1991 में शुरू हुए उदारीकरण के बाद हमारे यातायात की आदतों में तेजी से बदलाव हुआ है । वैश्वीकरण ने मानव गतिशीलता को बढ़ाया हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS- 5) के आँकड़े बताते हैं कि देश के 7.5 प्रतिशत परिवारों के पास अपनी कार हैं । 2018 में यह आँकड़ा 6 प्रतिशत का था । ठीक ऐसे ही 49.7 प्रतिशत परिवारों के पास दोपहिया वाहन हैं। 2018 में ये आँकड़ा 37.7 प्रतिशत का था । यदि साइकिल की बात करें तो 50.4 प्रतिशत परिवारों के पास साइकिल हैं । 2018 में यह आँकड़ा 52.1 प्रतिशत का था। ये आँकडे बताते हैं कि सड़क पर कार और बाइक वालों की संख्या बढ रही हैं वहीं साइकिल वालो की संख्या कम हो रही हैं। यदि राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां 19.4 प्रतिशत परिवारों के पास अपनी कार हैं। जैसे-जैसे कारों की संख्या बढ़ रही हैं वैसे-वैसे ट्रैफिक की समस्या भी बढ़ रही हैं। ट्रैफिक की समस्या से बचने के लिए और सुगम यातायात सुनिश्चित करने के लिए नए हाइवे लेन और एक्सप्रेस वे भी बनाए जा रहे हैं। बड़े शहरों में तो नए हाईवे लेन बनाने की जगह भी ना के बराबर बची हैं । पर्यावरण विषयों की लेखिका सुनीता नारायण ने अपनी पुस्तक कनफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट में राजधानी दिल्ली के बारे में दिलचस्प आँकड़ा दिया हैं। वो बताती हैं कि दिल्ली के 21 प्रतिशत क्षेत्रफल पर पहले ही सडकें बन चुकी हैं । इसके साथ ही वो ये भी बताती हैं कि दिल्ली के कुल सड़क यातायात के सिर्फ पंद्रह प्रतिशत लोग कार से सफर करते हैं लेकिन कुल रोड स्पेस का नब्बे प्रतिशत क्षेत्रफल इन कारों द्वारा इस्तेमाल कर लिया जाता हैं। यानी रोड स्पेस पर कारों का कब्जा हैं। बस, मोटर साइकिल, पैदल चालक, रिक्शा और साइकिल वालों के लिए रोड स्पेस पर बेहद कम जगह बचती हैं । यही नहीं रोड की पूरी डिजाइनिंग भी कार केंद्रित है । इन सारी चीजों का परिणाम ये निकलता है की हम साल दर साल नई रोड हाइवे लेन बनाते जाते हैं लेकिन कारों की संख्या हाइवे लेने से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ती हैं। इससे सड़क यातायात में ट्रैफिक की समस्या कम होने की बजाय बढती जा रही हैं। हमारे सामने बड़ा सवाल यह है कि भविष्य का सड़क यातायात कैसा होगा? 1955 में एक अमेरिकी लेखक और ईकोलॉजिस्ट लुईस ममफोर्ड ने अपनी किताब ‘द सीटी इन हिस्ट्री’ में लिखा हैं कि, “ट्रैफिक की भीड़भाड़ को कम करने के लिए नए हाइवे लेन बनाना ठीक वैसे ही है जैसे हम मोटापे को कम करने के लिए अपनी बेल्ट ढीली कर लें।” दोनों ही परिस्थितियों में कोई खास लाभ नहीं होता।
Solution for Traffic Congestion Problem
जरूरी यह हैं कि सड़क यातायात को समावेशी और समतापूर्ण बनाया जाए । एक ऐसी सड़क यातायात व्यवस्था होनी चाहिए जिस पर सबको न्यायोचित समतापूर्ण जगह मिल सके। इसके लिए जरूरी यह हैं कि रोड स्पेस का बंटवारा कार केंद्रित न होकर समतापूर्ण और समावेशी तरीके से हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आँकड़े के अनुसार राजधानी दिल्ली में होने वाले सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु का शिकार होने वाले लोगों में से 81 प्रतिशत लोग पैदल चालक, साइकिल चालक, मोटरसाइकिल सवार और साइकिल रिक्शा वाले थे।इसकी वजह साफ हैं। हमारी सड़कों की डिजाइनिंग और हमारे सड़क यातायात की कार्यशैली समावेशी नहीं हैं। संभावना इस बात की हैं कि भविष्य में शहरों में भीड़ और बढ़ेगी। यदि सड़क यातायात को समावेशी और समतापूर्ण नहीं बनाया गया तो इससे न सिर्फ ट्रैफिक जाम की समस्या बढ़ेगी बल्कि वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण और शहरों में गर्मी भी बढ़ेगी। भविष्य के शहर पर्यावरणीय दृष्टि से कितने टिकाऊ होंगे यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इन शहरों के सड़क यातायात को कितना समावेशी बना पाते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि यदि सड़क यातायात समावेशी होगा तो शहरों में हरियाली बढ़ेगी, वायु प्रदूषण कम होगा और हमारे शहर ग्लोबल वार्मिंग की गर्मी को बेहतर ढंग से सहन कर पाएंगे। इन सबके लिये हमें सड़क डिजाइनिंग के क्षेत्र में अपने कल्पनाशीलता को बेहतर करने की जरूरत है। बहुत सारे विकसित देश इस समय सड़कों में पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों को ध्यान में रखकर बना रहे हैं। बहुत सारे विकसित शहरों ने बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम भी अपनाया है। हमें सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। शहरों के कुल क्षेत्रफल का एक बड़ा हिस्सा कार पार्किंग में इस्तेमाल होता है। यदि सड़क यातायात समावेशी होगा तो शहरों में खाली जगह भी बचेगी। इन जगहों का इस्तेमाल सिटी पार्क, तालाब इत्यादि बनाने में किया जा सकता है। आज के समय में हमारे बड़े शहर प्राकृतिक सहअस्तित्व के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। हमारे शहरों की बनावट और बसावट ऐसी हो गयी है जिसमें चिड़िया गा नहीं सकती, नदी का पानी अनवरत और प्राकृतिक तरीके से बह नहीं सकता, तालाब में मछली और कछुए सांस नहीं ले सकते, बरसात का पानी रिश्ते हुए भूजल तक नहीं पहुंच सकता, पेड़ पौधों को उगाने के लिए जमीन नहीं मिल सकती, और जीव जंतु प्राकृतिक भोजन नसीब नहीं हो सकता है। शहरों की इकोलॉजी को सुधारने में समावेशी यातायात एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भविष्य का रास्ता यही है।
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