प्रेम के प्रतीकों को पिंजरे में बंद कर दिया गया है। हमें लगता है कि पिंजरे में बंद चिड़िया गाती हैं जबकि वह चिल्लाती हैं। हमारी क्रोनोलॉजी कुछ ऐसी है कि जो सबके लिए उपलब्ध है उसे पहले विलुप्त कर दो और फिर उसे थोड़ा-थोड़ा करके बेचो। साफ पानी, साफ हवा, हरे-भरे जंगल, जीव-जंतु, पक्षी, मछलियां और सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य जैसी चीजें पहले सबके लिए उपलब्ध थी।आज हमें इन चीजों की भारी कीमत देनी पड़ती है।
वो लोग जो जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं उन्हें जलवायु संकट का सामना सबसे बुरी तरीके से करना पड़ता है। यहां बात गरीबों, वंचितों और जीव जंतुओं की हो रही है।
जंगलों को खत्म करके हम अपने घरों में छोटे-छोटे चिड़िया घर बना रहे हैं। तालाबों एवं नदियों को गंदा करके हमें घरों में एक्वेरियम बना रहे हैं। मछली, खरगोश, रंग-बिरंगे पक्षी, कुत्ते और बिल्लियों के आशियाने को हमने नष्ट किया है और अब इन्हें हम अपने घरों में पालने लगे हैं। लेकिन क्या हम इन जीव-जंतुओं के साथ न्याय कर रहे हैं? क्या हमारे शहर के घर इन जीव जंतुओं की शरीरिक, मानसिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैं। जीव जंतुओं की तमाम तरह की जरूरतें होती हैं। जैसे कि दौड़ना, कूदना, उछलना, सेक्स करना संतानोत्पत्ति करना और भी बहुत कुछ है।
तो क्या इंसानों द्वारा जीव जंतुओं के जीवन में इतना अतिक्रमण ठीक है?
असल में हमारे शहरों की बनावट और बसावट में बुनियादी रूप से खामी है। शहर सिर्फ इंसानों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं और अब तो इन ज्यादातर शहरों में इंसानों के लिए भी साफ हवा और साफ पानी जैसी मूलभूत चीजे नहीं बची हैं। शहर प्रकृति के सहअस्तित्व (Coexistence) के सिद्धांत लिए खतरा है। शहरों के लिए मनुष्य को छोड़कर बाकी सारे जीव अनुउपयोगी हैं।
शायद इसीलिए शहरों में सिर्फ इंसान आजाद है। बाकी जीव जंतुओं के लिए शहर एक पिंजरा है।
शहरों की बनावट ऐसी है उनकी प्लानिंग ऐसी है जिसमें चिड़िया गा नहीं सकती, नदी का पानी अनवरत और प्राकृतिक तरीके से बह नहीं सकता, तालाब में मछलियां और कछुए सांस नहीं ले सकते, बरसात का पानी रिसते हुए भूजल तक नहीं पहुंच सकता, पेड़ पौधों को उगने के लिए जमीन नहीं मिल सकती और जीव-जंतुओं को प्राकृतिक भोजन नसीब नहीं हो सकता।
शायद गांव की ओर लौटना ही पर्यावरण के हित में है विकेंद्रीकरण ही रास्ता है। हमें अपने शहरों में भीड़ कम करने की जरूरत है और शहरों की प्लानिंग को बुनियादी रूप से ठीक करने की जरूरत है।