नमस्कार दोस्तों आज हम आप के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं लोकज्ञान के पर्यावरण दर्शन से जुड़ी हुई देशज कहावतें।
आप देखेंगे की इन कहावतों को इस तरह गढ़ा गया है की ये किसी भी आम इंसान को आसानी से समझ आ जाती है और याद हो जाती है। आज जब हमारी पर्यावरण शब्दावली कठिन शब्दों, जारगंस और अंग्रेजी के उल्टे सीधे अनुवादों से भरती जा रही है ऐसे में ये कहावतें हमें एक रास्ता बताती हैं कि पर्यावरण की भाषा कैसी होनी चाहिये।
आइये इस लेख में पढ़ते हैं वर्षा से संबन्धित कहावतें। ये कहावतें महाकवि घाघ एवं भड्डरी के द्वारा कही गई हैं।
आद्रा तो बरसै नहीं, मृगसिर पौन न जोय ।
तौ जानौ ये भड्डरी, बरखा बूँद न होय ॥
यदि मृगशिरा में हवा न चले और आर्द्रा में वर्षा न हो तो भड्डरी का कहना है कि एक बूँद भी पानी नहीं बरसेगा ।
पहिला पवन पुरब से आवै। बरसै मेघ अन्न झरि लावै ॥
यदि वर्षा के प्रारम्भ में पहली हवा पुरुवा चले तो वर्षा अच्छी होती है और अन्न खूब होता है ।
माघ सुदी जो सप्तमी, बिज्जु मेह हिम होय ।
चार महीना बरससी, सोक करौ मति कोय ॥
यदि माघ सुदी सप्तमी को बदली, बिजली और गहरी सर्दी हो तो अगले बरसात में पूरा चार महीना पानी बरसेगा कोई सोच न करे।
माघ जो साते कज्जली, आवैं बादर होय ।
तो असाढ़ में धुरवा, बरसै चोसी जोय ॥
यदि माघ बदी सप्तमी और अष्टमी को बदली हो तो असाढ़ में निश्चय ही पानी बरसेगा ।
पूस अंधारी तेरसै, चहुँ दिसि बादल होय ।
सावन पूवो मावसै, जल धरनीमें होय ॥
यदि पूस बदी तेरस को चारो ओर बादल छाये हो तो सावन की अमावस्या और पूर्णिमा को पर्याप्त वर्षा होगी।
पूस अमावस मूलको, सरसै चारों बाय।
निहचैं बाँधो झोपड़ी, बरखा होय सेवाय ॥
यदि पूस की अमावस्या को मूल नक्षत्र पड़े, चौवाई हवा चले तो अपनी झोपड़ी ठीक से छाकर रखो। क्योंकि वर्षाकाल भर पानी खूब बरसेगा ।
जेठ मासको तपैं निरासा । तौ जानो बरखाकी आसा ।
यदि जेठ भर खूब तपे तो समझ लो अच्छी वर्षा होगी।
जो बदरी बादर माँ खमसै। कहैं भड्डरी पानी बरसै ॥
भट्टरी कहते हैं कि यदि एक बादल दूसरे बादल में घुसे तो पानी बरसेगा ।
मार्ग बदी आठ घन दरसै। तो मग्धा भरि सावन बरसै ॥
यदि अगहन बदी अष्टमी को बदली हो तो सावन में मघा नक्षत्र भर पानी बरसेगा ।
माघ अँधेरी सप्तमी, मेह बिज्ज दमकंत ।
मास चारि बरसै सही, मत सौचैं तू कन्त ॥
यदि माघ बदी सप्तमी को बदली छायी हो और बिजली चमके तो आगामी बरसात में चार महीने अच्छी वर्षा होगी।
माघ सप्तमी ऊजरी, बादर मेघ करंत।
तो असाढ़ में भड्डुरी, घनो मेघ बरसंत ॥
यदि माघ सुदी सप्तमी को बादलों से पानी गिरे तो भड्डरी कहते हैं कि असाढ़ में अच्छी वर्षा होगी।
