पैदावार पर घाघ एवं भड्डरी की कहावतें

आप देखेंगे की इन कहावतों को इस तरह गढ़ा गया है की ये किसी भी आम इंसान को आसानी से समझ आ जाती है और याद हो जाती है। आज जब हमारी पर्यावरण शब्दावली कठिन शब्दों, जारगंस और अंग्रेजी के उल्टे सीधे अनुवादों से भरती जा रही है ऐसे में ये कहावतें हमें एक रास्ता बताती हैं कि पर्यावरण की भाषा कैसी होनी चाहिये। 

आइये इस लेख में पढ़ते हैं पैदावार से संबन्धित कहावतें। ये कहावतें महाकवि घाघ एवं भड्डरी के द्वारा कही गई हैं।

पानी बरसे आधे पूस । आधा गल्ला आधा भूस॥

आधे पूस में वर्षा होने से रबी की फसल (ज-गेहूँ) में आधा दाना होता है और आधा भूसा। अर्थात् अच्छी पैदावार होती है।

पुख पुनर्वसु भरै न ताल। फिर वो भरिहै अगले साल ॥

यदि पुनर्वसु ताल नहीं भरेगा तो उसके बाद वर्षा कम होगी और ताल अगले साल की वर्षा में ही भरने की आशा करनी चाहिये।

परुब कै बादर पच्छिम जाय। पतरी पकावैं मोटी पकाय॥ 

पुछिवाँ बादर पुरुव के जाय। मोटी पकावै पतरी पकाय॥

यदि पूरब का बादल पश्चिम को जाता हो तो शीघ्र वर्षा होगी- मोटी रोटी पकाकर झटपट खा लेना चाहिये। पतली रोटी पकाने के फेर में नहीं पड़ना चाहिये। यदि पश्चिम का बादल पूरब को जाता हो तो इत्मीनान से पतली रोटी पकानी चाहिये।

पूरब धनुही पच्छिम भानु। कहैं घाघ बरखा झलियान

यदि शाम को पूरब दिशा में इन्द्रधनुष उगे तो घाघ कहते हैं वर्षा की झड़ी लग जायेगी।

कहीं-कहीं झलियान की जगह नियरान कहा जाता है

नौमी माघ अँधेरिया, । मूल रिच्छ को भेद।

 तो भादों नवमी दिवस, जल बरसै बिन खेद।

यदि माघ बदी नवमी को मूल नक्षत्र पड़े तो भादो बदी नवमी को अवश्य वर्षा होगी।

धुर असाढ़ी बिज्जु की, चमक निरन्तर जोया 

सोमाँ सुकरौँ सुरगुराँ, तो भारी जल -होय॥

यदि आषाढ़ की पूर्णिमा को रह रहकर बिजली चमके और उस दिन सोमवार, शुक्रवार या गुरुवार हो तो गहरी वर्षा होगी।

धनुष पड़े बंगाली । मेह साँझ-सकाली।

यदि बंगाल (पूरब दिशा) की ओर धनुष उगे तो वर्षा शाम-सबेरे तक अवश्य होगी।

दिन का बहर रात निवहर। बहै परविया झब्बर- झब्बर ॥ 

कहें घाघ कुछ होनी होई। कुआँ के पानी धोबी धोई ॥

यदि दिन में बादल हो और रात में आकाश स्वच्छ रहे तथा पूर्वी हवा रुक रुककर चले तो चाथ कहते हैं कि कुये के पानी से धोबी को कपड़े धोने पड़ेंगे अर्थात् वर्षा नहीं होगी।

पैदावार

दिनमें गरमी रातमें ओस। कहैं घाघ बरखा सौ कोस ॥

यदि दिन में गरमी पड़े और रात में ओस गिरे तो समझना चाहिये कि वर्षा सौ कोस दूर है।

दूर गुड़ासा दूरै पानी। निभर गुड़ासा निभरे पानी ॥

यदि रीवाँ ऊँचे से बोले तो वर्षा दूर समझो। यदि वह नजदीक से बोले तो वर्षा निकट समझो।

दिन का बादर । सूम के आदर ॥

दिन का बादल (और रात में आसमान साफ) तथा सूम (मूर्ख) का आदर करना व्यर्थ है ।

पुरुवा बादर पच्छिम जाय । वासे वृष्टि अधिक बरसाय ॥ 

जो पच्छिमसे पूरब जाय । वर्षा बहुत न्यून हो जाय ॥

यदि पूरब के बादल पश्चिम की ओर जायें तो अच्छी वर्षा होगी। यदि वे पश्चिम से पूरब की ओर जायें तो बहुत ही कम वर्षा होगी।

