भारत में बीते कुछ वर्षों में डेंगू जैसी घातक बीमारी का प्रकोप न केवल महानगरों तक सीमित रहा है, बल्कि अब यह छोटे शहरों, कस्बों और यहाँ तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेज़ी से फैलने लगा है। आधुनिक शहरीकरण, बढ़ती भीड़भाड़ और असंगठित विकास के चलते डेंगू जैसी बीमारियाँ अब छोटे शहरों और गाँवों में भी आम होती जा रही हैं। इस लेख में हम इस समस्या का विश्लेषण करेंगे और इसके समाधान की संभावनाओं पर विचार करेंगे।
भारत का जनसंख्या और पर्यावरणीय संकट
भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, जहाँ गाँवों और शहरों का सदियों से सह-अस्तित्व रहा है। लेकिन विकास के इस नए मॉडल ने इन दोनों के बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी है। गाँव और कस्बों में जीवन शैली एक संतुलित संरचना के साथ थी, जहाँ हर घर में आँगन और खुले स्थान होते थे, जो न केवल एक स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण करते थे, बल्कि हवा और सूर्य का भी पर्याप्त संचार होता था।
आज, बढ़ती जनसंख्या और अनियोजित शहरीकरण ने हमारे कस्बों और शहरों में खुले स्थान लगभग खत्म कर दिए हैं। ठोस संरचनाओं, कंक्रीटीकरण और जलभराव के कारण कस्बों और गाँवों में भी स्वच्छता का अभाव हो गया है, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसे रोग फैलने लगे हैं। इसी कंक्रीटीकरण ने शहरों में हरियाली और स्वच्छता को भी समाप्त कर दिया है।
कस्बों और गाँवों में कंक्रीटीकरण और अनियोजित शहरीकरण
अधिकांश भारतीय शहरों और कस्बों का विकास बिना किसी दीर्घकालिक योजना के किया गया है। पहले हर घर में आँगन और खाली जगह होती थी, जो जल निकासी और स्वच्छता का एक प्राकृतिक प्रबंध था। आँगन धूप और हवा को घर में लाने का एक माध्यम होता था, जो स्वास्थ्य और जीवनशैली दोनों के लिए लाभकारी था। लेकिन आज के शहरी और कस्बाई क्षेत्रों में यह पारंपरिक संरचना समाप्त हो चुकी है।
शहरीकरण ने गाँवों और कस्बों में भी कंक्रीटीकरण को बढ़ावा दिया है, जहाँ पहले खुले मैदान, बगीचे, और पार्क होते थे, अब वहाँ ठोस इमारतें और संकरी गलियाँ हैं। इस विकास ने न केवल हवा और धूप के संचार को रोका है, बल्कि जलभराव की समस्या को भी बढ़ा दिया है। जलभराव मच्छरों के लिए एक आदर्श प्रजनन स्थल बनाता है, जो डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के प्रसार का मुख्य कारण है।
शहरी ढाँचे और संक्रामक रोगों का बढ़ता खतरा
अनियोजित शहरीकरण के चलते कस्बों और शहरों में जगह की कमी हो गई है। भारतीय शहरों का ढाँचा ऐसा है कि वहाँ लोगों के रहने के लिए न पर्याप्त जगह बची है, न ही धूप और हवा के आने-जाने का कोई स्थान है। इससे केवल मच्छरों का प्रजनन बढ़ा है, जो डेंगू जैसी बीमारियों के फैलने का मुख्य कारण है। घरों में खाली जगह या आँगन न होने के कारण सूर्य का प्रकाश ठीक से घरों में नहीं पहुँच पाता, जिससे घरों में नमी बढ़ जाती है और रोगों का प्रसार अधिक होता है।
शहरों में जलभराव की समस्या भी सामान्य हो गई है, खासकर बरसात के दिनों में। जल निकासी के अभाव और कंक्रीट की सड़कों ने जलभराव की समस्या को और भी बढ़ा दिया है। जलभराव न केवल यातायात को बाधित करता है बल्कि मच्छरों के लिए एक अनुकूल प्रजनन स्थल भी बनाता है। इन कारणों से डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं।
सतत विकास और कस्बों में खुली जगहों की आवश्यकता
शहरों और कस्बों में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए एक संतुलित विकास की योजना बनानी आवश्यक है। हमें एक ऐसे मॉडल की जरूरत है, जो न केवल शहरों बल्कि कस्बों और गाँवों के विकास को भी साथ लेकर चले। कंक्रीटीकरण की जगह, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके एक संरचना विकसित की जानी चाहिए, जहाँ खुले स्थान हों, पार्क हों और आँगन जैसी पारंपरिक संरचनाओं का समावेश हो।
हड़प्पा सभ्यता जैसे प्राचीन शहरीकरण मॉडल से हमें यह समझ में आता है कि वहाँ शहर और गाँव का एक संतुलित मॉडल था, जहाँ शहरों के आस-पास गाँव होते थे और दोनों का एक-दूसरे के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता था। इसी प्रकार, हमें आज भी एक ऐसी विकास योजना अपनानी चाहिए, जिसमें शहर और गाँव एक साथ विकसित हों।
समाधान और आगे का रास्ता
समस्या के समाधान के लिए हमें न केवल चिकित्सा विज्ञान पर निर्भर रहना चाहिए, बल्कि जल निकासी, कचरा प्रबंधन और स्वच्छता के अन्य उपायों को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं:
1. सतत विकास का मॉडल अपनाना: कंक्रीटीकरण की बजाय पारंपरिक संरचनाओं और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। कस्बों और शहरों में खुली जगहों का समावेश किया जाए, जिससे हवा और धूप का प्रवाह हो सके।
2. जलभराव की समस्या का समाधान: जल निकासी की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि बरसात में जलभराव न हो और मच्छरों के प्रजनन की संभावना कम हो सके।
3. ग्रामीण और शहरी विकास का संतुलन: गाँवों और कस्बों में रोजगार के अवसर उत्पन्न किए जाएँ ताकि शहरों की ओर पलायन कम हो। इससे शहरों की भीड़ भी घटेगी और कस्बों का आर्थिक विकास भी होगा।
4. सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय: सभी वर्गों तक स्वच्छता और स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचाई जानी चाहिए। केवल अमीर वर्गों तक ही नहीं, बल्कि मलिन बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्रों तक भी इन सेवाओं का विस्तार होना चाहिए।
5. स्थानीय स्व-सरकारों की भूमिका: स्थानीय स्व-सरकारों को अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि वे स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य और स्वच्छता की समस्याओं को कुशलता से निपटा सकें।
समय आ गया है कि हम अपने विकास मॉडल को पुनः परिभाषित करें। अगर हम डेंगू जैसी बीमारियों को रोकना चाहते हैं, तो हमें शहरीकरण के ऐसे मॉडल को अपनाना होगा, जो केवल इमारतों का निर्माण न करे, बल्कि स्वास्थ्य, स्वच्छता और पर्यावरण के संतुलन को भी बनाए रखे।
यह सुनिश्चित करना होगा कि यह विकास केवल अमीरों के लिए न होकर समाज के सभी वर्गों के लिए हो, ताकि हर व्यक्ति का स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। अगर समय रहते हमने इस दिशा में ठोस कदम उठाए, तो न केवल डेंगू जैसी बीमारियों पर नियंत्रण पा सकते हैं बल्कि एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
शहरों, कस्बों और गाँवों का एक संतुलित विकास मॉडल ही हमारे लिए बेहतर जीवन और स्वस्थ भविष्य की गारंटी दे सकता है।