फागुन बदी सुदूज दिन, बादर होय न बीज ।
बरसै सावन भादवा, साधो खेलो तीज ॥
यदि फागुन वदी दूज को आकाश स्वच्छ हो तो सावन भादो में अच्छी वर्षा होगी। आनन्द से तीज का पर्व मनाइये।
लगे अगस्त फुले बन कासा। अब छोड़ो बरखा की आसा ॥
अगस्त तारा के उदय हो जाने पर और बन में कास के फूलने पर वर्षा होने की आशा छोड़ देनी चाहिये।
लाल पियर जब होइ अकास। तब नाहीं बरखाकी आस ॥
जब आकाश लाल-पीला होने लगता है तब वर्षा की आशा नहीं रह जाती।
कलसे पानी गरम हो, चिड़ी बहावै घूर ।
अण्डा ले चिऊँटी चले, तौ बरखा भरपूर ॥
कार्तिक सुदी एकादसी, बादर बिजुरी होय ।
तो असाढ़ में भड्डुरी, बरखा चोखी होय ॥
यदि कार्तिक सुदी एकादशी को आकाश में बादल हो और बिजली भी चमके तो भड्डरी कहते हैं कि आषाढ़ में वर्षा अच्छी होगी।
कार्तिक सुद पूनो दिवस, जो कृतिका रिख होड़।
तापैं बादर बीजुरी, जो संयोग-सौं होइ ।
चार मास तौ बरखा होसी, भली भांति यों भाखँ जोसी ॥
यदि कार्तिक की पूर्णिमा को कृतिका नक्षत्र हो और आकाश में बादलों के बीच बिजली भी चमके तो वर्षाकाल के चारो महीनों में अच्छी वर्षा होगी।
करिया बादर जी डरवावै। भूरा बादर पानी लावै ॥
काला बादल केवल जी डरवाता है-पानी नहीं बरसाता, किन्तु भूरा भूरा बादल पानी बरसाता है।
ढेले ऊपर चील जो बोलै। गली गली में पानी डोलै ॥
यदि ढेले के ऊपर बैठकर चील बोले तो इतनी वर्षा होगी कि गलियों में भी पानी भर जायेगा।
तपै मृगसिरा जोय, तो पूरन बरखा होय।
मृगसिरा के तपने से वर्षा अच्छी होती है।
सावन सुकुला सप्तमी, उगत न दीखें भान ।
तब लगि देव बरसिंहैं, जब लगि देव बिहान ॥
यदि सावन सुदी सप्तमी को सबेरे आकाश मेघाच्छन्न रहे और सूर्योदय होते न दिखे तो वर्षा कार्तिक सुदी ११ (देवोस्थानी) तक होती रहेगी।
सावन सुकुला सप्तमी, जो गरजे अधिरात ।
तू पिय जायो मालवा, हाँ जै हौं गुजरात ॥
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे तो भयंकर अकाल पड़ेगा।
उत्तर चमकै बीजुरी,पूरब बहनो बाउ ।
कहैं घाघ सुनु भड्डरी, बरधा भीतर लाउ ॥
यदि उत्तर दिशा में बिजली चमके और पूर्वी हवा बहने लगे तो वर्षा होगी- बैलों को घर के भीतर बाँध देना चाहिये।
माघ मास जो परै न सीत। महँगा नाज जानियो मीत ॥
यदि माघ महीने में सरदी न पड़े तो समझ लो गल्ला महंगा होगा।
सावन सुक्र न दीसै, निहचै, पड़े अकाल ॥
यदि सावन महीने में शुक्रका दर्शन न हो तो अवश्य अकाल पड़ेगा।
दिनको बादर रातको तारे। चलो कंत जहं जीवैं बारे ॥
दिन में बादल और रात में आकाश स्वच्छ होकर तारे दिखाई पड़ रहे हैं। इसलिये हे स्वामी यह स्थान छोड़कर ऐसी जगह चलो जहाँ जीवित रह सकें। अर्थात् वहां अकाल पड़ेगा।
