“उत्तराखंड परियोजना” पर्यावरण के लिए एक अभिशाप – रत्नेश सिंह

चौड़ी सड़कें भला किसे पसंद न होगी, पहाड़ी रास्तों पर सफर करना और समय पर अपने ठिकानों पर पहुंच जाना किसे अच्छा नहीं लगेगा। लेकिन ये सवाल क्या कम अहम है, कि ये जंगल दोबारा मिल सकेगा ? ये पहाड़, छोटे-छोटे पेड़ पौधे, वनस्पति, झरने, वहां पर रहने वाले पशु-पक्षी, वहां की मिट्टी, हवा, ये जंगल, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की! हाल ही में उत्तराखंड में एक परियोजना शुरू हुई है, जिसका नाम पहले ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट था, लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर चार धाम सड़क परियोजना किया गया। इस परियोजना के तहत उत्तराखंड के चारो धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को आपस में एक हाइवे से जोड़ने की योजना है।
इस परियोजना के तहत 826 किलोमीटर सड़कों का निर्माण होगा। सड़कों की चौड़ाई 12 मीटर किए जाने का प्रावधान है, सड़क के दोनों तरफ डबल लेन सड़के बनाई जायेंगी, कई जगह पर बाईपास सड़के, नए पुल और सुरंगे भी बनाई जायेंगी, पुरानी सड़कों को भी ठीक किया जाएगा। सरकार का सपना है कि चारधाम के लिए सड़कों को चौड़ा किया जाए, हाइवे को चौड़ा किया जाए,
निश्चित ही जनता की सुविधा के लिहाज से संवेदनशील इलाकों को देखते हुए यह जरूरी है। लेकिन सवाल यह है कि जो जरूरी है, उसे करते वक्त क्या हम हिमालय के पर्यावरण के संवेदनशीलता को ध्यान में रख रहे हैं?

