भारत में उदारीकरण के बाद आर्थिक संवृद्धि आई है जिससे एसी वाली कारों का चलन बढ़ा है। हालांकि, ये कारें कुछ लोगों को गर्मी से राहत जरूर देती हैं, लेकिन सड़कों पर भीड़भाड़, शोर, और अत्यधिक गर्मी जैसी समस्याओं का भी कारण बन गई हैं। निजी कारों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि से सड़कों पर न केवल यातायात जाम बढ़ा है बल्कि इनसे निकलने वाली गर्म हवा ने सड़क के वातावरण को और गरम कर रही है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में 7.5 प्रतिशत परिवारों के पास अपनी कार है, जबकि 2018 में यह संख्या 6 प्रतिशत थी। इसी तरह दोपहिया वाहनों की संख्या भी बढ़ी है, और 49.7 प्रतिशत परिवारों के पास दोपहिया वाहन है, जबकि 2018 में यह आँकड़ा 37.7 प्रतिशत था। दिल्ली जैसे महानगरों में स्थिति और गंभीर है, जहां 19.4 प्रतिशत परिवारों के पास कार है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय शहरों में केवल 15 प्रतिशत लोग ही कार से यात्रा करते हैं, परंतु सड़कों के 80 प्रतिशत भाग पर कारों का ही कब्जा है। इससे साइकिल और पैदल चलने वालों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि एक कार में अक्सर एक या दो लोग ही सफर करते हैं, लेकिन सड़क पर अधिक स्थान घेरे रहती है। इसके विपरीत, बस, ई-रिक्शा और ऑटो जैसे सार्वजनिक परिवहन के साधन अपेक्षाकृत कम जगह घेरते हैं और अधिक यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाते हैं।
गर्मी में एसी वाहनों से निकली गर्मी सड़कों को झुलसा रही है। जीटीबी नगर में काम करने वाले शंकर का कहना है कि जब एसी वाली बस उनके पास रेड लाइट पर रुकती है तो ऐसा लगता है मानो उसमें से आग निकल रही हो। शंकर दिल्ली की महंगी कॉलोनियों में काम के सिलसिले में साइकिल से आते हैं, क्योंकि पास में किराये पर कमरा लेना उनके लिए संभव नहीं है। उनके अनुसार, “गर्मी में सड़कों पर चलना बहुत कठिन हो जाता है, ऐसा लगता है जैसे चारों तरफ आग ही आग हो।”
लक्ष्मीनगर में रहने वाले गौरव, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, का भी कुछ ऐसा ही अनुभव है। वे बताते हैं कि “सड़कों पर पैदल और साइकिल चलाने वालों के लिए जगह नहीं बचती। कारें पूरी जगह घेर लेती हैं और फुटपाथ अतिक्रमण या पार्किंग में बदल गए हैं। इसके अलावा, गर्मी, शोर और धुआं जैसी परेशानियाँ भी होती हैं।”
कई अध्ययनों से यह भी साबित हुआ है कि सड़कों का तापमान आसपास के क्षेत्रों से अधिक होता है। ट्रैफिक जाम में फंसी एसी वाहनों से लगातार गर्म हवा निकलती है, जिससे सड़कों का तापमान तेजी से बढ़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, महानगरों में सड़कों का तापमान आसपास के इलाकों से 4-5 डिग्री सेल्सियस अधिक होता है। इस स्थिति का असर खासकर उन लोगों पर पड़ता है जो बिना एसी वाली गाड़ियों, साइकिल या पैदल चलते हैं।
शहरों में गर्मी और वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ रही हैं। बढ़ते तापमान और गाड़ियों से निकलने वाले प्रदूषकों में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे तत्व शामिल होते हैं, जो सांस संबंधी बीमारियों, हृदय रोग और यहां तक कि कैंसर के मामलों में भी बढ़ोतरी कर रहे हैं।
सड़कों पर बढ़ती गर्मी और भीड़भाड़ की समस्या से निपटने के लिए कुछ अनूठे समाधान सुझाए जा सकते हैं, जो ट्रैफिक के तापमान को कम करने के साथ-साथ पर्यावरण में भी सुधार ला सकते हैं। इनमें से पहला उपाय है “हीट-एब्जॉर्बिंग रोड मैटेरियल” और “कूलिंग कोटिंग्स” का इस्तेमाल, जो सड़कों पर सूर्य की रोशनी को रिफ्लेक्ट कर तापमान को घटाते हैं। जापान और अमेरिका जैसे देशों में इस तकनीक का सफल प्रयोग हुआ है और इसे भारत के बड़े शहरों में भी आजमाया जा सकता है।
दूसरा उपाय एसी वाहनों के लिए “कूलिंग एग्जॉस्ट टेक्नोलॉजी” है। इसके अंतर्गत गाड़ियों के एसी सिस्टम को इस तरह से डिज़ाइन किया जा सकता है कि वे गर्म हवा के बजाय ठंडी हवा छोड़ें। इसके लिए विशेष एयर कूलर्स और एक्सटर्नल एयर-कूलिंग सिस्टम्स का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो वाहनों से बाहर निकलने वाली गर्मी को नियंत्रित करने में सहायक होंगे।
तीसरा समाधान है सड़क किनारे हरित कोरिडोर का निर्माण। ये कोरिडोर पेड़-पौधों से भरे होंगे, जो पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों को छांव और ठंडक प्रदान करेंगे। विशेष प्रकार के पेड़ जैसे नीम, पीपल, और बरगद, जो अधिक ऑक्सीजन देने के साथ-साथ हवा को भी ठंडा रखते हैं, इस परियोजना के लिए उपयुक्त होंगे।
रेड लाइट्स पर “कूलिंग स्टेशन्स” का निर्माण करना भी एक अच्छा विचार हो सकता है। इन स्टेशन्स में ठंडी हवा वाले कूलर लगाए जा सकते हैं, जो रेड लाइट्स पर खड़े यात्रियों को गर्मी से राहत देंगे। यह सोलर एनर्जी या इलेक्ट्रिक पावर से संचालित हो सकते हैं और एसी वाहनों की गर्मी से बचाव में मदद करेंगे।
बड़े शहरों में अत्यधिक गर्मी पैदा करने वाले वाहनों पर “हीट टैक्स” लगाने का विचार भी कारगर हो सकता है। इस टैक्स से मिलने वाले फंड का इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने में किया जा सकता है। इसके साथ ही “ग्रीन टैक्स” के तहत ई-वाहन और साइकिल चलाने वालों को टैक्स में छूट देकर एक प्रोत्साहन भी दिया जा सकता है, जिससे लोग कम प्रदूषण वाले परिवहन को प्राथमिकता दें। साइकिल और दोपहिया वाहनों के लिए सड़कों पर विशेष एक्सप्रेस लेन भी बनाई जा सकती हैं। इस “बाइक लेन” से पैदल और साइकिल चालकों को सुरक्षित स्थान मिलेगा और ट्रैफिक का दबाव कम होगा, जिससे यात्रियों को सुविधाजनक यात्रा अनुभव प्राप्त होगा।
साइकिल चालकों और दोपहिया वाहनों के लिए सड़क किनारे “कूलिंग शेल्टर” भी बनाए जा सकते हैं, जहाँ वे कुछ देर ठंडी हवा में आराम कर सकें। ये शेल्टर सोलर पैनल से ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा। इन नवाचारी उपायों को अपनाकर शहरों में बढ़ती गर्मी और ट्रैफिक की समस्या का स्थायी समाधान किया जा सकता है। इससे न केवल शहरी जीवन आसान होगा बल्कि पर्यावरण में भी सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा।