भूजल पर बढ़ती निर्भरता के खतरे – निखिल कुमार

सुबह उठकर मैं अपने कमरे से बाहर आया तो मैंने देखा कि मेरे पड़ोस के रूम में रहने वाला लड़का ब्रश कर रहा है और टोटी से पानी व्यर्थ बह रहा है। मुझे देखकर उसने प्रातः कालीन अभिवादन किया और मुस्कुराते हुए फिर से ब्रश करने लगा। मैं अपने कमरे से नीचे उतर ही रहा था कि घर की मालकिन ने फर्श पर बाल्टी से पानी की बरसात करते हुए मुझसे मेरा हाल-चाल पूछा। अभी घर से बाहर निकलने वाला ही था कि एकाएक अंकल ने खुली टोटी के नीचे बैठकर नहाते हुए मुझसे अपना कुछ सामान लाने को कहा। घर से बाहर निकल कर मैंने देखा कि कोई बेवजह सड़क को धोने लगा है तो कोई खुली टोटी से धो धोकर अपनी कार को चमकाने में लगा है। कहीं पर पानी खुद-ब-खुद बह रहा है तो कोई खुली टैप से पशुओं को नहलाने में फालतू पानी बर्बाद कर रहा है।

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अभी तक आप सब लोग सोच रहे होंगे कि या तो आम जनजीवन की सामान्य बात है लेकिन क्या आपने यह ध्यान दिया है कि हम किस तरह से पानी को बर्बाद कर रहे हैं।
यह मात्र पानी नहीं अमृत है। यह है भूजल!
भूजल क्या है ? सीधी और सरल भाषा में भूजल पृथ्वी के अंदर सुरक्षित साफ और शुद्ध जल का भंडार है। लेकिन पूंजीवाद के चरम युग में हम भूजल को इस तरह से परिभाषित कर सकते हैं। भूजल पैसे की तरह होता है। जैसे पैसा बैंक में जमा होता है उसी तरीके से भूजल पृथ्वी के गर्भ में जमा होता है। जिस तरह से जमा धन पर अधिक निर्भरता हमारी आर्थिक स्थिति को बर्बाद कर देती है। उसी तरह से भूजल पर हमारी अधिकतम निर्भरता मानव जीवन को विनाश की ओर ले जाती है।
पूर्व में दिए गए छोटे से उदाहरण में हमने देखा कि किस तरह से हम अपने दैनिक क्रियाकलापों में भूजल का प्रयोग करते हैं। इससे हमें पता चलता है कि भूजल पर हमारी निर्भरता कितनी बढ़ गई है। यदि हम अपने जीवन में कुछ सार्थक परिवर्तन लाए तो हम भूजल को बहुत हद तक संरक्षित कर सकते हैं। जैसे ब्रश करते समय, नहाते समय कपड़े,बर्तन आदि धोते होते समय पानी को व्यर्थ ना बहाएं। फर्श को साफ करने के लिए पोछे का इस्तेमाल करें। पानी के लीकेज की तुरंत मरम्मत करें। इस तरह से कुछ सावधानियां बरतकर हम व्यक्तिगत स्तर पर भूजल का संरक्षण करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। इसको यदि हम दूसरे शब्दों में समझें तो भूजल के बेहतर इस्तेमाल से और संरक्षण से हम आने वाली पीढ़ियों को भी एक बेहतर कल देने की नींव रख सकते हैं।
विश्व बैंक के अनुसार विश्व में भारत की भूजल पर सर्वाधिक निर्भरता है। विश्व की कुल भूजल मांग का 25% भाग भारत की मांग पर खर्च हो जाता है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पीने के लिए पानी और सिंचाई के लिए भूजल पर आश्रित है। हाल ही में नीति आयोग ने जांच में पाया है कि पीने योग्य पानी का 70% प्रतिशत भाग दूषित हो चुका है। भारत की नदियों तालाबों जलाशयों झीलों आदि में बीओडी (Biological Oxygen Demand) और सीओडी (Chemical Oxygen Demand)बहुत अधिक बढ़ गया है।

नीति आयोग की रिपोर्ट जारी करते हुए जल संसाधन मंत्री ने कहा है कि भारत जल संकट से गुजर रहा है और दो लाख भारतीय प्रतिवर्ष गंदे पानी पीने की वजह से मर जाते हैं। लगभग तीन करोड़ कुंए जो सिंचाई के लिए इस्तेमाल होते हैं। लगातार भूजल स्तर में गिरावट का मुख्य कारण है
भूजल एवं कृषि-
भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज भी कृषि भारत की 58% आबादी के रोजगार का एक मुख्य स्रोत है। लगातार बढ़ रही जनसंख्या के कारण कृषि पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से भारत जैसे देशों ने HYV (High yield variety seeds) पद्धति पर आधारित कृषि को बढ़ावा दिया। इसके शीघ्र परिणाम से भारत अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ लेकिन दीर्घकाल में इसके परिणाम स्वरूप भूजल स्तर में अत्यधिक गिरावट दर्ज की गई। अत्यधिक रसायनिक खाद एवं अत्यधिक सिंचाई के कारण नदियों का जल दूषित होने के साथ-साथ मृदा प्रदूषण एवं भूजल प्रदूषण भी हुआ है।