चार धाम प्रोजेक्ट पर साल 2017 में काम शुरू हुआ था,लेकिन इसको लेकर कई शिकायतें आई, पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में पेड़ और पहाड़ों को काटने के तरीकों को लेकर इस योजना पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
चार धाम परियोजना में जब ऐसे कई सवाल उठे, तो सुप्रीम कोर्ट ने हाई पावर कमेटी बनाई।
व्यापक जांच पड़ताल के बाद कमेटी कई मुद्दों पर एक राय पर पहुंची। चार धाम परियोजना में भारी पहाड़ी कटान से नए भूस्खलन क्षेत्र सक्रिय हो गये, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और कैलाश मानसरोवर जाने वाले हाईवे पर कुल 174 स्थानों पर किए गए पहाड़ी कटान से 102 स्थान भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील हो गई है,
लैंडस्लाइड जोन नए सिरे से वहां एक्टिव हो गये है।
रिपोर्ट में यह बात भी मानी गई कि, योजना में पर्यावरणीय पहलुओं का ध्यान लगभग नगण्य रखा गया और
आपदा के पहलू से यह हाई रिस्क अप्रोच है।
हड़बड़ी में पहाड़ों में सड़क निर्माण के लिए पहाड़ी कटान के मलबे को अवैध तरीके से जंगलों में डाल दिया जा रहा है या घाटियों में उड़ेल कर भारी मलबे के डंप खड़े किए जा रहे हैं, जो बरसात में भयानक साबित हो रहे हैं। ऊपर से पानी आ रहा है और वह नीचे नदियों में बह जा रहा है।
परियोजना के दौरान जल स्रोतों और वन्य जीव प्रबंधन का अभाव रहा मतलब जलस्रोत कैसे बचे रहेंगे, उनका रास्ता आगे कैसे बनाया जाए, कोई ध्यान नहीं रहा, वन्यजीवों के लिए क्या किया जाए इस पर भी कुछ खास ध्यान नहीं रहा।
2006 में जब (EIA) ड्राफ्ट नोटिफिकेशन आया, उसके कुछ ही सालों बाद उसका संशोधन किया गया। जब यह संशोधन किया गया था, तो यह कहा गया था कि 100 किलोमीटर से जितने भी ज्यादा की सड़क परियोजनाएं होंगी, उनका एक एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट (EIA) होना कंपलसरी है।
फिर जब 826 किलोमीटर का चार धाम सड़क प्रोजेक्ट आया, तो इस पर कोई एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट नहीं किया गया।
क्योंकि यहां पूरे 826 किलोमीटर की रोड को 53 छोटे-छोटे प्रोजेक्ट में बांट दिया गया और हर एक प्रोजेक्ट को 100 किलोमीटर से कम लंबाई में डाल दिया गया,
पूरा का पूरा (EIA) ही बाईपास कर दिया गया, इसका नतीजा फलस्वरुप यह है कि आज हम 2020 में खड़े हैं, पिछले दो-तीन साल से जो भी कंस्ट्रक्शन उत्तराखंड में हुआ है, आज वह Landslide, Landsinking में आकर खत्म हो गया है, हर एक पहाड़ दरक रहा है,बहुत सारी Landslide Activate हो गई हैं, पहाड़ों का कटान किया जा रहा है,पेड़ काटे जा रहे हैं, ये सारे काम बिना किसी Sustainable Assessment के किया जा रहा है।
जैसा कि हम जानते हैं कि हिमालय क्षेत्र जो है वह “Youngest Fold Mountain of the world” है। मतलब यह जो क्षेत्र है अभी-अभी विकास हो रहा है यह अभी भी बढ़ रहा है, इनमें Rich Soil होती हैं। इसी पर ही पेड़ उगते है घास उगते हैं और इसी से ही पहाड़ बनता है। जिस तरीके से पेड़ों का कटान हो रहा है। पहाड़ों से निकलने वाली Soil को नदी में फेंक दिया जा रहा है यह अपने आप में ही एक Criminal Offence है।
यह पूरा एरिया हमारी खाद्य सुरक्षा, जल सुरक्षा से सीधा-सीधे संबंध रखता है। यहां से जितना भी जलस्रोत आता है, यह नीचे तराई और भाबर क्षेत्र को सिंचता है। अगर हम इन क्षेत्रों में अपने पानी की कटान कर देंगे, तो हमारी खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा एकदम खत्म हो जायेंगी।
पहाड़ पर जितनी सड़कें बनेंगी, पर्यावरण का उतना ही नुकसान होगा, सड़क बनाने के लिए जो हम मटेरियल यूज़ करते हैं, उनसे काली भाप निकलती है। काली सड़क की जो भाप बनकर उड़ेगा उसका जो वाष्पीकरण होगा, उसका असर आसपास के क्लाइमेट पर भी होगा।
वह भी इन क्षेत्रों में जहां पर ग्लेशियर इतनी ज्यादा स्पीड से Melt कर रहे है, इन सब चीजों का कोई आकलन नहीं है। हमें यह भी समझ होगा की यह कोई आइसोलेट प्रोजेक्ट नहीं है। हम केवल सिर्फ चार धाम प्रोजेक्ट की बात नही कह रहे है।
यहां बांधों का भी निर्माण हो रहा है। पर्यटन भी बहुत तेजी से बढ़ रहे है। यह एक ध्रुवीय इलाका है। यहां के पहाड़ बहुत ही भंगूर है। बड़ी मुश्किल से हजारों सालों में मिट्टी की थोड़ी मोटी परत यहाँ बनती है। उसके अलावा यहाँ चट्टान भी लगातार भूकंप के साथ दरक रहे है। हिमालय युवा है अभी भी बढ़ रहा है। इनमें लगातार भूकंप आते रहते हैं, दरारें हैं, इस तरह की छेड़छाड़ से जिस तरह के लैंडसाइड बड़ी संख्या में और जितने बड़े आकार में पैदा होंगे। अभी तक हमारे पास कोई भी पुख्ता उदाहरण नहीं है कि जो पहले की सड़कें में लैंडस्लाइड हुआ है उनको हम ने रोक दिया हो, चाहे कितना भी खर्चा हुआ हो।
इन सब की वजह से पहाड़ के ऊपर जो जलस्रोत हैं, छोटे-छोटे गांव हैं,वह नीचे आ जायेंगे। यहां पहले ही 102 लैंडस्लाइड हो गये है और भी होने की कगार पर है। अगले 10 साल के बाद यह रोड बहुत ही बड़े पैमाने पर तबाही मचाएगा जिसका आकार कितना बड़ा होगा, उसका आकलन करना भी मुश्किल है।
कुछ विशेषज्ञों की अहम राय है। बहुत अच्छी सड़कों का मतलब बहुत चौड़ा नहीं होता। अगर सड़क की चौड़ाई को 7 से 8 मीटर भी रखा जाए तो भी यह स्थानीय जरूरतों और सेना की जरूरतों के लिए ठीक रहेगा। ऐसा करने से अस्सी से नब्बे परसेंट पर्यावरणीय नुकसान कम होंगे,स्विजरलैंड और आल्पस की पहाड़ियों में भी 7 से 8 मीटर चौड़ी ही सड़कें हैं।
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश सहित तमाम उत्तरपूर्वी राज्यों से भूस्खलन, बाढ़ से ऐसी तस्वीरें आम हो गई है। बारिश का यह मौसम कुदरत के साथ खिलवाड़ किए गए हमारे सारे खिलौनों को हमेशा तोड़ रहा है। बीते कुछ सालों में हम बड़े-बड़े हादसे देख चुके हैं। उत्तराखंड में केदारनाथ से लेकर लद्दाख के लेह तक केरल से लेकर असम तक कोई भी जगह नहीं बची हुई है, ऐसे तमाम हादसों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए, क्या यह हमारी गलत नीतियों का नतीजा नहीं है? हमें अंततः इसका हल ढूंढना ही होगा।
WE DON’T HAVE TO SACRIFICE A STRONG ECONOMY FOR A HEALTHY ENVIRONMENT.

46 thoughts on ““उत्तराखंड परियोजना” पर्यावरण के लिए एक अभिशाप – रत्नेश सिंह

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  2. इसी तरह आप विचार प्रकट करते रहो, विचार धारा स्वतः परिवर्तित होगी।

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  4. मेरे भाई बहुत खूब लिखे हो बस आगे ऐसे ही लिखते रहो

  5. वर्त्तमान समय मे पर्यावरण से छेड़छाड़ उचित नही है। प्रकृति या पर्यावरण से छेड़छाड़ से हमे या हमारी आने वाली पीढ़ी को आने वाली आपदाओ का सामना करना पड़ेगा जिसके बारे में जानते हुए भी हम अनजान बन रहे है।

  6. After reading ur article no one can say that it’s ur first article and the top of article is very good and important…. Grt job👍👍

  7. विकास के नाम पर कंक्रीट का जंगल बनाया जा रहा है ।।
    धरती की प्राकृतिक सुंदरता का हनन किया जा रहा है ।।

  8. Great job sir👍🙏
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