दिल्ली में शहरी बाढ़ और जलवायु परिवर्तन: स्थायी समाधान की दिशा में कदम

पिछले साल दिल्ली में भारी बाढ़ आई थी। यमुना का पानी दिल्ली के एक बड़े हिस्से में अंदर तक आ गया था। इस साल दिल्ली में एक बेसमेंट में तीन छात्रों की दुखद मौत के बाद शहरी बाढ़ एवं जलवायु परिवर्तन से जुड़े सवाल सतह पर आ गए है। एक बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आगे का रास्ता क्या होना चाहिए। इस सवाल के जवाब के लिए यह बेहद आवश्यक है कि हम त्वरित प्रतिक्रिया की जगह पूरी स्थिति को समझकर दीर्घकालिक समाधान के विषय में सोचे। 

दिल्ली जैसे शहर में शहरी बाढ़ की समस्या हर साल बदतर होती जाएगी, जब तक कि हम बुनियादी बदलाव करने के लिए हिम्मत नहीं करेंगे। विगत 25 वर्षों में छोटे शहरों एवं गांवों की एक बड़ी आबादी दिल्ली में आकर बसी है। इसके लिए दिल्ली में बड़े पैमाने पर नए निर्माण हुए हैं तथा खाली जमीन समाप्त हुई है। इसमें एक बड़ी मात्रा में रिवर बेड(नदी तल) पर भी निर्माण हुआ है। आज की स्थिति को देखते हुए हमें नदी तल पर बनी हर उस संरचना को दूसरी जगह ले जाना होगा जो 25 साल से कम पुरानी है। इसमें कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज और मेट्रो इंफ्रा सहित कई अन्य बड़े प्रोजेक्ट भी शामिल है। इसके लिए हमें नई जगह की तलाश करनी होगी। 

बाढ़ के किनारे के मैदानों का काम पानी को सोखना, बाढ़ को रोकना और मानसून के मौसम में भी शहर को चालू रखना है। ऐसी महत्वपूर्ण पर्यावरण सेवाएं देने वाली जगहों पर रियल एस्टेट नहीं बनाना चाहिए। दिल्ली में पानी की ढलान ज्यादातर यमुना की ओर ही है। यह पानी रिज क्षेत्र से होकर जाता है जो ऐतिहासिक रूप से सतर्कता के लिए एक सुविधाजनक स्थान रहा है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पानी इमारतों और कंक्रीट की सतहों से बिना किसी बाधा के उस दिशा में बह सके। प्राकृतिक वनस्पति और उच्च रिसाव वाली सतहें अच्छी तरह से काम करती हैं। दूसरे शब्दों में दिल्ली में बरसने वाले पानी को बहने के लिए जगह देने की आवश्यता है। 

दिल्ली के सबसे घने हरित क्षेत्र रिज पर भी पिछले कुछ दशकों में भारी अतिक्रमण किया गया है, जिससे पानी को रोकने, अवशोषित करने और बाढ़ को रोकने की इसकी क्षमता प्रभावित हुई है। हमारे समाज और व्यवस्था ने इस आत्मघाती अतिक्रमण को एकदम सामान्य बना दिया है। वसंत कुंज जैसे इलाके में तमाम अतिक्रमण हुए हैं एवं माल बने हैं । यह बेहद आवश्यक है कि रिज के उपलब्ध हिस्सों को फिर से जंगली बनाया जाये। शहर के खाली स्थानों पर सीमेंट लगाने की बजाय सभी संभावित स्थानों को फिर से हरा भरा बनाने की आवश्यकता है। अंग्रेजों के जमाने में रिज क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विलायती बबूल जैसे विदेशी प्रजाति के पौधे लगाए गए थे। आज जरूरत इस बात की है कि देशी घास, लताएँ, झाड़ियाँ और पेड़ लगाए जाए। शहरों का हरित कवर स्थानीय इकोलाजी के अनुसार होना चाहिए।

कई अंडरपास मानसून के दौरान खतरनाक बन जाते हैं। कई बार तो मानसून के दौरान इसमें डूबकर मौत तक हो जाती है। हमें यह समझना होगा कि अंडर पास एवं टनल के लाभ से अधिक दीर्घकालिक खतरे हैं। दिल्ली भूकंप जोन IV (4) में स्थित है यानी यहां भूकंप का खतरा ज्यादा है। ऐसे में यह जरूरी है कि अंडर पास एवं टनल के उपयोग को सीमित किया जाये। यदि हम अच्छी सार्वजनिक परिवहन नीतियाँ लाये एवं इनका कार्यान्वयन ठीक करें तो हमें निजी वाहनों के लिए इतनी जगह की आवश्यकता नहीं होगी। पानी के बल के आगे झुकना अनुकूलन का एक स्मार्ट तरीका है। हमें पानी के गुणधर्म के आधार पर नीतियाँ बनानी होंगी। यदि हम पानी के गुणधर्म के विपरीत जाएंगे तो हम हमेशा समस्याओं से घिरे रहेंगे। 