रात दिना घम छाहीं । घग्घा अब बरखा नाहीं ॥
यदि रात-दिन कभी धूप और कभी छाया होने लगे तो वर्षा नहीं होगी।
रात निचंदर दिन में छया । कहैं घाघ अब बरखा गया ॥
रात में आकाश स्वच्छ रहे और दिन में बादलों की छाया रहे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा नहीं होगी।
माघ क गरमी जेठ क जाड़। नदी-नार बहि चलै असाढ़ ॥
इतना कहै भडर कै जोइ । सावन बरखा कुट कुट होड़ ॥
यदि माघमें गरमी और जेठमें सर्दी पड़े तथा आषाढ़ में ही नदी- नाले उमड़कर बहने लगें, तो सावन में वर्षा बहुत कम होगी।
माघै गरमी जेठे जाड़। कहै घाघ हम होब उजाड़ ॥
माघ में गरमी और जेठ सर्दी पड़ने से दुर्भिक्ष पड़ता है।
माघ क ऊमस जेठ जाड़। पहिले बरखा भरिगा ताल॥
कहैं घाघ हम होब वियोगी। कुआँ खोदि के धोइहैं धोबी ॥
यदि माघ में गरमी पड़े और जेठ में जाड़ा हो तथा वर्षा शुरू होते ही ताल भर जाये तब घाघ कहते हैं कि हम विरक्त हो जायेंगे। क्योंकि सूखा पड़ जायेगा और धोबी भी कुयें के पानी से कपड़ें धोयेंगे ।
स्वाति विसाखा चित्तरा, जेठ सु कोरा जाय ।
पिछलो गर्भ गल्यो कहो, बनी साख मिट जाय ॥
यदि स्वाती, विशाखा और चित्रा नक्षत्र जेठ में कोरे जायें अर्थात् बदली भी न हो तो बरसात का पिछला गर्भ गला हुआ जानना चाहिये। बनी हुई साख भी चौपट हो जायेगी।
मोर पंख बादर उठे, राड़ा काजर रेख ।
वह बरसै वह घर करै, भायें मीन न मेख ॥
यदि मोर के पंख के समान बादल उठे तब वर्षा होगी। विधवा की आँखों में काजल की रेखायें लगी हो तो वह दूसरा पति करेगी, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।
कलसा-पानी गरम हो, चिड़िया न्हावै धूर ।
अंडा लै चींटी चलै, तो बरखा भरपूर ॥
यदि घड़े का पानी गरम प्रतीत हो, गौरैया पक्षी धूल में नहाये और चींटी अंडे लेकर चले तो भरपूर वर्षा होगी ।
कर्क के मंगल होयँ भवानी। दैव धूर बरसेंगे पानी ॥
यदि कर्क राशि का मंगल हो तो अच्छी वृष्टि होगी यह निश्चित है।
तीतर वरनी बादरी, रहै गगन पर छाय ।
कहै डंक सुनु भड्डरी, बिन बरसे न जाय ॥
हे भड्डरी, सुनो यदि तीतर के पंख के रंगके बादल आकाश में छाये हुए हो तो वे बिना बरसे नहीं जा सकते।
तीतर पंखी बादरी, विधवा काजर रेख ।
वह बरसै ऊ घर करै, कहैं भडुरी देख॥
यदि तीतर के पंख के रंग का बादल हो और विधवा की आंखों में काजल की रेखा हो तो वह बादल बरसेगा और विधवा दूसरे घर जायेगी यह बात भड्डरी की देखी हुई हैं।
भादोंकी सुदि पंचमी, स्वाति सँजोगी होय ।
दोनों सुभ जोगै मिलै, मंगल बरती लोय ॥
यदि भादों सुदी पंचमी को स्वाती नक्षत्र हो तो शुभ योग समझना चाहिये। लोगों का चैन से दिन बीतेगा।
भादों मासै ऊजरी, लखौ मूल रविवार ।
