महात्मा गांधी का कथन है कि, “तुम जो भी करोगे वो नगण्य होगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि तुम वो करो।”
इस लेख में हम वायु प्रदूषण के वर्तमान एवं भविष्य के दुष्प्रभावों पर चर्चा करेंगे। हालांकि वर्तमान स्थिति के अनुरूप हमारी ये चर्चा भी नगण्य होगी ,पर जैसा कि गांधी जी ने कहा था, ये जरूरी है कि हम ये चर्चा करे।
आइये हम एक अंदाजा लगाने से बात शुरू करते हैं जिसमें कि हम भारतीय लोग माहिर है , कि आज से 30 साल पहले फेफड़ों के कैंसर के मरीजों में 80 से 90 फीसदी धूम्रपान करने वाले होते थे। उनमें से ज्यादातर पुरुष होते थे जिनकी आयु 50 से 60 साल के आस-पास होती थी। लेकिन,आज आकड़ो के अनुसार पिछले 6 वर्षों में फेफड़ों के कैंसर के आधे से ज्यादा मरीज धूम्रपान ही नहीं करते हैं , बड़ी बात यह है कि उनमें से लगभग 40 फीसदी महिलाएं हैं। इन मरीजों की उम्र भी पहले कम हैं। मरीजों में 8 फीसदी तो 30 से 40 साल की उम्र के हैं। अब ये पढ़कर आपके अंदर यदि धूम्रपान करने की प्रबल इच्छा को बढ़ावा मिलता है तो यकीन मानिये यदि आप अपनी प्रौढ़ अवस्था तक नहीं पहुँच पाते है , तो इसमे भी कोई आश्चर्य नही होगा । भारत में कैंसर के मामले गंभीर दर से बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम के आंकलन (एनसीसीपी) के अनुसार 2026 तक देश में 1.4 मिलियन से अधिक लोग कैंसर से पीड़ित होंगे।
ओजोन प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों के मामले में भी भारत दुनिया में पहले स्थान पर है।
आज के समय मे उच्च रक्तचाप, तंबाकू का सेवन और खराब आहार के बाद समय से पहले मौत का चौथा प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है । वायु प्रदूषण वास्तव में सभी तरह के प्रदूषण में सबसे खतरनाक है और दुनिया में असमय मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण है ।
वायुजनित प्रदूषण में 2.5 माइक्रोन या उससे भी कम व्यास वाले प्रदूषक तत्व (मोटे तौर पर मानव बाल की मोटाई का 30वां भाग) सबसे खतरनाक माने जाते हैं. ये इतने छोटे होते हैं कि श्वसन तंत्र के जरिए खून में चले जाते हैं जिससे अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर या ह्रदयरोग हो सकते है । वैज्ञानिक अध्ययनों से यह पता चला है कि कम गति पर चलने वाले यातायात में, विशेष रूप से भीड़ के दौरान, जला हुआ ईंधन 4 से 8 गुना अधिक वायु प्रदूषण उत्पन्न करता है।
भारत में कम से कम 14 करोड़ लोग डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा से अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं।
द लैंसेट की ओर से 1 दिसंबर, 2020 को जारी नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है, “वर्ष 2019 में भारत में 17 लाख मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं, जो देश में होने वाली कुल मौतों का 18 फीसदी थी।”
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट-2020 में दुनिया भर के प्रदूषण के आंकड़े जारी किए गए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण जनित बीमारियों जैसे दिल का दौरा, फेफड़े का कैंसर, फेफड़े की अन्य बीमारियों के कारण पूरी दुनिया में 2019 में करीब 67 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इसमें से भारत में करीब 16.7 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्होंने वायु प्रदूषण के कारण जनित बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाई है।
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण ने यहां के लोगों की उम्र 10 साल कम कर दी है। पूरे उत्तर भारत में उम्र औसतन 7 साल कम हुई है। यह दावा शिकागो यूनिवर्सिटी की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो (ईपीआईसी) ने अपने विश्लेषण के जरिए किया है। सीधे तौर पे बात करे तो भारत की राजधानी दिल्ली में रहने का मतलब है कि आप रोजाना 10 सिगरेट के बराबर धुएं को ग्रहण कर रहे हैं। दरअसल 1998 मे दिल्ली में पर्टीकुलेट मैटर का प्रदूषण 70 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जो कि 2016 में 113 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (61 फीसदी ज्यादा) हो गया।
