पिछले कुछ दशकों में माइक्रोप्लास्टिक का अस्तित्व और इसके दुष्प्रभाव तेजी से चर्चा में आए हैं। ये छोटे प्लास्टिक कण, जो पांच मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं, पर्यावरण में भारी मात्रा में पाए जाते हैं और धीरे-धीरे मानव शरीर में प्रवेश कर गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं। वैज्ञानिक शोधों ने इस ओर संकेत किया है कि माइक्रोप्लास्टिक न केवल जलवायु और पर्यावरण को बल्कि मानव स्वास्थ्य को भी भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
माइक्रोप्लास्टिक क्या है?
माइक्रोप्लास्टिक उन छोटे प्लास्टिक कणों को कहा जाता है जो पांच मिलीमीटर से कम आकार के होते हैं। ये प्रदूषक प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने से उत्पन्न होते हैं और अक्सर सौंदर्य प्रसाधनों में माइक्रोबीड्स के रूप में भी निर्मित होते हैं। माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषक नदियों, महासागरों और मिट्टी में पाए जाते हैं और ये पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा हैं। टॉक्सिकोलॉजिकल साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों द्वारा निगल लिया जाता है और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर मानव शरीर में पहुंच सकता है, जो स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर में कैसे प्रवेश करता है?
माइक्रोप्लास्टिक मुख्यतः निगलने और सांस के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करता है। दूषित भोजन और पानी इसके सबसे बड़े स्रोत हैं। प्रदूषित वातावरण के कारण समुद्री भोजन, नमक, बोतलबंद पानी, और यहां तक कि कुछ फलों और सब्जियों में भी माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं। मछली और शंख जैसे समुद्री जीव इन माइक्रोप्लास्टिक को निगलते हैं, जो फिर खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं।
सांस लेना भी एक अन्य मार्ग है, जिससे माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर में प्रवेश करता है। हवा में माइक्रोप्लास्टिक के कण मौजूद हो सकते हैं जो सिंथेटिक कपड़ों, टायरों और अन्य रोजमर्रा के उत्पादों से उत्पन्न होते हैं। घर के अंदर के वातावरण में, विशेष रूप से खराब वेंटिलेशन के कारण, इन वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक का स्तर बढ़ सकता है।
मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव
माइक्रोप्लास्टिक के छोटे कण निगलने और सांस लेने के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और अंगों में जमा हो सकते हैं। इससे सूजन और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने की संभावना होती है। अध्ययनों ने यह भी संकेत दिया है कि माइक्रोप्लास्टिक अंतःस्रावी कार्यों को बाधित कर सकते हैं, जिससे हार्मोनल असंतुलन हो सकता है। इनमें बिस्फेनॉल ए (बीपीए) और फ़ेथलेट्स जैसे हानिकारक रसायन भी हो सकते हैं, जो कैंसर, प्रजनन संबंधी समस्याओं और विकास संबंधी समस्याओं से जुड़े होते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक आंत के माइक्रोबायोटा को भी प्रभावित कर सकता है, जो पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली को खराब कर सकता है। लंबे समय तक माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में रहने से हृदय संबंधी बीमारियों और तंत्रिका संबंधी विकारों सहित पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है।
नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति
अभी हाल में ही ‘माइक्रोप्लास्टिक्स इन सॉल्ट एंड शुगर’ नामक एक अध्ययन में यह पाया गया कि देश में बिक रहे हर ब्रांड के नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है। यह अध्ययन टॉक्सिक्स लिंक नामक एक पर्यावरण अनुसंधान संगठन द्वारा किया गया, जिसमें विभिन्न प्रकार के नमक और चीनी के नमूनों का परीक्षण किया गया।
अध्ययन के अनुसार, नमक के नमूनों में प्रति किलोग्राम माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 6.71 से 89.15 टुकड़े तक पाई गई। आयोडीन वाले नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स की सबसे अधिक मात्रा (89.15 टुकड़े प्रति किलोग्राम) और ऑर्गेनिक रॉक सॉल्ट में सबसे कम (6.70 टुकड़े प्रति किलोग्राम) पाई गई। चीनी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 11.85 से 68.25 टुकड़े प्रति किलोग्राम तक पाई गई, जिसमें सबसे अधिक मात्रा गैर-ऑर्गेनिक चीनी में पाई गई।
स्तन के दूध में माइक्रोप्लास्टिक: एक गंभीर खतरा
2022 में एक शोध ने स्तन के दूध में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का पता लगाया। नवजात शिशु के लिए मां का दूध सबसे पौष्टिक और आवश्यक आहार माना जाता है। शिशु के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व इससे प्राप्त होते हैं। लेकिन इस अध्ययन ने चिंता का कारण बढ़ा दिया है, क्योंकि यह इंगित करता है कि माइक्रोप्लास्टिक मां के दूध में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे शिशुओं में संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने इस तथ्य का पता लगाने के लिए प्रतिभागियों के खान-पान और पर्सनल हाइजीन के लिए इस्तेमाल की जा रही अन्य चीजों का अध्ययन किया। हालांकि, इन चीजों से माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का कोई संबंध नहीं मिला। शोधकर्ताओं का मानना है कि पर्यावरण में बढ़ती माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा के कारण ये कण शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
अंडकोष में माइक्रोप्लास्टिक: प्रजनन क्षमता पर प्रभाव
2022 में न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में मानव अंडकोष में 12 प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। यह अध्ययन पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर माइक्रोप्लास्टिक के कारण होने वाले प्रभावों पर प्रकाश डालता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि कुत्तों के अंडकोष में भी माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति थी। कुत्तों के अंडकोष के ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक की औसत मात्रा 122.63 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम ऊतक थी, जबकि मनुष्यों में यह मात्रा 329.44 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम थी।
क्या किया जा सकता है?
माइक्रोप्लास्टिक का हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव गंभीर और चिंताजनक है। हालांकि शोधकर्ताओं का उद्देश्य लोगों को डराना नहीं है, वे इस सच्चाई को सामने रखना चाहते हैं कि हम सभी बहुत सारे माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में हैं। हमें अपने जीवनशैली और व्यवहार में परिवर्तन करने की आवश्यकता है ताकि हम माइक्रोप्लास्टिक के खतरों से बच सकें।
माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों को मिलकर काम करना होगा। प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को कम करना, पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना, और वैकल्पिक सामग्री के उपयोग को प्रोत्साहित करना कुछ महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। इसके अलावा, वैज्ञानिकों को माइक्रोप्लास्टिक के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अधिक गहराई से अध्ययन करने की आवश्यकता है ताकि इनसे बचाव के उपायों को विकसित किया जा सके।
निष्कर्ष
माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर वैश्विक समस्या है जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों पर गहरा प्रभाव डाल रही है। स्तन के दूध, अंडकोष और अन्य अंगों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति इस समस्या की गंभीरता को दर्शाती है। अब समय आ गया है कि हम इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें और इसे हल करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
माइक्रोप्लास्टिक का हमारे जीवन में बढ़ता हुआ प्रभाव हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम किस प्रकार के जीवन जी रहे हैं और भविष्य में हमें किस प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ सकता है। हमें अपनी आदतों और उत्पादों के उपयोग में बदलाव करने की आवश्यकता है ताकि हम अपने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर सकें।