भूजल एवं उद्योग
जल उद्योगों की रीढ़ होता है। कुछ उद्योगों को छोड़कर इसमें इस्तेमाल होने वाला जल मुख्यतः भूजल होता है। कपड़ा उद्योग, चीनी मिल उद्योग, निर्माण उद्योग इत्यादि में भूजल की अहम भूमिका है। इन उद्योगों से गर्म और दूषित जल बिना स्वच्छ किये ही नदियों या खुले स्रोतों में में प्रवाहित कर दिया जाता है। इस तरह से यह दूषित जल नदियों का बीओडी और सीओडी को बढ़ा देता है। यह जलजीवों को प्रभावित करता है। वाटर फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार भारत न्यूनतम वर्चुअल वाटर आयात करता है। वर्चुअल वाटर जल की वह मात्रा है जो चावल,मीट आदि वाटर इंटेंसिव फसलों में निहित होता है। इन फसलों में पानी अधिक लगता है तो यदि आप इन फसलों का निर्यात कर रहे हैं तो एक तरह से आप पानी का निर्यात कर रहे हैं।
चीन इस तरह से अधिकतम वर्चुअल वाटर को आयात करता है एवं वाटर एक्सटेंट फसलों को निर्यात करता है। भारत इस तरह की फसलों के माध्यम से 2015 से अब तक 3850431 (लगभग 40 लाख) लीटर पानी को निर्यात कर चुका है। जिसमें 2019 बीच में सर्वाधिक पानी चीन को निर्यात किया गया।
हमारे पूर्वज भूजल का संरक्षण एवं सही इस्तेमाल बखूबी जानते थे। इसके साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता से मिलते हैं। जिसमें एक वैज्ञानिक जल प्रणाली का उपयोग किया गया था। हम सब ने कहीं ना कहीं या कभी न कभी यह देखा है कि गांव शहर या बस्ती के बाहर या मध्य में तालाब जलाशयों को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था। जल के ये स्रोत वर्षा के पानी को एकत्र करते हैं और भूजल को बनाए रखने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। लेकिन बढ़ती जनसंख्या एवं अवैध निर्माण के कारण ये तालाब जलाशय आदि को पाट कर इन पर बड़े बड़े भवन बना दिये गए हैं। इसके फलस्वरूप आज यदि उचित मात्रा में वर्षा हो जाती है तो भारत के मुख्य नगर जलमग्न हो जाते हैं या यूं कहें और अर्बन फ्लड का शिकार बन जाते हैं ।

आज हर तरफ कंक्रीट एवं पक्के निर्माण होने के कारण पानी सीधा नालों के द्वारा शहर या गांव से बाहर निकल जाता है। इसके कारण इन जगहों का भूजल प्रभावित होता है। चेन्नई जैसे शहरों में भूजल लगभग समाप्त ही जो चुका है। इस समस्या से बचने के लिए हमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर आधारित भवन को स्वीकृति देनी चाहिए। इसके साथ-साथ पक्के शौचालय को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। स्वच्छ भारत मिशन इस दिशा में बेहतर कदम है। अटॉर्नी जनरल की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में मुख्य रूप से शौचालय उपयोग में ही नहीं है। इसके प्रबंधन के लिए स्थानीय सरकारी संस्थाओं अधिक शक्ति प्रदान की जानी चाहिए। सड़कें भी वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित होनी चाहिए। जिसमें हरित पट्टी एवं वर्षा के जल को रोकने के लिए उचित प्रबंध किए जाएं। जापान ने इसके लिए अच्छी पहल की है। भूजल को संरक्षित करना एवं जल को संरक्षित करना हमारी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा रहा है और हमें अपने इन्हें और मजबूती प्रदान करनी है। हमें ऐसी संस्कृतियों को और बढ़ावा देना है।
प्राचीन जल संरक्षण प्रणाली आज भी मौजूद है जैसे कुहल (हिमाचल प्रदेश), जोहड़, झालरा (जोधपुर), पानम केनी (बिहार), बावरी, टांका (राजस्थान), एरी तमिलनाडु इत्यादि।
अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 48, अनुच्छेद 51(a) आदि संवैधानिक प्रावधान हमें स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन का अधिकार एवं जिम्मेदारी प्रदान करते हैं। भूजल पर जितना भी शोध की जाए उतनी कम है। भूजल की समस्या विश्वव्यापी है पर यदि भारत सरकार और भारत के लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो गरीब एवं भुखमरी के साथ-साथ जल की कमी भी एक बड़ी समस्या बन जाएगी। हमें आज से और अभी से जल एवं जल संसाधनों का संरक्षण करना है क्योंकि जल ही जीवन है। इस समस्या के समाधान के लिए भारत ही नहीं समस्त विश्व समुदाय को एक मंच पर आकर इसका हल निकालना होगा। पानी के हल में ही सभ्यता का भविष्य छुपा हुआ है।

One Comment

  1. Vikas Patel

    Nice article Nikhil bhai👍

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