तो यों भाखै भड्डुरी, साख भली निरधार ॥
यदि भादों सुदी रविवार को मूल नक्षत्र पड़े तो भड्डरी कहते हैं कि पैदावार अच्छी होगी ।
अगहन द्वादस मेघ अखाड़। असाढ़ बरसे अछना धार ॥
यदि अगहन की द्वादशी मेघाच्छन्न हो तो आषाढ़ में वर्षा होगी।
जेठ उजारे पाख में, आद्रादिक दस रिच्छ ।
सजल होयँ निर्जल कह्यो, निर्जल सजल प्रतच्छ ॥ ।
यदि आर्द्रा आदि दस नक्षत्र जेठ के शुक्ल पक्ष में बरस जायें तो वर्षा में ये दसों नक्षत्र नहीं बरसेंगे और यदि ये न बरसे तो बरसात भर अच्छी वृष्टि होगी।
वर्षा नक्षत्र
पूस अँधारी सप्तमी, जो पानी नहिं देइ ।
तो अर्द्रा बरसै सही, जल थल एक करेइ ॥
यदि पूस बदी सप्तमी को पानी न बरसे तो आर्द्रा नक्षत्र में जल- थल को एक करनेवाली वर्षा होगी।
पूस बदी दसमी दिवस, बादल चमकै बीज ।
तो बरसै भरि भाद्रपद, साधो खेलौ तीज ॥
यदि पूस बदी दशमी को आकाश में बादलों के बीच बिजली चमके तो अगले पूरे भादों में बरसेगा । सब लोग आनन्द से तीज मनावें ।
राम बाँस जहँ धँसै अचूका। तहँ पानी कै आस अखूटा ॥
जहाँ रामबाँस आसानी से धँस जाये, वहाँ के कुएँ में अगाध जल होगा ।
ज्येष्ठा आर्द्रा सतभिखा, स्वाति सुलेखा माँहि ।
जो संक्रान्ति तो जानिये, महँगा अन्न बिकाहि ॥
ज्येष्ठा, आर्द्रा, शतभिषा, स्वाती और श्लेषा में संक्रान्ति पड़ने पर महँगा अन्न बिकता है।
मंगल सोम होय सिव राती । पछिवाँ वायु बहै दिन राती ॥
घोड़ा रोड़ा टिड्डी उड़े। राजा मरै कि धरती परै ॥
यदि शिवरात्रि मंगल या सोमवार को पड़े और दिन-रात पछिवां हवा भी चले तो घोड़ा, रोड़ा और टिड्डी नाम के कीड़े बहुत उड़ेंगे तथा या तो राजा की मृत्यु होगी या सूखा पड़ेगा।
पाँच सनीचर पाँच रवि, पाँच भौम जो होय ।
छत्र टूटि धरनी परै, अन्न महँगो होय ॥
यदि एक महीने में पांच शनिवार, पांच रविवार या पांच मंगलवार हो तो राजा का नाश होगा और अन्न महँगा होगा।
रबी उगते भादवा, अम्मावस रविवार।
धनुष उगते पच्छिमे, होसी हाहाकार ॥
यदि भाद्रपद की अमावस्या को रविवार हो और उसी दिन सूर्योदय काल में पश्चिम की ओर इन्द्र-धनुष दीखे तो हाहाकार मच जायेगा।
चित्रा स्वाति विसाखड़ो, जो बरसै आषाढ़
चालो नरा विदेसड़ो, परिहै काल सुगाढ़ ॥
यदि आषाढ़ में चित्रा, स्वाती और विशाखा नक्षत्र में वर्षा हो तो भयंकर अकाल पड़ेगा। मनुष्य मात्र को विदेश की राह लेनी होगी।
माघ अँजोरी चौथको, मेह बादरो जान।
पान और नारियल तै, महँगो अवसि बखान ॥
यदि माघ सुदी चौथ को वर्षा हो तो पान और नारियल को तुम महँगा हुआ समझो।
पाँच मंगरो फागुनो, पूस पाँच सनि होय
काल पर तब भडुरी, बीज बवौ जनि कोय ॥ ।
यदि फागुन में पाँच मंगल और पूष में पाँच शनिवार पड़े तो भड्डरी कहते हैं कि अकाल पड़ेगा। कोई बीज मत बोये, नहीं तो घर का अन्न भी नष्ट हो जायेगा।