वायु प्रदूषण के चलते दक्षिण एशिया में हर साल साल 3,49,681 महिलाएं मातृत्व के सुख से वंचित रह जाती हैं। भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान पहले ही दुनिया भर में खराब वायु गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में इन देशों में बढ़ता वायु प्रदूषण गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है। शोध से पता चला है कि खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने से उनमे स्टिलबर्थ और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। भारत में वायु प्रदूषण के कारण साल 2019 में कुल 1.16 लाख बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। मौत की प्रमुख वजह प्रदूषण के कारण गर्भवती मां पर पड़े वो प्रभाव भी हैं, जिनके कारण बच्चों को जन्म के पहले महीने में कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है। यदि हम खासतौर पर ऐसे राज्यों की बात करे जो गरीब आय वाले हैं और जहां बच्चों व माताओं के लिए कुपोषण की बड़ी लड़ाई है तो हम पायेंगे कि वहां वायु प्रदूषण ज्यादा हमलावर है। क्योंकि 2017 जीबीडी रिपोर्ट में वायु प्रदूषण जनित मौतों का आंकड़ा 12.4 लाख था ,इन 12.4 लाख मौतों में से 6,73,100 मौतें आउटडोर पीएम-2.5 की वजह से हुईं, जबकि 4,81,700 मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के चलते हुईं। यह मौतें आउटडोर (बाहरी), हाउसहोल्ड (घरेलू) वायु और ओजोन प्रदूषण का मिलाजुला नतीजा है।
यही आंकड़े 2019 में बढ़कर 17 लाख हो गया ।
वायु प्रदूषण से होने वाला आर्थिक नुकसान को भी हम नज़रंदाज़ नही कर सकते है ,ग्रीनपीस संस्था ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस समस्या के चलते भारत को हर साल 10 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्र पर होने वाल कुल व्यय जीडीपी का लगभग 1.28 फीसदी है जबकि जीवाश्म ईंधन को जलाने से भारत को जीडीपी का लगभग 5.4 फीसदी नुकसान उठाना पड़ता है । जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से होने वाले वायु प्रदूषण की वजह से दुनिया को रोजाना 57 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। यह लागत वैश्विक अर्थव्यवस्था का 3.3 प्रतिशत है। इसका दावा एक पर्यावरणीय अनुसंधान समूह ने अपने अध्ययन में किया है । रिपोर्ट में कहा गया है कि नाइट्रोजन डाईऑक्साइड से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 25 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, बॉम्बे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई और दिल्ली के प्रदूषण से साल 2015 में 10.66 अरब डॉलर (करीब 70 हजार करोड़ रुपये) यानी देश की जीडीपी के करीब 0.71 फीसदी हिस्से का नुकसान हुआ था ।
बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण मौसम सम्बन्धी परेशानियां भी सामने आयी हैं। जिसका प्रभाव भी हमारे जीवन और वातावरण पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ रहा है ।
वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों के कारण ओज़ोन परत भी घटती जा रही है जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है।
वायु प्रदूषण के कारण सामान्य तापमान में भी वृद्धि हो गयी है और पिछले 10-12 सालों से सर्दियाँ लगातार घटती ही जा रही हैं।
भारत मे यह एक ऐसी समस्या बन चुकी है जिससे निपटने का कोई एक तरीका नहीं है ,जैसे वायु प्रदूषण से कारण अनेक और विविध हैं, उसके समाधान भी वैसे ही होने चाहिए। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर स्टडी के लेखकों का कहना है कि इंसान की सेहत पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के बावजूद दुनिया के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत कम या ना के बराबर प्रगति हुई है ।
हमें वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कुछ अनूठे तरीके अपनाने होंगे, आगे के ब्लॉग में हम विविध तरीको से ,समाधान पर लिखने की कोशिश करेंगे ।
Good avairness about environment and pollution
Keep it up
👍🙏