हमारे देश का अधिकांश हिस्सा इस समय भीषण गर्मी और हीट वेव से जूझ रहा है। इसके कारण तापमान अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है। मनुष्यों के तो पास पंखे, एयर कंडीशनर, वाटर कूलर और फ्रिज जैसी व्यवस्थाएं हैं लेकिन जानवरों, पक्षियों और कीड़ों जैसे गैर-मानव जीवित प्राणियों में इन सुविधाओं का नितांत अभाव है। हालांकि गर्मी से बचने की जो सुविधाएं मनुष्यों के लिए उपलब्ध हैं उनमें भी अमीर एवं गरीब का फर्क है। बहुत सारे गरीब लोगों के पास ये सुविधाएं नहीं हैं। परंतु आज हम मनुष्यों की नहीं बल्कि गैर-मानव जीवित प्राणियों की कर रहे हैं। गर्मी की लहर न सिर्फ इन प्राणियों को खतरे में डालती है, बल्कि मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय समस्याओं को भी उजागर करती है।
प्रकृति ने मौसम की मार से बचने के लिए सभी जीव जंतुओं हेतु प्रबंध किया है। हमारे परिवेश में नदी, तालाब, जंगल, पेड़ पौधे एवं अन्य कई प्राकृतिक आवरण मौजूद हैं जो मौसम की मार से जीव जंतुओं को राहत प्रदान करते हैं।
आज पशु और पक्षी जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं। छाया और हरियाली में कमी के कारण वे चिलचिलाती धूप के प्रति असुरक्षित हो गए हैं। शहरी क्षेत्रों में वन्यजीव, विशेष रूप से आवारा जानवर, अत्यधिक निर्जलीकरण और हीटस्ट्रोक का सामना करते हैं। यहां तक कि ग्रामीण आजीविका के लिए महत्वपूर्ण कृषि पशु भी इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं, जिससे दूध उत्पादन और खेती की गतिविधियां प्रभावित होती हैं। आज स्थिति यह आ चुकी है कि जो चीजें पशु पक्षियों को प्रकृति द्वारा स्वयं प्रदत्त थी आज उन चीजों के लिए ये जीव जन्तु मनुष्यों की दया पर निर्भर हो गए हैं। आज पशु पक्षी अपने खाने एवं पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए भी मनुष्यों की कृपा पर निर्भर हो गए हैं।
प्राकृतिक जल स्रोतों के विनाश, वनों की कटाई और शहरीकरण के माध्यम से मनुष्यों ने वर्तमान संकट में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। असल में हमारे शहरों की बनावट और बसावट में बुनियादी रूप से खामी है। शहर सिर्फ इंसानों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं और अब तो इन ज्यादातर शहरों में इंसानों के लिए भी साफ हवा और साफ पानी जैसी मूलभूत चीजे नहीं बची हैं। शहर प्रकृति के सहअस्तित्व (Coexistence) के सिद्धांत लिए खतरा है। शहरों के लिए मनुष्य को छोड़कर बाकी सारे जीव अनुउपयोगी हैं। शहरों की बनावट ऐसी है उनकी प्लानिंग ऐसी है जिसमें चिड़िया गा नहीं सकती, नदी का पानी अनवरत और प्राकृतिक तरीके से बह नहीं सकता, तालाब में मछलियां और कछुए सांस नहीं ले सकते, बरसात का पानी रिसते हुए भूजल तक नहीं पहुंच सकता, पेड़ पौधों को उगने के लिए जमीन नहीं मिल सकती और जीव-जंतुओं को प्राकृतिक भोजन नसीब नहीं हो सकता। आज इस भीषण गर्मी से स्थिति यहाँ तक पहुँच चुकी है कि हमारे कई बड़े शहरों में पक्षी प्यास के मारे हवा से जमीन पर गिरकर मर जा रहे हैं।
इस संकट से निपटने के लिए तथा सभी जीवित प्राणियों को अत्यधिक गर्मी से बचाने और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। आज हमें यह भी समझने की जरूरत है कि प्राकृतिक संसाधनों एवं पारिस्थितिक तंत्र पर जितना हक हम मनुष्यों का है उतना ही हक बाकी जीव जंतुओं का भी है।
- प्राकृतिक जल निकायों की बहाली:
- झीलों और तालाबों को पुनर्जीवित करें: स्थानीय सरकारों और समुदायों को प्राकृतिक जल निकायों को साफ करने और पुनर्स्थापित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी पुनःपूर्ति और रखरखाव किया जाए।
- वर्षा जल संचयन: भूजल स्तर को बढ़ाने और शुष्क अवधि के दौरान एक विश्वसनीय जल स्रोत प्रदान करने के लिए वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करें।
- हरित आवरण में वृद्धि:
- वनरोपण और पुनर्वनरोपण: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पेड़ लगाने से छाया मिल सकती है, तापमान कम हो सकता है और ये पेड़ वन्यजीवों के लिए आवास बन सकते हैं।
- हरित शहर योजना: शहरी हीट आइलैंड प्रभाव को कम करने के लिए शहरी योजना में पार्क, हरित पट्टी और छत पर उद्यानों को शामिल करना चाहिए।
- जल स्टेशन बनाना:
- पशु जल स्टेशन: आवारा और जंगली जानवरों को पानी प्रदान करने के लिए सार्वजनिक पार्कों, चिड़ियाघरों और पशु मार्गों के किनारे जल स्टेशन स्थापित करना चाहिए।
- पक्षी स्नानघर: पक्षियों को ठंडा और हाइड्रेटेड रहने में मदद करने के लिए नागरिकों को अपने बगीचों और बालकनियों में पक्षी स्नानघर लगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- आश्रय और छाया का निर्माण:
- पशु आश्रय स्थल: आवारा पशुओं को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आश्रयों का निर्माण करें।
- छाया हेतु शेड बनाना: पशुओं के लिए खेतों और खुले क्षेत्रों में छाया हेतु शेड बनाने के लिए बांस और छप्पर जैसी सामग्रियों का उपयोग करना चाहिए।
- सार्वजनिक जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी:
- शिक्षा अभियान: जीव जंतुओं पर भीषण गर्मी के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाएँ। संरक्षण प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- स्वयंसेवा: जल स्टेशनों के निर्माण और रखरखाव, पेड़ लगाने और वन्यजीव स्वास्थ्य की निगरानी में मदद करने के लिए स्वयंसेवी कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
- नीति और विनियमन:
- पर्यावरण कानून: वनों की कटाई और जल निकायों के प्रदूषण को रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण कानूनों को मजबूत और लागू करना।
- सतत विकास: उन नीतियों की वकालत करना जो पर्यावरणीय स्थिरता के साथ विकास को संतुलित करती हैं, प्राकृतिक संसाधनों की दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।
हीट वेव का संकट पर्यावरण के साथ हमारे अंतर्संबंध और टिकाऊ व्यवस्था को अपनाने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाता है। प्राकृतिक जल स्रोतों को बहाल करके, हरित आवरण बढ़ाकर, आश्रय प्रदान करके और सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाकर, हम सभी जीवित प्राणियों पर इस भीषण गर्मी के प्रभाव को कम कर सकते हैं। पर्यावरण की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि मानव और गैर-मानव दोनों जीव एक संतुलित और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र में पनप सकें।