रातै बोलै कागला, दिन में बौलै स्याल ।
तो यों भाखै भडुरी, निहचै परै अकाल ॥
यदि रात में कौवे बोलें और दिन में सियार तो भड्डरी कहते हैं कि निश्चय ही अकाल पड़ेगा।
रवि के आगे सुरगुरु, ससी सुक्र परबेस ।
दिवस जु चौथे पाँचवें, रुधिर वहन्तो देस ॥
यदि सूर्य के आगे बृहस्पति हों और चन्द्रमा-शुक्र के घेरे में प्रवेश करें तो उसके चौथे पाँचवें दिन ही देश में रक्त की धारा बहेगी।
होली शुक्र सनीचरी, मंगलवारी होय ।
चाक चहोड़े मेदिनी, बिरला जीवै कोय ॥
यदि होली शुक्र, शनि या मंगलवार को पड़े तो भयानक समय आयेगा। विरला ही कोई जीवित रह जायेगा ।
रात निर्मली दिन में छाहीं । कहैं भड्डरी पानी नाहीं ॥
यदि रात में आकाश स्वच्छ रहे और दिन में बादल छाये रहें तो भड्डरी कहते हैं कि पानी नहीं बरसेगा ।
आषाढ़ी पूनो दिना, निर्मल ऊगै चन्द ।
पीव जाहु तुम मालवा, अट्ठे छे दुख दंद ॥
आषाढ़ी पूर्णिमा को यदि चन्द्रमा निर्मल उगे तो हे स्वामी, मालवा चले जाना, क्योंकि यहाँ दुःखों से लड़ना पड़ेगा।
आर्द्रा, भरनी, रोहनी, मघा, उत्तरा तीन ।
दिन मंगल आँधी चलै, तब लौं बरखा छीन ॥ ।
यदि मंगल को आर्द्रा, भरणी, रोहिणी और तीनों उत्तरा (उत्तरा फाल्गुनी, उ०षाढ़ा, उ० भाद्रपद) में आँधी चले तो वर्षा कम होगी।
आगे मंगल पीछे भान । बरखा होवे ओस समान ॥
यदि आगे मंगल हो और पीछे सूर्य तो वर्षा ओस के समान होगी अर्थात् बहुत कम वर्षा होगी।
आगे मग्घा पीछे भान । बरखा होवै ओस समान ॥
यदि आगे मघा और पीछे सूर्य हो तो पानी नहीं बरसेगा ।
रोहिनी माहीं रोहिनी, एक घरी जो दीख ।
हाथमें खप्पर ये दिनी, घर घर मांगे भीख ॥
यदि रोहिणी में एक दंड भी रोहिणी रहे तो पृथ्वी खप्पर लेकर घर घर भीख मागेंगी।
चित्रा स्वाति विसाख हू, सावन नहि बरसंत ।
हालो अन्नै संग्रहो, दूनो मोल करंत ॥
यदि सावन के चित्रा, स्वाती और विशाखा नक्षत्र में न बरसे तो जल्दी से अन्न इकट्ठा कर लो। क्योंकि भाव दूना महँगा हो जायेगा।
मार्ग महीना माहिं जो, ज्येष्ठा तपैं न मूर।
तो यों बोलै भड्डरी, निपटैं सातो तूर ॥
यदि मार्गशीर्ष (अगहन) के महीने में ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र न तपें तो सातो तरह के अन्न न पैदा होंगे।
मार्ग बदी आठें घटा, बिज्जु समेती जोइ ।
तौ सावन बरसै भलो, साखि सवाई होइ ॥
यदि अगहन बदी अष्टमी को बादलों की घटा और बिजली हो तो सावन में वर्षा अच्छी होगी और पैदावार सवाई अधिक होगा।
माघ पांच जो हो रविवार, तो भी जोसी समय विचार।
यदि माघ में पांच रविवार पड़े तो भी ज्योतिषियों को विचार करना चाहिये कि कैसा विकट समय आयेगा।
