पर्व और पर्यावरण – Team Indian Environmentalism

पर्व और त्यौहार हमारी संस्कृति के अभिन्न हिस्सा रहे हैं। हमारी परंपरा में ऋतुओं के अनुसार त्यौहार हैं। फसल चक्र के अनुरूप त्यौहार हैं। तमाम लोक अनुभूतियों और स्मृतियों को संजोये हुए ये त्यौहार हमारे अतीत को वर्तमान से जोड़ते हैं और हमें भविष्य का रास्ता भी दिखाते हैं। इसके साथ ही त्यौहार हमें उत्सव धर्मी भी बनाने का प्रयास करते हैं अब हमारा समाज कितना उत्सव धर्मी बन पाता हैबये एक अलग विषय है (भारत दुनिया के सबसे कम खुशहाल देशों में से एक है)।

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“उत्तराखंड परियोजना” पर्यावरण के लिए एक अभिशाप – रत्नेश सिंह

चौड़ी सड़कें भला किसे पसंद न होगी, पहाड़ी रास्तों पर सफर करना और समय पर अपने ठिकानों पर पहुंच जाना किसे अच्छा नहीं लगेगा। लेकिन ये सवाल क्या कम अहम है, कि ये जंगल दोबारा मिल सकेगा ? ये पहाड़, छोटे-छोटे पेड़ पौधे, वनस्पति, झरने, वहां पर रहने वाले पशु-पक्षी, वहां की मिट्टी, हवा, ये…

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दिवाली क्यों मनाई जानी चाहिए – Team Indian Environmentalism

वह त्रेता युग था जब कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रावण का वध करके तथा 14 वर्षों के वनवास के उपरांत अयोध्या वापस लौटे थे। अपने प्रिय राजा के वापस लौटने के उपलक्ष्य में तथा अच्छाई की बुराई पर जीत की ख़ुशी में उस समय पूरा नगर दीपमालाओं से सजाया गया था। ऐसा कहते हैं कि उसी घटना के उपरांत दिवाली की शुरुआत हुई जो कि अब तक चली आ रही है। परंतु यह कथा लगभग सभी लोग जानते हैं।
‌हम सब यह जानते हैं कि दिवाली क्यों मनाई जाती है आज हम यहां जिन बिंदुओं पर बात करना चाहेंगे वह यह है कि, “दिवाली क्यों मनाई जा रही है!” या फिर “दिवाली क्यों मनाई जानी चाहिए!”

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शहरी बाढ़ ( Urban flood ) – मधुसूदन यादव

आज के दिन में अगर आप शहरों और आपदाओं के इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि कुछ आपदायें चेतावनी देकर जा चुकी होती है ,पर हमारा समाज उन आपदाओं का आना प्रकृति की नियति मानता है और अपने सामाजिक और आर्थिक नुकसान को देखना अपनी मजबूरी । सही मायने में देखा जाये तो संकट असल में आपदा का नहीं, संवेदनशीलता का है।

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Environmentalism of a school student

My Geography textbook mentions,”It is being said that the third World War will be fought over the issue of water.” This statement has made me pretty scared. It expresses how careless we humans have been towards our natural resources and the environment. Is it true that a day will come when our natural resources would have been exhausted? Do we have to struggle for fresh air, potable water and even for a place to live in, in the near future? And if it is so, who is responsible for it? We, or the generations above us?

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इश्क “Eco-friendly” है – Team Indian Environmentalism

इश्क करना इको फ्रेंडली है आप सोच सकते हैं कि इश्क तो कविता कहानी शायरी या रूमानियत का विषय है। लेकिन प्रेम पर्यावरण से जुड़ा हुआ विषय भी है।

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शहरों में जलजमाव की समस्या एवं समाधान – अतुल पांडेय

जल जीवन का पर्याय है। बात सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू करते हैं। जो कि इस दुनिया की सबसे प्रारंभिक सभ्यताओं में से एक थी। सिंधु घाटी सभ्यता में किसी भी भवन निर्माण से पहले जल निकासी या वाटर ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण पहले किया जाता था। किसी भी नए घर के बनने से पहले…

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गांव की ओर लौटो-4 – अतुल पांडेय

गांव से शहरों की तरफ पलायन का एक प्रमुख कारण गांव में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी होना है। श्रृंखला के इस लेख में हम यह समझेंगे कि स्वास्थ सुविधाओं की वर्तमान दशा क्या है। साथ ही हम यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि भविष्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जा सकता है।

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