हमारे पास ऐसी व्यवस्था और सार्वजनिक उत्साह की भावना नहीं है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वर्षा का पानी, चाहे उसका कुछ हिस्सा ही क्यों न हो, भूजल तक पहुँचे। लोग अपने घरों से वर्षा जल चैनलिंग पाइप को सीवेज सिस्टम से जोड़ते हैं।इसे बदलकर पानी को ज़मीन में गहराई तक भेजने के की आवश्यकता है ताकि इसका उपयोग गर्मियों में किया जा सके। हमें इसे एक सामूहिक कार्रवाई बनाना होगा। इससे सड़कों पर कम पानी होगा और इससे बाढ़ को रोकने में मदद मिलेगी। 

आवासीय और बाजार क्षेत्रों में सड़कें नालों और तालाबों में बदल जाती हैं क्योंकि इमारतों द्वारा अपने प्रवेश द्वार से सड़क तक रैंप बनाने के दौरान सड़कों के किनारे की जल निकासी को अक्सर सीमेंट से अवरुद्ध कर दिया जाता है। यह न केवल नालियों में पानी के प्रवाह को अवरुद्ध करता है, बल्कि यह स्वयं नाले के प्रवाह को भी बाधित कर देता है। रैंप के कारण निजी परिसरों का पानी सार्वजनिक सड़कों पर बहता है, जिससे लोगों की परेशानी और बाढ़ और ज्यादा बढ़ती है।

हमें रैंप हटाने तथा स्थानीय मानसून की जल नालियों को बहाल करने की जरूरत है। घर सड़क से इतने ऊँचे नहीं बनाए जा सकते कि वे आपदाओं में योगदान दें। जनहित में इस ऊँचाई के अंतर को फिर से डिज़ाइन और रेगुलेट करें। यह सुनिश्चित करें कि सभी परिसर पानी को ज़मीन में रिसने देने में सक्षम हों, न कि इससे सार्वजनिक स्थानों में बाढ़ आए।

MCD नालियों की सफाई जारी रख सकता है, लेकिन वे वर्तमान और भविष्य के दिल्ली की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अभी भी बहुत संकीर्ण/छोटे हैं। पूरी दिल्ली में नालियों को चौड़ा करना धीमा हो सकता है। इसे प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए सबसे पहले पूर्वी दिल्ली के निचले इलाकों में नालियों को चौड़ा किया जा सकता है। इसके अलावा ऊँचे इलाकों में और अधिक विकेन्द्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की आवश्यकता है। ऐसे तरीके बैकफ्लो को कम करने में मदद करते हैं। विकेंद्रीकृत सीवेज सिस्टम के लिए जगह की तलाश करनी होगी तथा उन्हें जलवायु के अनुसार स्मार्ट बनाने के लिए पैसे का आवंटन करना होगा। दिल्ली में 308 जलभराव वाले क्षेत्रों की पहचान हुई है। ऐसे क्षेत्रों पर विशेष कार्यवाई की आवश्यकता है। इसके लिए हमें राजनैतिक हितों से आगे बढ़कर सोचना होगा।  

जलवायु परिवर्तन के इस युग में हमें विनम्रता पूर्वक यह स्वीकार करना चाहिए कि हमने टाउन प्लानिंग में कुछ बुनियादी गलतियाँ की हैं और हमारी पहले की योजनाएँ अपेक्षा अनुरूप परिणाम नहीं दे रही हैं। हमें नए सिरे से सोचने एवं काम करने की आवश्यकता है। आर्थिक और पारिस्थितिक रूप से अभी साहसी होना, आलोचनाओं का सामना करना और निवासियों को ऐसा शहर देना बुद्धिमानी है, जिसमें अगले साल और उसके बाद जलवायु परिवर्तन के बावजूद बहुत कम बाढ़ आएगी। यदि हम पानी के अनुसार प्लानिंग करेंगे तो हमारा भविष्य बेहतर होगा। 

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