आज के समय में हमारे सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। एक- पर्यावरण को स्वच्छ रखने में हम कैसे योगदान दें और दूसरा- खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके पर्यावरण प्रदूषण को कैसे कम किया जाए। वायु प्रदूषण सिर्फ नागरिकों के स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।
योगदान में सहयोग करने से पहले ,हमे लोगो के बीच जागरुकता फैलाने से शुरुआत करनी चाहिए।
किसी अच्छी उपज के लिए खेत की अच्छे से जुताई करनी ज़रूरी है ठीक वैसे ही किसी भी नीति या कानून को बनाने से पहले उसे लेकर जागरूकता पैदा करना बहुत बुनियादी ज़रूरत है, जैसे पिछले 3 -4 सालो में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा उठाए गये स्वच्छता अभियान के प्रति लोगो के अन्दर जागरूकता जगा है । हमें हमेशा ऊपर से नियमों को लादने के बजाय जनता को जागरूक करने पर ज़ोर देना चाहिए. और उनकी भागीदारी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए. तभी, नीतियां असर दिखाएंगी ।
वायु प्रदूषण के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर होने की एक बड़ी वजह यह है कि इसमें जनता सक्रिय रूप से भागीदार नहीं बन रही है ,इसका नतीजा यह होता है कि वायु प्रदूषण रोकने के लिए उठाया गया अच्छे से अच्छा कदम भी उतना प्रभावी नही होता है कि हम एक निष्कर्ष पर पहुँच पाये । इसका कही न कही एक कारण
जनसहयोग और सरकार दोनों को इस समस्या को लेकर गंभीर न होना है ,और कभी आज के मौजूदा स्थिति मे मुद्दे बनाने की कोशिश भी की जाती है तो जनता के अपने भावनात्मक और वैचारिक कारणों से ,इन मुद्दों को वरियता में स्थान नही मिल पाता है
वायु प्रदूषण रूपी ये राक्षस, दिनों-दिन हमारी कल्पना से भी ज़्यादा विशाल समस्या का रूप धरता जा रहा है. सवाल ये है कि ये इतनी बड़ी समस्या है, फिर भी वायु प्रदूषण को महामारी क्यों नहीं माना जा रहा है?
इस दिशा में कोई भी प्रभावी कदम उठाने के लिये हमारी सरकारें कर क्या रही हैं? पानी प्रदूषित, नदियां प्रदूषित, मिट्टी प्रदूषित और हवा प्रदूषित।
इससे निपटने के लिए तेज़ी से ज़रूरी क़दम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं? आख़िर, सरकार या इसके असर के बारे में बताने वाली एजेंसियां, प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस क़दम उठाने से क्यों हिचक रही हैं? क्यों साल-दर-साल हालात जस के तस बने रहते हैं?
देश में बढ़ते प्रदूषण का मिजाज इसी तरह से बना रहा तो आने वाले कुछ दशकों में मानव के अस्तित्व को बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। गौर करने वाली बात यह है कि आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा नुकसान भारत का ही होने वाला है ।
कुछ सवालों के जवाब हमें ईएनवीइकोलॉजिग नाम की संस्था के द्वारा कराये गये सर्वे से ही मिल जायेंगे । ये दुनिया भर में क़ुदरत के साथ तालमेल करके होने वाले विकास और ऊर्जा के अर्थशास्त्र पर काम करने वाली मशहूर संस्था है. ईएनवीइकोलॉजिक ने दिल्ली के 9 ज़िलों के 5 हज़ार से ज़्यादा लोगों से वायु प्रदूषण के ऊपर उनकी जागरूकता और प्रभावित कारकों से उनके जीवन मे हुये बदलाव पर बातचीत की. इस सर्वे की प्रमुख बातें कुछ इस तरह हैं:
— सर्वे में शामिल 35 फ़ीसद लोग ये मानते ही नहीं कि दिल्ली में प्रदूषण के हालात बहुत ख़तरनाक हैं. इनमें से 75 प्रतिशत लोगों के तो 10 साल से कम उम्र के बच्चे भी हैं. कुल मिलाकर इस सर्वे में शामिल 20 फ़ीसद लोगों का ये मानना है कि प्रदूषण को लेकर हौव्वा खड़ा किया जा रहा है, जबकि हक़ीक़त इतनी बुरी नहीं है.
— क़रीब 60 प्रतिशत लोग ये नहीं मानते हैं कि दिल्ली में घरों के भीतर प्रदूषण की समस्या है. उनका ये मानना है कि घर के बाहर वायु प्रदूषण है, लेकिन घर के अंदर के हालात उतने नुक़सानदेह नहीं हैं.
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए जा रहे क़दमों का कितना असर है, इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि, बेहतरीन समझ में आने वाली नीतियों को लेकर जनता में कोई उत्साह नहीं दिखता. इसका नतीजा ये होता है कि वायु प्रदूषण रोकने के लिए उठाया गया अच्छे से अच्छा क़दम भी नाकाम हो जाता है.
