FAO : Marine Life पर संकट

FAO report danger at Marine Life

संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3) के तीसरे संस्करण में दुनिया के सामने Marine Life की भयावह सच्चाई रखी गई है। FAO (Food and Agriculture Organization) द्वारा जारी “Review of the State of World Marine Fishery Resources – 2025” नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि गहरे समुद्र की जैवविविधता और प्रवासी शार्क अब टिकाऊ मछली पालन के दायरे से बाहर जा रही हैं। समुद्री संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने समुद्र की गहराइयों तक संकट पहुँचा दिया है।

FAO: महासागर में संतुलन बिगड़ा

FAO की रिपोर्ट का सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि गहरे समुद्र की केवल 29% मछलियाँ ही जैविक रूप से स्थिर तरीके से पकड़ी जा रही हैं। शेष 71% भंडार या तो ‘ओवरफिश्ड’ (overfished) हैं या संकट के कगार पर। यह स्थिति समुद्री पारिस्थितिकी के लिए गंभीर चेतावनी है। गहरे समुद्र में पाई जाने वाली प्रजातियाँ विशेष रूप से संवेदनशील होती हैं क्योंकि वे देर से प्रजनन के योग्य होती हैं, धीमी गति से बढ़ती हैं, लंबी उम्र की होती हैं और बहुत कम बार प्रजनन करती हैं। इन गुणों के कारण एक बार नुकसान होने पर इनकी भरपाई में दशकों लग सकते हैं।

प्रवासी शार्क पर संकट

23 प्रवासी शार्क प्रजातियों के भंडारों में से 43.5% अस्थिर पाए गए। ये शार्क अधिकतर ट्यूना पकड़ने के दौरान ‘bycatch‘ के रूप में फंस जाती हैं, जिससे इनकी संख्या में खतरनाक गिरावट आई है। पश्चिम-मध्य प्रशांत, पूर्वी हिन्द महासागर और पश्चिमी हिन्द महासागर ऐसे क्षेत्र हैं जहां सबसे अधिक शार्क मारी जा रही हैं। FAO ने साफ किया कि शार्क और किरण (rays) जैसे जीवों में जैविक रूप से पुनर्जीवन की क्षमता कम होती है, जिससे वे ओवरफिशिंग के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं।

वैश्विक स्थिति: कुल 2,570 मछली भंडारों का मूल्यांकन

इस रिपोर्ट को 600 से अधिक विशेषज्ञों, 90 देशों और 200 से अधिक संस्थानों ने मिलकर तैयार किया। इसमें पाया गया कि 64.5% मछली भंडार जैविक रूप से टिकाऊ हैं, जबकि 35.5% पर ओवरफिशिंग का खतरा मंडरा रहा है। FAO के मत्स्य और जलकृषि निदेशक मनुएल बारांगे ने कहा कि यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं बल्कि देशों के लिए नीतिगत कार्रवाई की बुनियाद है।

समाधान की चाबी

रिपोर्ट में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया कि प्रभावी और क्षेत्रीय प्रबंधन ही समुद्री संसाधनों को बचाने का सबसे बड़ा उपाय है। उदाहरणस्वरूप, ट्यूना और ट्यूना-जैसी प्रजातियों के 87% भंडार टिकाऊ पाए गए, क्योंकि इनका प्रबंधन क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठनों (RFMOs) के माध्यम से बेहतर तरीके से होता है। RFMOs के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में डेटा संग्रहण प्रणाली सशक्त है, निगरानी के लिए बोर्ड पर कैमरे हैं, और उपलब्ध मछलियों के लैंडिंग डेटा को भी लगातार रिकॉर्ड किया जाता है।

क्षेत्रवार आंकड़े क्या कहते हैं 

रिपोर्ट में क्षेत्रीय भिन्नताओं को भी स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है। पूर्वोत्तर प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक टिकाऊ मछली भंडार पाए गए हैं, जबकि दक्षिण-पश्चिम प्रशांत भी अच्छी स्थिति में है। इसके विपरीत, भूमध्य सागर और काला सागर क्षेत्र में केवल 35.1 प्रतिशत मछली भंडार ही जैविक रूप से टिकाऊ पाए गए, जो चिंता का विषय है। दक्षिण-पूर्व प्रशांत में यह आंकड़ा 46.4 प्रतिशत रहा। हालांकि, पूर्वी हिन्द महासागर में टिकाऊ भंडारों की दर लगभग 72.7 प्रतिशत आंकी गई है, लेकिन इस आंकड़े को लेकर रिपोर्ट ने सतर्क रहने की बात कही है क्योंकि यहां डेटा की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है, जिससे वास्तविक स्थिति को पूरी तरह समझना कठिन है। 

आगे का रास्ता क्या है 

FAO के महानिदेशक QU Dongyu ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि, “यह समीक्षा रिपोर्ट सरकारों को मछली पालन संसाधनों की सटीक स्थिति समझने में मदद देती है। इससे वे प्रमाण आधारित निर्णय ले सकते हैं और वैश्विक स्तर पर बेहतर तालमेल स्थापित कर सकते हैं।” गहरे समुद्र की जैव विविधता हमारे ग्रह के पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है। यदि हम अब नहीं चेते, तो भविष्य में हमारे पास न समुद्री भोजन बचेगा, न समुद्री जैव विविधता। यह रिपोर्ट न केवल संकट का दर्पण है, बल्कि समाधान का मार्गदर्शन भी करती है। अब समय आ गया है कि विश्व समुदाय मछली पालन को ‘उद्योग’ नहीं, बल्कि ‘उत्तरदायित्व’ माने। UNOC3 सम्मेलन का अगला चरण 2027 में प्रस्तावित है, जहां देशों के प्रयासों की समीक्षा होगी।

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