आज दुनिया के अधिकतर शहर ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझ रहे हैं। विकासशील देशों में तो स्थिति और ज्यादा खराब हैं। शहरों में भीड़ भाड़ बढ़ती जा रही हैं और बिना किसी
प्लानिंग के शहरों का विकास हो रहा हैं और दुनिया भर में इस बात की चर्चा होती रहती है कि आखिर ट्रैफिक जाम की समस्या का समाधान किया हैं। सबसे पहले हमें ट्रैफिक जाम के
कारणों को समझना होगा। ट्रैफिक जाम के कारणों को समझने के लिए हमें सड़कों के समाज शास्त्र को समझना होगा। सड़क पर प्राइवेट वाहन और कार वालों का कब्जा हैं । देश की
राजधानी दिल्ली में सिर्फ पंद्रह प्रतिशत लोग कार से सफर करते हैं लेकिन रोड़ स्पेस का 90 फीसदी हिस्सा कारों द्वारा इस्तेमाल कर लिया जाता हैं। रोड का अधिकतर स्पेस कारों द्वारा
अधिग्रहित होता हैं जबकि इन कारों में पंद्रह से बीस फीसदी लोग ही सफल कर पाते हैं। आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर दिनेश मोहन कहा करते थे कि किसी भी समाज के सड़क
के स्पेस ऐलोकेशन को देखिए आपको उस समाज के लोकतांत्रिक मूल्यों का पता चल जाएगा। उनका कहना था की सड़क डेमोक्रेटिक स्पेस हैं और सड़क पर किसके लिए कितनी जगह आवंटित हैं। इससे उस समाज के लोकतांत्रिक मूल्यों का पता चलता हैं। यदि सड़क पर ताकतवर लोगो का कब्जा हैं तो समाज पर भी ऐसे ही लोगों का कब्जा होगा और यदि सड़क
पर पैदल चलने वालों साइकिल वालों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे तो समाज के वंचित और गरीबों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे। इसके अलावा सड़कों पर लगी अनऑथराइज दुकाने, ठेले,
अनऑथराइज पार्किंग, ट्रैफिक की समस्या को और ज्यादा बढ़ाते हैं । ग्लोबलाइजेशन के कारण पूरे मानव सभ्यता की गतिशीलता में अमूल चूल रूप से बढ़ गयी है आर्थिक
गतिविधियों का केंद्रीकरण तेजी से बढ़ा हैं। बड़े शहर अर्थव्यवस्था के बड़े केन्द्र के रूप में उभरे हैं। जो छोटे शहर हैं वो बड़ा बनना चाहते हैं और जो बड़े शहर हैं वो और ज्यादा बढ़ा
बनना चाहते हैं। स्थिति ऐसी आ गई हैं कि दिल्ली खुद को लंदन जैसा बनाना चाहती हैं। बनारस, बलिया और गोरखपुर खुद को मुंबई और दिल्ली जैसा बनना और दिखना चाहते हैं।
सभ्यता की इस अंधी दौड़ ने सड़कों पर भीड़ बढ़ा दिया है और सारी दुनिया ट्रैफिक जाम से जूझ रही हैं।
Solving Traffic Jam
ये तो ट्रैफिक जाम के कारणों की बात हुई। अब बात करते हैं कि इस समस्या के समाधान की दिशा क्या हो सकती हैं। समाधान के लिए सबसे जरूरी बात यह हैं कि हम क्विक
फिक्स यानी तुरत फुरत के उपायों की जगह दूरगामी सोच के साथ आगे बढ़े I फ्लाईओवर, एक्सप्रेस हाईवे और बाईपास रोड जैसे समाधान त्वरित राहत तो दे सकते हैं
लेकिन ये समाधान सस्टेनेबल नहीं हैं। सड़क को चौड़ा करके नई लेन बनाना भी पर्याप्त नहीं है क्योंकि जिस गति से हम नई सड़क बनाते जाते हैं उससे कहीं ज्यादा गति से कारों की संख्या में वृद्धि होती जाती हैं। हमें दूरगामी उपाय करने होंगे। इसके लिए सबसे जरूरी हैं कि रोड स्पेस को समावेशी और समतापूर्ण बनाया जाए। रोड से कारों की संख्या को कम करना और ये सुनिश्चित करना की रोड पर सबके लिए न्यायोचित जगह की उपलब्धता हो। रोड स्पेस को समावेशी और समतापूर्ण बनाने के लिए ये बेहद जरूरी है कि हम सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दें । इसके लिए हमें सार्वजनिक परिवहन को सस्ता और सुगम बनाना होगा । एक ऐसी सार्वजनिक व्यवस्था बनानी होगी जो सबके लिए उपलब्ध हो। हमें रोड़ पर बसों के लिए अलग जगह देना होगा, ताकि सार्वजनिक परिवहन प्राइवेट वाहनों के बनिस्पत ज्यादा जल्दी लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा सके । इसके अलावा हमें अपने हाइवे प्लानिंग के परिकल्पना के केंद्र में कार वालों की जगह साइकिल और पैदल वालों का ध्यान रखना होगा । अंत में सबसे जरूरी बात क्या हैं की हमें लॉन्ग टर्म में एक विकेंदीक्रीत ढाँचा अपनाना होगा ताकि शहरों की तरफ भाग रही भीड़ को नियोजित किया जा सके।