वन्य जीव भी इसपर निर्भर है। फिर भी करोड़ों लीटर पानी की बर्बादी की तैयारी है। हम जब भी पानी की बात करते हैं तो हमें यह पता होना चाहिए कि सिर्फ मध्यप्रदेश ही नही, पूरे भारत में 50% लोगों के पास पीने का साफ पानी नहीं है जिसके चलते हर साल 2 लाख लोगों की मौत हो जाती है। 10 साल में हालात बद से बदत्तर हो जाएंगे, पीने का पानी तो छोड़िए 40% लोगों के पास पानी नहीं होगा, ऐसा इसलिए हो रहा है कि 80% जनसंख्या पीने के लिए और खेती के लिए Ground water पर निर्भर है। Ground Water की खपत इस रफ्तार से हो रहा है कि 2007-2017 के बीच Ground Water का level 60% नीचे चला गया है। बुंदेलखंड का यह जो एरिया है,वह पहले संभावित सूखा क्षेत्र (Drought prone area) है और यहां पहले से ही इतना Deforestation हो चुका है या अभी भी हो रहा है जैसे कि बुंदेलखंड में ही केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (Ken-Betwa River interlinking Project) है, इस परियोजना में पहले से ही 23 लाख पेड़ डूबने का खतरा है। फिर वही Bundelkhand Expressway Highway के नाम से लगभग दो लाख पेड़ काट दिए गये। जब इतने Large scale में Deforestation होगा वह भी Drought Prone Area में, तो जमीन का Salination बढ़ेगा और Land degradation होगा। पहले ही बुंदेलखंड का बड़ा हिस्सा Degraded land है, खेती-बाड़ी करना काफी मुश्किल है और इस Diamond mining project से इस प्रकार की जमीन और ज्यादा बढ़ जाएगी तो Agriculture और Ground Water पर भी इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। सरकार ने कहा है कि जो ढाई लाख पेड़ कटने वाले हैं, इसके बदले 4 से 10 लाख पेड़ लगने भी वाले हैं। इसे आप एक प्रकार से Compensatory Afforestation कह सकते हैं, इसमें भी बहुत सी समस्याएं हैं। जैसे अभी हाल ही में उत्तराखंड में विकास योजनाओं के लिए जो पेड़ कटेंगे, उनकी क्षतिपूर्ति के लिए भविष्य में हिमाचल, हरियाणा और यूपी में पेड़ लगाए जाएंगे, तो आश्चर्य मत कीजिएगा। यह ठीक वैसा ही होगा,जैसे बांध के लिए डुबाया टिहरी को गया और पेड़ लगाए गए यूपी के बरेली क्षेत्र के ललितपुर में ,ऐसी स्थिति तब पैदा होती है जो वन विभाग के पास जमीन ही नहीं हो बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करने के लिए। एक समस्या यह भी है कि Afforestation एक प्रकार का Monoculture है, उसमें एक ही प्रकार के पेड़ लगा दिए जाते हैं। अब आप खुद सोचिए 50-100 साल पुराने पेड़ काटकर छोटा सा Saplings लगाना जायज है।


एक सवाल यह भी है कि क्या पक्षियों के नष्ट होने वाले घोंसले दोबारा बनाए जा सकते हैं? मध्य प्रदेश वन विभाग का दावा है कि 6 साल में 1638 करोड रुपए खर्च कर लगभग 21 करोड़ पेड़ लगाए गए हैं। लेकिन भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है कि राज्य में इस अवधि में रिपोर्ट के मुताबिक 100 वर्ग किलोमीटर जंगल घट गया। नर्मदा किनारे 7 करोड़ पौधे लगाने संबंधी दावे भी खोखले साबित हुए हैं। सतना में सीमेंट फैक्ट्री की क्षतिपूर्ति करने के लिए छतरपुर जिले के बिजावर में जमीन दी गई, इतने सालों में वहां एक पेड़ तक नहीं लगा। बात जब प्राथमिकता की हो, तो विकास की जीत होती है पर्यावरण की हार! और बात तब और भयावह हो जाती है,जब पर्यावरण को बचाने के लिए हमें अपने सरकार से लड़ना पड़े। और अब अंत में मुदित श्रीवास्तव जी की चार लाइन लिखना चाहूंगा —
उन्हें हीरे चाहिए
जिन्होंने कभी नहीं देखी
पत्तियों पर ठहरी हुई
एक बूँद।

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