अंधेरा भी जरूरी है – Team Indian Environmentalism

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क्या आपको बचपन का धारावाहिक शक्तिमान याद है? इसमें अंधेरे को बुराई के रूप में दिखाया गया है। शक्तिमान धारावाहिक का विलेन बार-बार दोहराता रहता है, “अंधेरा कायम रहे”।
असल में दुनिया की तमाम परंपराओं और संस्कृतियों में अंधेरे को बुराई अज्ञानता और पिछड़ेपन का प्रतीक माना गया है। लेकिन क्या अंधेरा सच में इतनी बुरी चीज है और क्या प्रकाश में केवल अच्छा यही अच्छाइयां है।आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं।
आग के अविष्कार से लेकर अब तक प्रकाश को प्रगति का प्रतीक माना गया है। लेकिन हमारी प्रकृति प्रकाश और अंधकार को बराबर महत्व देती है। शायद तभी दिन और रात 12-12 घंटे के होते हैं। बिजली और बल्ब का आविष्कार होने के बाद अंधेरा हमारे जीवन से दूर होता गया है। लेकिन अंधेरे की अहमियत मनुष्य और बाकी जीव जंतुओं के लिए उतनी ही है जितनी प्रकाश की अहमियत है।
यहां पर एक घटना का जिक्र करना जरूरी है। 17 जनवरी 1994 को अमेरिका के लास एंजिलिस में एक भूकंप आया। वही लॉस एंजलिस जिसे हॉलीवुड के नाम से जाना जाता है। वहां की चकाचौंध पूरी दुनिया में मशहूर है। भूकंप 6.6 तीव्रता का था। सभी लोग बदहवास होकर सड़कों पर उतर आए। लोगों ने पुलिस को फोन किया और बताया कि उन्हें भूकंप से डर तो लग ही रहा है और उससे ज्यादा डर आसमान को देख कर लग रहा है। आसमान में कुछ है जो जगमगा रहा है टिमटिमा रहा है।
दरअसल ये लोग आकाश को साफ-साफ देख पा रहे थे। बिजली चली जाने से इतना अंधेरा हो गया था कि इन्हें आकाशगंगा साफ-साफ दिख रही थी। लास एंजिलिस के लोगों के लिए यह पहला अनुभव था। इस घटना से यह समझा जा सकता है कि कृत्रिम प्रकाश हमारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है।
आज अप्राकृतिक कृत्रिम रोशनी का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि दुनिया की लगभग 80 फ़ीसदी आबादी को घने अंधेरे वाला आकाश दिखाई नहीं देता। आज बड़े-बड़े महानगरों में इतनी ज्यादा रोशनी रहती है कि लोग अंधेरे को देखना ही भूल गए हैं। वैज्ञानिक जरूरत से ज्यादा कृत्रिम प्रकाश को प्रकाश प्रदूषण का नाम देते हैं। तमाम वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि प्रकाश प्रदूषण का मनुष्य पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जरूरत से ज्यादा कृत्रिम प्रकाश बेचैनी, नींद ना आना, सिरदर्द, मोटापा डिप्रेशन और कैंसर जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है।
ये तो बात हुई मनुष्यों पर प्रकाश प्रदूषण के प्रभाव की बात हुई। अब समझते हैं कि मनुष्य के अलावा बाकी जीव-जंतुओं पर प्रकाश प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है। कृत्रिम प्रकाश छोटे कीड़ों और मधुमक्खियों को प्रभावित करता है। कीड़ों की कमी से परागण प्रभावित हो सकता है जिससे कि दुनिया का बड़ा खाद उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
कृत्रिम प्रकाश की वजह से पक्षी अपना रास्ता भटक जाते हैं और कई बार अपने घोंसले तक नहीं पहुंच पाते हैं। प्रकाश प्रदूषण कछुओं की आबादी में आई निरंतर गिरावट के लिए भी जिम्मेदार है। कछुए अपना अंडा समुद्री तटों पर देते हैं। जब कछुओं के बच्चे अंडे से बाहर आते हैं तो वो रात में कृत्रिम प्रकाश की वजह से रास्ता भटक जाते हैं और समुद्र तक नहीं पहुंच पाते।
इसके अलावा समुद्री जीवों पर भी प्रकाश प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ रहा है। माइक्रोस्कोपिक एनिमल जिन्हें ज़ोप्लांकटन (zooplankton)कहा जाता है जो दिन में समुद्र की गहराई में रहते हैं और रात में समुद्री सतह पर एलियन इस्तेमाल खाने आते हैं। जब रात में आसमान में बहुत प्रकाश होता है तो ज़ोप्लांकटन (zooplankton) को यह भ्रम होता है कि अभी दिन ही है। दिन का भ्रम होने की वजह से ज़ोप्लांकटन (zooplankton) सतह पर नहीं आते और इसे समुद्र की सतह पर शैवाल (Algae) में बेतहाशा वृद्धि होती है और इससे समुद्र का फूड चेन प्रभावित होता है। जिससे जिसका असर जीव जंतुओं और इंसानों दोनों पर पड़ेगा।
तो अब सवाल ये है कि प्रकाश प्रदूषण का समाधान क्या हो सकता है। इसके लिए व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों ही स्तरों पर काम करना होगा।
हमें शहरों की प्लानिंग प्रकृति के अनुरूप बनाने की जरूरत है। घर में प्राकृतिक प्रकाश के प्रयोग को बढ़ावा देने की जरूरत है। घरों में बत्ती तभी जलाएं जब इसकी जरूरत हो काम हो जाने पर बत्ती बंद कर दें। लैम्प का इस्तेमाल करिये ताकि प्रकाश इधर-उधर ना फैले। हल्की लाइटें जलाइये वो अच्छी रहेंगी। जितनी कम रोशनी होगी उतना ही अच्छा रहेगा। हमें डिम लाइट की आदत डालनी होगी।

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