मंगलवारी मावसी, फागुन चैती जोय ।
पसु बेचो कन संग्रहौ, अवसि दुकाली होय ॥
यदि फागुन और चैत की अमावस्या मंगलवार को पड़े तो पशुओं की बिक्री करके अन्न इकट्ठा कर लो। क्योंकि दुर्भिक्ष अवश्य पड़ेगा।
माघ उज्यारी तीजको, बादर बिज्जु जु देख ।
गेहूँ जौ संचय करौ, महँगा होसी पेख ॥
यदि माघ सुदी तीजको बादल और बिजली दीखे तो जौ-गेहूँ संचय कर लो क्योंकि दोनों चीजें महँगी हो जायेगी।
माघ जु परिवा ऊजरी, बादर वायु जो होय ।
तेल और सरपी सबै, दिन-दिन महँगो होय ॥
यदि माघ सुदी परिवाको बदली और हवा हो तो तेल और घी दिनो दिन महँगे होते जायेंगे।
कातिक मावस देखो जोसी। रवि सनि भौमवार जो होसी ॥
स्वाती नखत अरु आयुष जोगा । काल पड़े अरु नासै लोगा ॥
ज्योतिषी कार्तिक अमावस्या को देखे। यदि उस दिन रवि, शनि या मंगलवार हो, स्वाती नक्षत्र और आयुष्य योग हो तो अकाल पड़ेगा, जो मनुष्यों का नाश करेगा।
काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरौ । पूस अमावस की सुधि करौ ॥
मूल विसाखा पूर्वाषाढ़ । झूरा जानौ बहिरे ठाढ़ ॥
हे पंडित, पढ़ पढ़कर क्यों मरते हो ? पूस की अमावस्या की याद करो। यदि उस दिन मूल, विशाखा या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र पड़े तो समझ लो कि सूखा बाहर खड़ा है।
कर्क संक्रमी मंगलवार, मकर संक्रमी सनिहि विचार ।
पंद्रह मुहुरत बारी होय, देस उजाड़ करै यों जोय ॥
यदि कर्क की संक्रान्ति मंगलवार को और मकर की संक्रान्ति शनिवार को पड़े तथा वह पन्द्रह मुहूर्त को हो तो देश को उजाड़नेवाला अकाल पड़ेगा।
भोर समै डरडम्बना, रात उजेरी होय ।
दुपहरिया सूरज तपै, दुरभिछ तेऊ जोय ॥
यदि वर्षाकाल में सबेरे बदली हो, रात में आकाश निर्मल हो और दोपहर में सूर्य तपे तो दुर्भिक्ष अवश्य पड़ेगा।
नवै असाढ़े बादरो, जो गरजै घनघोर ।
कहै भड्डरी जोतिसी ,काल परै चहुँ ओर ॥
यदि आषाढ़ बदी नवमी को बादल जोर-शोर से गरजे तो भडूरी ज्योतिषी कहते हैं कि चारो ओर अकाल पड़ेगा।
जेठ बदी दसमी दिना, जो सनिवासर होय ।
पानी होय न धरनि पै, विरला जीवै कोय ॥
यदि ज्येष्ठ बदली दशमी को शनिवार पड़े तो वर्षा नहीं होगी और बिरला ही कोई जीवित रहेगा।
जेठ पहिल परिवा दिना, बुध वासर जो होय ।
मूल असाढ़ी जो मिलै, पृथ्वी कम्पै जोड़ ॥
यदि जेठ बदी परिवाको बुधवार पड़े और आषाढ़ी पूर्णिमा को . मूल नक्षत्र हो तो पृथ्वी कांपेगी।
भादों बदी एकादसी, जो ना छिटकै मेघ ।
चार मास बरसै नहीं ,कहे भड्डरी देख ॥
भरी कहते हैं कि यदि भाद्रपद कृष्ण एकादशी को बादल न छिटकें तो चार महीने तक वर्षा नहीं होगी।
जेठ उजारी तीज दिन, आर्द्रा रिख बरसंत ।
जोसी भाखे भड्डरी, दुर्भिक्ष अवसि परंत ॥
