इश्क करना इको फ्रेंडली है आप सोच सकते हैं कि इश्क तो कविता कहानी शायरी या रूमानियत का विषय है। लेकिन प्रेम पर्यावरण से जुड़ा हुआ विषय भी है।
एक प्रेम मूलक समाज (Love Centric Society) प्रकृति के लिए भय मूलक समाज (Fear Centric Society) से ज्यादा बेहतर है। “प्रेमी” सामान्यतः “प्रकृति प्रेमी” भी होते हैं। प्रकृति प्रेम के पक्ष में है न कि नफरत या घृणा के।
आइए हम समझते हैं कि प्रेम कैसे पर्यावरण को प्रभावित करता है। दुनिया भर में आमतौर पर देखा गया है कि खुले विचार वाले समाज (Open Minded Society) में जहां प्रेम पर पाबंदी नहीं है वहां लोग प्रकृति को लेकर ज्यादा जागरूक होते हैं।
ऐसे समाज में जहां महिलाओं को बराबरी का मौका मिलता है। जहां महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक शक्ति पर्याप्त रूप से मिली हुई है ऐसी जगहें पर्यावरण की दृष्टि से भी अच्छी हैं।
एक ऐसा समाज जहां आनर किलिंग, भ्रूण हत्या और लैंगिक भेदभाव जैसी चीजें घटित होती हैं। जहां शक्ति सिर्फ और सिर्फ पितृसत्ता और पुरुषों के हाथ में है। वहाँ का समाज प्रेम की जगह पर भय निर्मित होता है।
इस दुनिया की सभी भाषाओं में जो रूपक और बिंब प्रेम के इर्द-गिर्द बुने गए हैं उसमें प्रकृति का वर्णन बार बार मिलता है। जो साहित्य इश्क़ और रूमानियत के लिए लिखा गया हो उसमें प्रकृति का वर्णन न हो ऐसा बिरले ही होता है।
प्रेम प्रकृति का पर्याय है। बिना प्रेम के यह सभ्यता अकेलेपन के दर्द के तरफ से समाप्त हो जाएगी। आज समय है कि हम प्रेम को प्रोत्साहन देना शुरू करें। “प्रेम करना सामाजिक अपराध है” इस अवधारणा के खिलाफ लड़ें और प्रेम करते हुए लड़े।
हमें याद रखना चाहिए कि प्रेम भावना का विषय है तर्क का नहीं! इसलिए इसमें लोग दिल से काम लेते हैं। प्रेम उपयोगितावाद (Utilitarianism) के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार है।
आज हमें प्रकृति और पर्यावरण से भी तार्किकता की जगह भावनात्मक जुड़ाव बनाना होगा। तर्कवाद नफा- नुकसान देखता है। भावनाएं नफे- नुकसान से आकर जाकर काम करती हैं।
एक समाज जिसमें प्रेम को प्रोत्साहन दिया जाता हो और प्रेमियों को स्वीकार किया जाता हो! उस समाज में एकता भाईचारा और आपसी सहयोग अपने आप आ जाएगा।
प्रेम को प्रोत्साहन देने के लिए सबसे जरूरी यह है कि महिलाओं को पर्याप्त शक्ति दिया जाए। उन्हें घरों से बाहर निकलने का पर्याप्त मौका दिया जाए। उन्हें आगे बढ़ने के लिए बराबरी के अवसर दिए जाएं।
हमें प्रेम और प्रकृति की जुगलबंदी नए सिरे से परिभाषित करनी होगी। हमें नदियां, पर्वत, तालाब, फूल, और ताजी हवा जैसे रूपकों को फिर से जिंदा करना होगा। यह रूपक तभी जिंदा होंगे जब नदियां, पर्वत, तालाब फूल और ताजी हवा जैसी चीजें प्रदूषण इत्यादि से बचाई जाए।
हमें राधा, मीरा, कबीर, रसखान और कालिदास जैसे लोगों को अपने स्मृतियों से निकालकर हकीकत में बदलना होगा।
इस दुनिया को अब प्रेमी ही बचा सकते हैं
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