प्रदूषण की समस्या का स्थायी इलाज निकालने के लिए भारत कई दूसरे देशों से सबक ले सकता है। दरअसल, कई अन्य देश भी प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। इन देशों में प्रदूषण से निपटने के कई तरीके अपनाए गए हैं, जिनसे उन्हें कुछ सफलता भी हासिल हुई है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए साल 2030 से ही पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों की बिक्री पर बैन लगाने का फैसला लेने जा रहे हैं ।
बता दें, ब्रिटेन ने सबसे पहले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों के तहत 2040 से नई पेट्रोल और डीजल-संचालित कारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई थी, और फिर फरवरी में जॉनसन ने इसे 2035 में लागू करने का फैसला लिया था, लेकिन अब 2030 से ही लागू करने की योजना है ।
चीन की राजधानी बीजिंग ने भी पिछले साल वायु गुणवत्ता में सुधार किया है। बीजिंग दुनिया के दो सौ सबसे प्रदूषित शहरों की सूची से बाहर हो गया है। लेकिन भारत में प्रदूषण नियंत्रण की सरकारी नीतियों और प्रयासों के बावजूद हवा की गुणवत्ता पिछले पांच साल के दौरान काफी ज्यादा बिगड़ी है।
भारत के नीति-नियंता, आम तौर पर, वायु प्रदूषण जैसी हर बड़ी समस्या से ‘कमांड ऐंड कंट्रोल’ वाले तरीक़े से निपटने की कोशिश करते हैं. लेकिन, इस समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर क़ाबू में करने के लिए सरकार को नीतियां बनाने के अलावा भी बहुत कुछ करना होगा. सरकार ये उम्मीद नहीं कर सकती कि वो सिर्फ़ नियम बना दे और जनता उसका पालन करेगी. जो क़दम उठाए जा सकते हैं, वो कुछ इस तरह हैं:
— पहले समस्या को लेकर जनता की समझ को बढ़ाना होगा. लोगों के बीच स्वास्थ्य और अच्छी जीवन-शैली को लेकर जागरूकता बढ़ानी होगी ।
— किसी भी संभावित क़ानून पर पहले जनता की राय जानने की कोशिश करनी चाहिए. अगर जनता के बीच इसे लेकर उत्साह नहीं है, तो ये समझने की कोशिश सरकार को करनी चाहिए कि आख़िर इसकी वजह क्या है ।
— जनता को मौजूदा नियम-क़ायदों की जानकारी देनी चाहिए. इन नियमों के फ़ायदे भी लोगों को समझाने चाहिए. वायु प्रदूषण से निपटने के लिए ज़रूरी उपायों का प्रचार कई गुना बढ़ाना होगा, ताकि ये जनता के बीच चर्चा का मुद्दा बने. ये काम ठीक उसी तरह करना होगा जैसे स्वच्छ भारत अभियान के लिए प्रचार किया गया ।
इसे आपसी सहमति और ईमानदार प्रयासों के बिना हल नहीं किया जा सकता। वायु प्रदूषण को निश्चित रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए हम सभी नागरिकों और संगठनों से लेकर निजी कंपनियों और सरकारों तक को एक साथ मिल कर प्रयास करना होगा।
भारत में सुप्रीम कोर्ट भी वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये आश्चर्यजनक रूप से काम कर सकता है। इस संबंध में कई फैसले किए गए हैं, 1985 में दिल्ली में सार्वजनिक सेवा वाले वाहनों में संकुचित प्राकृतिक गैस का अनिवार्य इस्तेमाल सबसे फायदेमंद फैसला था। इससे वायु प्रदूषण के प्रतिशत में प्रभावी ढंग से बदलाव (कमी) आया है।
दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के रूप में मेट्रो की स्थापना प्रदूषण को कम करने का एक अच्छा तरीका था
लेकिन इस भयानक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारत को और अधिक प्रयास करना चाहिए। सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए और वाहन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। जहाँ तक संभव हो हमें सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना चाहिए, ऊर्जा कुशल उपकरणों का उपयोग करें, लकड़ी या कोयले का दहन न करें, रसोई और बाथरूम में प्रदूषण को कम करने के लिए एग्जॉस्ट (निकासी पंखे) फैन लगे होने चाहिए। इस स्थिति में “रोकथाम इलाज से बेहतर है” कहना उचित है। प्रदूषण के फैलने के बजाय इसे रोका जाना चाहिए और इससे निपटान करना चाहिए। हमें ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन को छोड़कर नवीकरणीय स्रोतों को शामिल करना होगा।
शानदार लेख
इस लेख में सचमुच जागरूकता फ़ैलाने की ताकत है |