सोपान जोशी की Mangifera Indica: A Biography of the Mango एक ऐसी पुस्तक है, जो आम के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक महत्व की गहन पड़ताल करती है। यह आम के माध्यम से भारतीय समाज और इसकी गहरी परंपराओं को समझने का एक शानदार प्रयास है। पुस्तक आम को केवल एक फल तक सीमित नहीं करती, बल्कि इसे भारत की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक मानती है।
भारतीयों का आम के साथ जो रिश्ता है, वह अद्वितीय है और इसे बाहरी दुनिया के लोग पूरी तरह नहीं समझ सकते। जैसा कि जोशी बताते हैं, “दुनिया में किसी भी अन्य देश का फल के साथ वैसा गहरा और आत्मीय संबंध नहीं है जैसा भारत का आम के साथ है।”
आम के फूल से लेकर इसके पेड़ों और फलों तक, सब कुछ भारतीय जीवनशैली का हिस्सा हैं। यह सिर्फ फल नहीं है; यह भारतीय कला, साहित्य, प्रेम, और सांस्कृतिक रीतियों का एक महत्वपूर्ण अंग है।
भाग 1: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
पुस्तक की शुरुआत भारतीय इतिहास में आम की भूमिका से होती है। जोशी ने बताया कि 4,000 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता में आम का उपयोग होता था। खुदाई में मिले साक्ष्य बताते हैं कि तब भी आम का स्वाद भारतीय भोजन का हिस्सा था। इसके अलावा, आम की पत्तियाँ धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों में आज भी शुभता का प्रतीक हैं।
पुस्तक के अनुसार, मंगो ग्रोव्स (आम के बगीचे) गांवों और शहरों के सामाजिक और आर्थिक जीवन के केंद्र रहे हैं। जोशी का कहना है कि ऐतिहासिक युद्ध, जैसे पानीपत और प्लासी, अक्सर आम के बागानों के पास लड़े गए। यह दर्शाता है कि आम का स्थान भारतीय भूगोल और सामरिक योजनाओं में कितना महत्वपूर्ण था।
आम के फूल को भारतीय वसंत उत्सवों और कामदेव (प्रेम के देवता) से जोड़ा गया है। वसंत के आगमन के साथ आम के फूलों को नवजीवन और प्रेम का प्रतीक माना जाता था। किताब के इस हिस्से में सोपान जोशी ने आम से जुड़ी अपने बचपन की यादें भी साझा कि हैं।
भाग 2: जैविक और कृषि विकास
पुस्तक का दूसरा भाग आम के जैविक विकास और कृषि तकनीकों पर केंद्रित है। आम के 4.5 करोड़ साल पुराने इतिहास को वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत करते हुए जोशी बताते हैं कि भारत में लगभग 1,600 प्रकार के आम पाए जाते हैं। इनमें से प्रत्येक का स्वाद, बनावट, और महक क्षेत्रीय जलवायु और मिट्टी के अनुसार अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए:
- दक्षिण भारत के आम, जैसे बनगनपल्ली और तोतापुरी, अपनी अलग सुगंध और खट्टे स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं।
- उत्तर भारत में मिठास को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, जिसमें दशहरी और लंगड़ा आम प्रमुख हैं।
लेखक ने इस खंड में यह भी बताया है कि आम कैसे दूसरे फलों से अलग है तथा कैसे इसे जेनेटिकली मोडीफाई करना कठिन है। इसके साथ ही उन्होने आम के उत्पादन में आने वाली आधुनिक चुनौतियों को भी उजागर किया है। अत्यधिक रासायनिक उपयोग और जल्दी पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड जैसी हानिकारक तकनीकों के उपयोग ने आम की गुणवत्ता और स्वाद को प्रभावित किया है। उन्होंने इस पर भी प्रकाश डाला कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने आम की खेती और वितरण के तरीकों में कई बदलाव लाए।
भाग 3: आधुनिक समय में आम की विविधता और समस्याएँ
आम आज भी भारत के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जोशी ने बताया कि कैसे भूमि सुधार के दौरान बड़े पैमाने पर कृषि भूमि को आम के बगीचों में बदल दिया गया। इसका उद्देश्य था भूमि सीमा कानूनों से बचना। हालांकि, इससे किसानों और आम के पेड़ों के बीच एक प्रकार का अलगाव हो गया।
