जल जीवन का पर्याय है। बात सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू करते हैं। जो कि इस दुनिया की सबसे प्रारंभिक सभ्यताओं में से एक थी। सिंधु घाटी सभ्यता में किसी भी भवन निर्माण से पहले जल निकासी या वाटर ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण पहले किया जाता था। किसी भी नए घर के बनने से पहले यह तय किया जाता था कि इस घर की जलनिकासी कहां और कैसे होगी। बरसात का मौसम अपने अंतिम चरण में हैं। देश के ज्यादातर छोटे-बड़े शहर और कस्बे जलजमाव और जलभराव जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं। बारिश का पानी कई शहरों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर रहा है। जल निकासी की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है
इस लेख के माध्यम से हम समझेंगे कि ये स्थिति उत्पन्न क्यों हुई। इसके साथ ही हम यह भी समझेंगे कि इस स्थिति को समाप्त करने और जल प्रबंधन के लिए हम क्या कर सकते हैं। अंत में हम यह समझेंगे कि हम यह काम कैसे कर सकते हैं। मतलब यह है कि हम सबसे पहले समस्या को समझेंगे फिर उस समस्या को दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है ये समझेंगे फिर यह काम कैसे किया जा सकता है ये भी समझेंगे।
जल निकासी से जुड़ी समस्याओं की बात करें तो बिना प्लानिंग के शहरों का विस्तार, बिना प्लानिंग के भवन निर्माण, क्षेत्रीय भौगोलिक संदर्भ को ध्यान रखें बिना विकास मॉडल का अंधानुकरण, शहरों की अत्यंत घनी आबादी, सीवर इत्यादि की पर्याप्त व्यवस्था ना होना, वर्षा जल प्रबंधन का अभाव, पानी के बहने और रिसने के लिए पर्याप्त जगह और मिट्टी का अभाव होना, तालाब पोखरा इत्यादि को भरकर उस पर भवन निर्माण कर लेना इत्यादि है।
पानी का धर्म है बहना। लेकिन हम उसे बहने की जगह दे पाने में नाकाम हैं।साथ ही वह पानी बहकर कहाँ जाएगा इसकी भी समुचित व्यवस्था नहीं है। क्योंकि ज्यादातर तालाब इत्यादि हमने बर्बाद कर दिए हैं और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (STP) जैसी महंगी चीजें हर जगह उपलब्ध नहीं है।
अब सवाल ये है कि हमें इस समस्या के समाधान के लिए क्या करना होगा। इस बात को समझने के लिए हम समाधान को तीन चरणों में बांट देते हैं।
1.लघुकालिक उपाय (तुरंत अपनाए जाने वाले उपाय)
2.मध्यमकालिक उपाय (कुछ सालों के लिए अपनाए जाने वाले उपाय)
3.दीर्घकालिक उपाय (सारभौमिक उपाय)
यदि हम लघुकालिक उपायों की बात करें तो हमें बरसात की तैयारी पहले से करना शुरु करनी होगी। मानसून की तिथियां तय होती हैं फिर भी जब बरसात आ जाती है और जलभराव जैसी दिक्कतें होने लगती हैं तब हम काम करना शुरू करते हैं। हमें ये तैयारी बरसात से पहले करनी होगी। नालियों, सीवर लाइनों की सफाई बरसात से पहले की जानी चाहिए। MCD शहर निकायों के पास पर्याप्त मशीनें, संसाधन और टेक्निकल एक्सपर्ट होने चाहिए। गिरने वाली बारिश जल की मात्रा का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। इसके आधार पर हमें अपनी प्लानिंग पहले से मजबूत कर लेनी चाहिए। जहां सीवर इत्यादि की व्यवस्था नहीं है वहां वाटर पंप इत्यादि की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि जलभराव की स्थिति में पानी को Trapped Area से बाहर खींच कर कहीं और सीवर में छोड़ा जा सके। हमें ऐसी जगहों की पहचान बरसात से पहले कर लेनी चाहिए जहां जलभराव की स्थिति ज्यादा उत्पन्न होती है। ऐसी जगहों के लिए हम एक्स्ट्रा सीवर लाइन और वाटर पंप की व्यवस्था कर सकते हैं।
यदि मध्यम कालिक उपायों की चर्चा करें तो दो मुद्दों पर काम करने की जरूरत है। पहला वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting) और दूसरा सीवर लाइनों का निर्माण एवं वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट। अगर हम वर्षा जल संचयन की बात करें तो शहरों में घरों का आकार छोटा (2BHK, 3BHK)होने के कारण घरों में वर्षा जल संचयन करना थोड़ा कठिन है। लेकिन सामुदायिक स्थानों (कलेक्ट्रेट, न्यायालय क्षेत्र, बैंक, स्टेडियम, पुलिस लाइन, बड़े थानों, सरकारी तहसीलों इत्यादि) में यह काम बहुत आसानी से और बहुत प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। वर्षा जल संचयन से न सिर्फ ट्यूबेल, समरसेबल (भू-जल) इत्यादि पर निर्भरता कम होगी बल्कि इससे बारिश के पानी से जलभराव जैसी स्थिति को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। वर्षा जल संचयन बड़ी रेजिडेंशियल सोसायटी अपनाया जा सकता है।
