गर्मी की चिलचिलाती लहरों के बीच एयर कंडीशनर ( AC ) एक बड़ी राहत बन गया है, लेकिन यह सुविधा हमारे पर्यावरण और ऊर्जा संसाधनों पर कितना बोझ डाल रही है, इसका अंदाज़ा कम ही लोग लगाते हैं। अब भारत सरकार ने इस दिशा में एक साहसिक और ज़रूरी कदम उठाया है। देशभर में एसी के तापमान को नियंत्रित करने का प्रस्ताव, जो न केवल ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देगा, बल्कि पर्यावरणीय संकट से लड़ने की दिशा में भी मील का पत्थर साबित हो सकता है।
क्या है नया AC Temperature Rules ?
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने घोषणा की है कि देश में अब एसी का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम और 28 डिग्री से अधिक नहीं रखा जा सकेगा। यह सीमा सरकारी मानकों के अनुसार तय की जाएगी और इसे जल्द ही लागू करने की तैयारी है। इस नियम का उद्देश्य यह है कि लोग जरूरत से ज्यादा ठंडा वातावरण न बनाएं, जिससे बिजली की खपत घटे और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आए।
एसी और ऊर्जा खपत का रिश्ता
भारत में जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे एसी की मांग भी बढ़ रही है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल देश में रिकॉर्ड 1.4 करोड़ एसी बिके। ये आंकड़े बताते हैं कि लोग बढ़ती गर्मी से बचने के लिए एसी का रुख कर रहे हैं, लेकिन इसका असर हमारे बिजली तंत्र और पर्यावरण पर पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर, साल 2024-25 में भारत की बिजली मांग 250 गीगावॉट के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुकी है। इससे यह साफ़ है कि ऊर्जा खपत के स्रोतों को लेकर सोच-समझकर कदम उठाना अब समय की मांग है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि एसी जितना कम तापमान पर चलाया जाता है, उतनी ही ज़्यादा बिजली की खपत होती है। आमतौर पर लोग अपने घरों में 24-25 डिग्री तापमान पर एसी चलाते हैं, लेकिन दफ्तरों, मॉल्स और सिनेमाघरों में यह तापमान बहुत कम कर दिया जाता है, जिससे बिजली का अत्यधिक दवाब बनता है। एक अनुमान के अनुसार, एसी को 24 डिग्री पर रखने से 10-15% तक बिजली की बचत हो सकती है, जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी बल्कि आम लोगों के बिजली बिल में भी राहत मिलेगी।
भारत की नवीकरणीय ऊर्जा की प्रगति
हालांकि भारत नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद एसी के अत्यधिक उपयोग से परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर भारी दबाव बन रहा है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि हासिल की है। देश ने इस अवधि में 29.52 गीगावॉट नई नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ी, जिससे कुल स्थापित क्षमता बढ़कर 223.6 गीगावॉट हो गई है (3 जून 2025 तक), जो पिछले साल के 198.75 गीगावॉट से कहीं अधिक है। यह प्रगति भारत के 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता के लक्ष्य की ओर एक मजबूत और स्थिर क़दम है। फिर भी, जब तक बिजली का उपयोग विवेकपूर्ण नहीं होगा, तब तक यह प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकता।
शहरीकरण और एसी की बढ़ती मांग
भारत में शहरी आबादी तेजी से बढ़ रही है।भारत की नेशनल कमीशन ऑन पॉपुलेशन की रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2036 तक देश की लगभग 38% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहने लगेगी। । इसके चलते एयर कंडीशनर जैसी सुविधाओं की मांग भी बढ़ेगी, जो बदले में बिजली और ऊर्जा पर अधिक दबाव डालेगी।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष भारत में 1.4 करोड़ एसी की रिकॉर्ड बिक्री हुई। चंडीगढ़, दिल्ली, गोवा, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्य एसी खरीद में सबसे आगे हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि अब एसी केवल गर्मी से राहत का साधन नहीं बल्कि जीवनशैली का हिस्सा बन गया है।
लागू करने की चुनौतियां
यह नियम लागू करना आसान नहीं है। पुराने एसी मॉडल्स में तकनीकी रूप से इस तापमान सीमा को नियंत्रित करना संभव नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसे नए एसी की फैक्ट्री सेटिंग में जोड़ा जा सकता है, ताकि वे 20-28 डिग्री के बीच ही ऑपरेट कर सकें। लेकिन, ऑपरेशन थिएटर, डेटा सेंटर, कुछ उद्योगों व वैज्ञानिक संस्थानों में कम तापमान की ज़रूरत होती है, इसलिए सरकार को इन क्षेत्रों के लिए अपवाद तय करने होंगे।
आगे का रास्ता
सरकार उम्मीद कर रही है कि लोग स्वेच्छा से इस नियम को अपनाएंगे और यदि ज़रूरत पड़ी, तो भविष्य में इसे अनिवार्य भी किया जा सकता है। भारत सरकार का एसी के तापमान को नियंत्रित करने का फैसला एक दूरदर्शी और पर्यावरण-हितैषी कदम है। यह निर्णय ऊर्जा संरक्षण, जलवायु सुरक्षा और आमजन के बजट—तीनों पर सकारात्मक असर डाल सकता है। भले ही भारत नवीकरणीय ऊर्जा में रिकॉर्ड तोड़ उपलब्धि हासिल कर रहा है, लेकिन जब तक हम उपभोग की आदतों को संतुलित नहीं करते, तब तक हरित भविष्य केवल एक सपना बना रहेगा।
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