आम के निर्यात के लिए लंबे समय तक ताज़ा रखने वाली किस्में विकसित की गईं। लेकिन यह प्रक्रिया स्थानीय किस्मों और उनके प्राकृतिक स्वाद को कमजोर कर देती है।
लेखक ने इस बात पर भी ध्यान केंद्रित किया है कि आम भारतीय परिवारों के बीच सांस्कृतिक और भावनात्मक कड़ी कैसे है। आम के मौसम का इंतजार करना, उसके पकने की सुगंध, और उसका स्वाद लेना हर भारतीय के जीवन का हिस्सा है।
आम ने भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार और कूटनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह खंड “मैंगोनॉमिक्स” को समझाता है। भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा आम उत्पादक है, वह क्यों और कैसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है इस पर विस्तृत तरीके से प्रकाश डाला गया है।
सांस्कृतिक बदलाव
मुगल काल के दौरान, आम को उच्च वर्ग का फल माना जाता था। बाद में इसे अवामी फल (सभी के लिए फल) का नाम दिया गया। इससे आम की लोकप्रियता आम लोगों तक पहुंची। जोशी के अनुसार, सामाजिक और आर्थिक बदलावों ने आम की सांस्कृतिक छवि को बदल दिया है। लोगों की स्मृति आम के साथ साथ अमराई से भी जुड़ी हुई है। जैसे जैसे अमराइयाँ खत्म होती जा रही है लोगों की स्मृति भी धुंधली होती जा रही है। इसके अलावा उत्तर भारत के शहरों में सड़कों के दोनों तरफ आम के पेड़ लगाए जाते थे और इसे ठंडी सड़क का नाम दिया जाता था। ऐसी चीजें भी अब समाप्त हो चली है। आम अब सिर्फ एक बाजार की वस्तु बनकर रहा गया है।
पुस्तक का विशेष आकर्षण: यात्रा और किस्सागोई
सोपान जोशी ने अपने अनुभवों और यात्राओं को बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। वे पाठक को भारत के हर कोने में ले जाते हैं, जहाँ आम की विविधता और समृद्धि देखने को मिलती है। उनके कुछ अनुभव विशेष रूप से रोचक हैं:
- तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित वेल में संरक्षित आम का बगीचा।
- दरभंगा जिले में अकबर का विशाल बाग, जिसमें एक लाख आम के पेड़ थे।
- थार के रेगिस्तान में आम का बगीचा, जहाँ मिट्टी सिंधु घाटी सभ्यता से लाई गई थी।
जोशी ने एक तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया है। उत्तर-दक्षिण भारत के “कौन सा आम सबसे अच्छा है?” वाली बहस पर वे कहते हैं कि यह केवल दो खिलाड़ियों के बीच का शोर है, जबकि असली खेल कहीं और हो रहा है। उन्होने यह भी कहा है कि जो लोग सच में आम के जानकार है वो कभी इस बहस में नहीं पड़ते हैं। ऐसे लोग बहस करने की बजाय आपसे आपके क्षेत्र के आमों के विषय में बात करेंगे।
आम के प्रति प्रेम और सामाजिक चेतना
पुस्तक न केवल आम के स्वाद और इतिहास की बात करती है, बल्कि यह पर्यावरण, कृषि, और सांस्कृतिक संवेदनशीलता की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है। लेखक यह बताते हैं कि किस प्रकार ज़मीन पर लोगों का जुड़ाव आम की खेती से खत्म हो गया है और इसमें व्यापार की क्रूरता हावी हो गई है।
लेखक का यह निष्कर्ष पाठक के साथ लंबे समय तक गूंजता है:
“आपने किसी दुर्लभ किस्म के आम पर जितना भी पैसा खर्च किया हो, कहीं कोई बच्चा एक पेड़ से आम तोड़कर, जोखिम उठाकर, सबसे अच्छा आम पा रहा होगा। उस जोखिम में ही आनंद है।”
सोपान जोशी की पुस्तक Mangifera Indica: A Biography of the Mango न केवल आम प्रेमियों के लिए, बल्कि इतिहास, पर्यावरण, और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए भी एक शानदार पुस्तक है। यह पुस्तक भारतीय पर्यावरणवाद की जड़ों से जुड़ी है और हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर के महत्व का एहसास कराती है। यह केवल आम की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज, पर्यावरण, और सांस्कृतिक समृद्धि की एक जीवंत जीवनी है।