अब बात करते हैं सीवर लाइनों के निर्माण और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट की। शहरीकरण की बढ़ती प्रवृति के कारण जो बिना प्लानिंग के शहरों का विस्तार हुआ है। उसमें सीवर लाइनों की अत्यंत कमी है। इसे तत्काल ठीक किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा छोटे शहरों और कस्बों में STP सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की कोई व्यवस्था नहीं है। जिससे कि सारा गंदा पानी नदियों इत्यादि में गिरता है और उसे दूषित करता है। आज वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट के लिए प्राकृतिक विधियां भी उपलब्ध हैं। ऐसे तमाम पेड़ पौधे हैं जिनका इस्तेमाल पानी को साफ करने एवं हेवी मेटल्स को सोखने (Absorb) में किया जा सकता है। अब दीर्घकालिक उपायों की बात करते हैं। ये ऐसे उपाय है जो पूरी परिस्थितिकी (Ecology) को सारभौमिक (Sustainable) बनाते हैं। इसके लिए हमें अपने क्षेत्रीय भौगोलिक संदर्भों के अनुसार काम करना होगा। हमें तालाब पुनर्जीवित करने होंगे। जिसमें वर्षा का अतिरिक्त पानी जमा किया जा सके। हमें कुआं इत्यादि बनाने होंगे जिससे भूजल को फिर से रिचार्ज किया जा सके।
पानी को बहने और जमीन में रिसने की जगह और स्वतंत्रता देनी होगी। हमें सारी की सारी जमीन को कंक्रीट से ढकने की संस्कृति बदलनी होगी। इससे शहरों में गर्मी भी बढ़ रही है और पानी भी जमीन के अंदर नहीं जा पाता। हमें शहरों की प्लानिंग प्रकृति को ध्यान में रखकर करना होगा। हमें भवन निर्माण की तकनीकी और भवन निर्माण में इस्तेमाल होने वाली चीजों को बदलना होगा।
इसके साथ ही सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें गांव से शहरों की तरफ होने वाले बेतहाशा पलायन को रोकना होगा। गांव में बेहतर जीवन उपलब्ध कराना होगा। यदि हम विकास की अवधारणा को गांव केंद्रित करते हैं तो इससे शहरों में भीड़ कम हो जाएगी और जल प्रबंधन जैसी चीजें आसान हो जाएंगी।
अब सवाल यह है कि इन समाधानों को लागू कैसे किया जाए। इसके दो पक्ष हैं सरकार और समाज। कुछ काम सरकार को करना होगा लेकिन सिर्फ सरकार को दोषी मान लेने से काम नहीं चलेगा। हमें समाज केंद्रित समाधान (People Centric Solution) ढूंढने होंगे। महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने कहा था, “The only solutions that are ever worth anything are the solutions that people find themselves”.
समाज को स्वयं पहल करनी होगी। मोहल्लों में आपसी मेल भाव के आधार पर औपचारिक एवं अनौपचारिक कमेटियां बनानी होंगी। जैसे भजन, सत्संग, दुर्गा पूजा, कृष्ण उत्सव, सरस्वती पूजा, ईद, मुहर्रम, संत रविदास पूजा इत्यादि कमेटियां काम करती हैं वैसी ही कमेटी “जल प्रबंधन” के लिए हर मोहल्ले में बनाने की जरूरत है। इसमें सभी आयु वर्ग के लोग हो सकते हैं। इन कमेटियों को जल प्रबंधन से जुड़ी चीजें सीखना होगा। चंदे इत्यादि की मदद से यह अपने मोहल्ले के लिए क्या उपयुक्त या अनुपयुक्त है इसकी राय किसी एक्सपर्ट या इंजीनियर से ले सकते हैं। इन कमेटियों को मानसून आने से पहले अपने मोहल्ले के लिए उचित प्लानिंग इत्यादि कर लेनी होगी। ऐसी जगहें जहां जलभराव अधिक होता है। उसके लिए व्यवस्था कर लेनी होगी। साथ ही स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर जानकारी इत्यादि शेयर करना होगा।
अपने मुहल्लों कैसे ज्यादा से ज्यादा इको फ्रेंडली बनाया जा सकता है यह देखना होगा। हमें समाज केंद्रित विकेंद्रीकरण की व्यवस्था पर काम करना होगा। हमें ऐसी जगहों की पहचान करनी होगी जहां तालाब और कुएं इत्यादि बनाए जा सकते हैं। समाज को पानी की समस्या को अपने एजेंडे में शामिल करना होगा। हमें यह समझना होगा कि हम यह काम सामूहिक रूप से ही कर सकते हैं। इसके अलावा सरकार और स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वह समाज के साथ मिलकर काम करे और व्यावहारिक समाधान ढूंढने में मदद करे।
अनुपम मिश्र जी ने कहा था, “पानी अपना रास्ता नहीं भूलता। तालाब हथियाकर बनाए गए मोहल्लों में बरसात में पानी भर जाता है और बरसात बीती नहीं कि इन्ही मोहल्लों में जल संकट के बादल छाने लगते हैं।” हमारी कहानी यही है। एक तरफ बारिश का साफ-सुथरा पानी सड़कों नालियों में बहता है वहीं दूसरी और हमारी आबादी के बड़े हिस्से को साफ पानी इस्तेमाल के लिए नसीब नहीं हो पाता। हमें जल प्रबंधन करना सीखना होगा।
हमें याद रखना चाहिए कि इस दुनिया में पानी पहले आया फिर मनुष्य आया यदि पानी चला गया तो हम भी नहीं बचेंगे। रहीम की बात से लेख को समाप्त करते हैं,
“रहिमन पानी राखिए
बिन पानी सब सून”
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