स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल पुस्तक का सारांश

“स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल: ए स्टडी ऑफ इकोनॉमिक्स ऐज़ इफ पीपल मैटरड” जर्मन-ब्रिटिश अर्थशास्त्री ई. एफ. शूमाकर द्वारा लिखित एक प्रभावशाली पुस्तक है। यह पुस्तक 1973 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक आधुनिक आर्थिक नीतियों और बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास की आलोचना करती है और छोटे, टिकाऊ, और स्थानीय विकास पर जोर देती है। शूमाकर का तर्क था कि विकास का उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे मानव कल्याण, नैतिकता, और प्रकृति के प्रति आदर से जोड़कर देखा जाना चाहिए। 

शूमाकर ने इस पुस्तक में आर्थिक दर्शन को पुनर्विचार के लिए प्रस्तुत किया, जो “अर्थव्यवस्था के लिए स्थिरता” की अवधारणा पर आधारित है। उन्होंने तर्क दिया कि पर्यावरणीय संसाधनों की लापरवाह खपत और बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन मानवता और पृथ्वी दोनों के लिए हानिकारक हैं।

पुस्तक का उद्देश्य और पृष्ठभूमि

“स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल” का उद्देश्य पूंजीवाद और औद्योगिक विकास के विचारों को चुनौती देना है। शूमाकर का मानना था कि पश्चिमी औद्योगिक समाजों ने “बड़ा बेहतर है” के सिद्धांत को अपनाया, जो न केवल आर्थिक असमानता पैदा करता है, बल्कि पृथ्वी की प्राकृतिक सीमाओं का भी उल्लंघन करता है। शूमाकर का दृष्टिकोण था कि आर्थिक विकास का माप केवल आर्थिक लाभ या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि मानव जीवन की गुणवत्ता, सामाजिक न्याय, और पर्यावरणीय स्थिरता को भी इसमें शामिल करना चाहिए।

शूमाकर का आर्थिक दृष्टिकोण बौद्ध अर्थशास्त्र और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित था, जिसमें छोटे और स्वदेशी उत्पादन पर जोर दिया गया है।

पुस्तक के प्रमुख विचार

1. बड़े पैमाने पर उत्पादन की आलोचना

शूमाकर ने इस विचार को खारिज किया कि बड़े पैमाने पर उत्पादन और बड़े उद्योग मानवता की भलाई के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने के उत्पादन से न केवल संसाधनों की बर्बादी होती है, बल्कि यह पर्यावरण पर भी विनाशकारी प्रभाव डालता है। उन्होंने तर्क दिया कि बड़े उद्योगों के बजाय छोटे और स्थानीय उद्योग समाज के लिए अधिक लाभकारी हैं।उनका मानना था कि छोटा ही सुंदर है, क्योंकि यह समाज में स्थिरता और सामंजस्य को बढ़ावा देता है।

शूमाकर का मानना था कि छोटे उद्योग स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाते हैं, जिससे रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं और आर्थिक असमानता को कम किया जा सकता है।

2. बौद्ध अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण

शूमाकर ने बौद्ध अर्थशास्त्र को अपनाते हुए तर्क दिया कि सच्चा आर्थिक विकास वही है जो न केवल आर्थिक उन्नति बल्कि नैतिकता और आध्यात्मिकता पर भी आधारित हो। उनका कहना था कि जीवन का उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ कमाना नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें व्यक्तिगत विकास, शांति, और पर्यावरण के प्रति दायित्व भी शामिल होने चाहिए। 

बौद्ध अर्थशास्त्र में “अधिक से अधिक उत्पादन” की जगह “जरूरत के अनुसार उत्पादन” की बात कही जाती है। शूमाकर का मानना था कि यह दृष्टिकोण हमें प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशील बनाता है और संतुलित विकास की ओर ले जाता है।

3. गैर-नवीकरणीय संसाधनों का संरक्षण

शूमाकर ने गैर-नवीकरणीय संसाधनों, जैसे तेल, कोयला और खनिजों की अंधाधुंध खपत के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने इसे “भविष्य के साथ धोखाधड़ी” के रूप में देखा। उनका तर्क था कि इन संसाधनों को बुद्धिमानी से इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी वे उपलब्ध रहें। उन्होने कहा कि विकास का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि हम अपने बच्चों का भविष्य नष्ट कर दें। शूमाकर ने नवीकरणीय संसाधनों और ऊर्जा स्रोतों पर जोर दिया, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जल ऊर्जा, जिन्हें समय के साथ नष्ट नहीं किया जा सकता।

4. उपभोक्तावाद और नैतिकता

“स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल” में शूमाकर ने उपभोक्तावाद और भौतिकतावादी दृष्टिकोण की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि उपभोक्तावाद ने समाज को अपनी जरूरतों को बढ़ा-चढ़ाकर देखने के लिए प्रेरित किया है, जिससे न केवल पर्यावरण का नुकसान होता है, बल्कि लोगों के नैतिक मूल्यों में भी गिरावट आती है। 

शूमाकर ने तर्क दिया कि भौतिक समृद्धि की दौड़ से मनुष्य अपने नैतिक दायित्वों से दूर हो गया है और यह समाज में विषमता और असंतोष को जन्म देता है। उनका मानना था कि हमें अपनी जरूरतों को सीमित करना चाहिए और सादगी की ओर लौटना चाहिए।

5. टेक्नोलॉजी का इंसानों के अनुकूल उपयोग

शूमाकर ने यह भी कहा कि तकनीक का उद्देश्य मानवता की भलाई होनी चाहिए, न कि केवल उत्पादकता बढ़ाना। उन्होंने “मध्यम तकनीक” (Intermediate Technology) का विचार प्रस्तुत किया, जो कि साधारण और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हो। 

उनके अनुसार, अत्यधिक तकनीकीकरण के बजाय, हमें ऐसी तकनीक का उपयोग करना चाहिए, जो स्थानीय लोगों की जरूरतों के अनुसार हो और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान कर सके। यह विचार उन्होंने विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण बताया, जहाँ अत्यधिक आधुनिक तकनीक के बजाय सस्ती और अनुकूल तकनीकों की आवश्यकता है। उन्होने यह ज़ोर देकर कहा कि, तकनीक का उद्देश्य यह नहीं है कि वह केवल अमीरों की सेवा करे; उसे सभी के लिए सुलभ और सहायक होना चाहिए।

 6. स्थानीय और विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था का समर्थन

शूमाकर ने विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था का समर्थन किया, जहाँ स्थानीय स्तर पर उत्पादन और रोजगार के अवसरों पर जोर दिया जाता है। उनका मानना था कि केंद्रीकरण और बड़े पैमाने पर उत्पादन, समाज को असमान बनाता है। विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था में स्थानीय स्तर पर काम करने वाले उद्योग न केवल रोजगार का सृजन करते हैं, बल्कि पर्यावरण पर भी कम दबाव डालते हैं।

“स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल” की संरचना और प्रमुख अध्याय

अध्याय 1-4: आधुनिक अर्थव्यवस्था की आलोचना

शूमाकर ने आधुनिक अर्थव्यवस्था और बड़े उद्योगों की समस्याओं का विश्लेषण किया। इन अध्यायों में उन्होंने बताया कि कैसे बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है और समाज को असंतुलित बना दिया है। शूमाकर ने सुझाव दिया कि हमें एक अधिक संवेदनशील, नैतिक और पर्यावरण-संरक्षण केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

अध्याय 5-9: बौद्ध अर्थशास्त्र और नैतिकता

इन अध्यायों में शूमाकर ने बौद्ध अर्थशास्त्र और संतुलित जीवनशैली के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि कैसे एक सादा और आत्मनिर्भर जीवन न केवल व्यक्तिगत सुख का मार्ग है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर है।

अध्याय 10-13: गैर-नवीकरणीय संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग

इन अध्यायों में उन्होंने गैर-नवीकरणीय संसाधनों के दुरुपयोग और इसके दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में बताया। शूमाकर ने सुझाव दिया कि हमें इन संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर ध्यान देना चाहिए।

अध्याय 14-18: टेक्नोलॉजी और विकेन्द्रीकृत विकास

इन अध्यायों में शूमाकर ने मध्यम तकनीक और विकेन्द्रीकृत विकास की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी का उद्देश्य मानवता की भलाई होनी चाहिए और इसका इस्तेमाल स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन के लिए किया जाना चाहिए।

पुस्तक का प्रभाव और आलोचना

“स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल” के प्रकाशित होने के बाद, यह पुस्तक पर्यावरणीय आंदोलन और वैकल्पिक विकास मॉडलों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई। इसे एक ऐसी क्रांति की शुरुआत माना गया, जो पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, और समाज को संतुलन में रखने की आवश्यकता को समझती है। इस पुस्तक ने “सस्टेनेबल डेवलपमेंट” (Sustainable Development) के सिद्धांत को व्यापक समर्थन दिलाया।

हालाँकि, कुछ अर्थशास्त्रियों ने शूमाकर की विचारधारा की आलोचना की और इसे अव्यावहारिक बताया। उनकी राय थी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की जटिलताओं को छोटे स्तर पर नहीं सुलझाया जा सकता और बड़े उद्योगों की आवश्यकता को पूरी तरह से खारिज करना सही नहीं है। यह एक ऐसी विचारोत्तेजक कृति है जिसने आधुनिक समाज में अर्थशास्त्र और पर्यावरण के बीच के संबंध पर गहन प्रभाव डाला है। शूमाकर का संदेश यह था कि हमें केवल “अधिक उत्पादन” के बजाय “सही उत्पादन” पर ध्यान देना चाहिए। उनकी यह पुस्तक यह सिखाती है कि सच्ची सुंदरता छोटे और संतुलित चीजों में है, और हमें एक ऐसी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए जो मानवता, प्रकृति, और भविष्य के प्रति उत्तरदायी हो।

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