पहिलै पानि नदी उफनाय । तौ जनियौ की बरखा नाय ॥

यदि वर्षा शुरू होते ही नदी उमड़ चले तो समझ लो कि वर्षा कम होगी।

पूनो परवा माजे । तो दिन बहत्तर बाजे ।

यदि आषाढ़ की पूर्णिमा और दोनों प्रतिपदा को बिजली चमके तो बहत्तर दिनों तक वर्षा होगी।

बोलै मोर महातुरी, खाँटी होय जु छाछ।

 मेह महीपर परन को, जानौ काछे छाछ 

यदि मोर विशेष आतुरता से बोले और मट्ठा खट्टा हो जाये तो ॥ काउ समझ लो कि पानी जमीन पर गिरने के लिये कछनी काछे खड़ा है।

बादर ऊपर बादर धावै । कह भड्डर जल आतुर आवै॥

यदि आकाश में बादल के ऊपर बादल दौड़ते दिखायी पड़े तो भड्डरी का कहना है कि शीघ्र ही वर्षा होगी।

वैसाख सुदी प्रथमै दिवस, बादर बिज्जु करेड़ । 

दामा बिना बिसाहिजै, पूरा साख भरेइ ॥

यदि वैशाख सुदी प्रतिपदा को बादल हो और बिजली चमके तो उस साल इतनी अच्छी पैदावार होगी कि लोग बिना दाम दिये अन्न पायेगे।

बोली गोह, फूली बन कास । अब नाहीं बरखा कै आस ॥

 गोह (गोहटा) बोलने लगे, बनमें कास फुल गये- अब वर्षा होने की उम्मीद नहीं है।

मघा के बरसे, माता के परसे। भूखा न मांगे, फिर कुछ हरसे ॥ 

मघा नक्षत्र के बरसने और माता के भोजन परोसने पर भूखे को भगवान् से भी नहीं मांगना पड़ता।

मघा, भूमि अघा ।

मघा की वर्षा से पृथ्वी तृप्त हो जाती है।’

पैदावार

माघ पूस जो दखिना चले। तो सावनके लच्छन भले ॥

यदि पूस और माघ में दक्षिणी हवा चलती है तो सावन में अच्छी वर्षा होती है।

मेदिनी, मेघा, भैंस, किसान । मोर, पपीहा, घोड़ा, धान। 

बाढ्यो मच्छ लता लपटानी। दसौ सुखी जब बरसै पानी॥

पृथ्वी, मेढक, भैंस, किसान, मोर, पपीहा, घोड़ा, धान, मछली और लता ये दसों तभी सुखी होते हैं जब पानी बरसता है।

सभी किसानी हेठी। अगहनिया पानी जेठी।

अगहन में सिंचाई करने से बड़ा लाभ होता है।

सावाँ साठी साठ दिना। जब पानी बरसै रात-दिना ॥

यदि पानी बराबर बरसता रहे तो सावां और साठी धान साठ दिनों में पक जाते हैं।

साठी होवै सठवें दिन । जब पानी पावै अठवें दिन ॥

यदि साठी धानको हर आठवें दिन भी पानी मिलता जाये तो वह साठ दिन में हो जाता है।

वायुमें जब वायु समाव। घाघ कहैं जल कहाँ समाय ॥

यदि एक दिशा की हवा में दूसरी दिशा की हवा मिल जाये अर्थात् एक ओर की हवा चलते चलते दूसरी दिशा की हवा बहने लगे तबघाघ कहते हैं कि ऐसी वर्षा होगी कि पानी कहीं नहीं अटेगा।

सुदी असाढ़ की पंचमी, गरज धमधमो होय 

तो यों  जानो भड्डरी, मधुरी  मेघा जोय ॥

यदि आसाढ़ सुदी पंचमी को बादल गरजे तो भडर का कहना है कि वर्षा अच्छी होगी।

सुदि असाढ़ नौमी दिना, बादर झीनो चन्द । 

जानै भड्डर भूमि पर, मानो होय अनन्द ॥

यदि असाढ़ सुदी नवमी तो चंद्रमा के ऊपर हल का बादल हो तो पृथ्वी आनन्दित रहेगी।

सावन पहली चौथ को, जो मेघा बरसाय। 

तो भाखै यों भडुरी, साख सवाई जाय ॥

यदि सावन बदी चौथ को पानी बरसे तो भड्डरी कहते हैं कि पैदावार सवाई अधिक होगी।

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