यदि ज्येष्ठ सुदी तीज को आर्द्रा नक्षत्र बरसे तो भड्डरी कहते हैं कि अकाल अवश्य पड़ेगा।
छः ग्रह एकै रासि विलोकौ । महाकाल को दीन्हो कोकौ ॥
यदि छः ग्रह एक ही राशि पर देखो तो महाकाल को निमंत्रण दिया हुआ समझो।
धुर असाढ़ की अष्टमी, ससि निर्मल जो दीख ।
पीव जाइके मालवा, माँगत फिरिहै भीख ॥
असाढ़ बदी अष्टमी को यदि चन्द्रमा निर्मल हो तो अकाल पड़ेगा। मेरे पति मालवा जाकर भीख माँगते फिरेंगे।
चैत मास दसमी खड़ा, बादल बिजुरी होय ।
त जानो चित माहिं यह, गर्भ गला सब जोय ।
यदि चढ़ते चैत की दसमी को बादल में बिजली हो तो मन में यह समझ लो कि वर्षा का गर्भ गल गया अर्थात् वर्षा बहुत कम होगी।
चैत मास उजियारा पाख। आठें दिवस बरसती राख॥
नव बरसे, जिस बिजली जोय।-ता दिसि काल हलाहल होय ॥
यदि चैत सुदी अष्टमी को धूल बरसती हो और नवमी को वर्षा हो तो जिस ओर बिजली चमकेगी उस ओर भयंकर अकाल पड़ेगा।
रिक्ता तिथि अक्रूर दिन, दुपहर अथवा प्रात ।
जो संक्रान्ति सो जानियो, संवत महँगो जात ॥
चौथ, चतुर्दसि, नौमी रिक्ता और शनिवार आदि को दोपहर या प्रातः काल में संक्रान्ति पड़ने पर वह संवत् महँगा जाता है।
दो आश्विन दो भादों, दो असाढ़के माँह ।
सोना चाँदी बेचिकै, नाज बिसाहो साह ॥
दो आश्विन, दो भादों या दो आषाढ़ पड़ने पर सोना चांदी बेंचकर अन्न खरीद लेना चाहिये।
वर्षा नक्षत्र
जिन बाराँ रवि संक्रमै, तिनै अमावस होय ।
खप्पर हाथ लै जग भ्रमै, भीख न घालै कोय ॥
जिस वार में संक्रान्ति हो उसी वारको यदि अमावस पड़े तो घोर दुर्भिक्ष पड़ेगा-भीख माँगने पर भी कोई भीख नहीं डालेगा।
अथवा नौमी निर्मली, बादर रेख न जोय ।
तौ सरवर भी सूखहीं, महिमें जल ना होय ॥
यदि माघ सुदी नौमीको आकाश निर्मल रहे तो तालाब सूख जायेंगे और पृथ्वी पर एक बूँद पानी भी नहीं रहेगा।
माघ सुदी पूनो दिवस, चंद निर्मलो जोय ।
पसु बेंचो कन संग्रहौ, काल हलाहल होय ॥
यदि माघकी पूर्णिमा को चन्द्रमा स्वच्छ रहे तो पशुओं को बेंचकर अन्न का संग्रह करो महा अकाल पड़ेगा।
सावन सुक्ला सप्तमी, छिपिकै उवै जो भान ।
तब लगि देव बरीसिहैं, जब लगि देव बिहान ॥
यदि सावन शुक्ल सप्तमी को बादलों के कारण उगते हुए सूर्य दिखाई न पड़े तो कार्तिक सुदी ११ तक वर्षा होती जायेगी।
सावन करै प्रथम दिन, उवत न दीखै भान ।
चार मास जल बरसै, याको है परमान ॥
यदि सावन कृष्ण प्रतिपदा को बादलों के कारण उगते हुए सूर्य न दिखायी पड़े तो चार महीने तक वर्षा होगी।
सावन बदी एकादशी, बादर उगै सूर ।
तो यों भाखे भडुरी घर घर बाजै तूर ॥
यदि सावन बदी एकादशी को उदय कालीन सूर्यपर बादल रहें। तो भड्डरी कहते हैं कि घर-घर आनन्द की बाँसुरी बजेगी।
सावन पछिवाँ भादों पुरुवा, आस्विन बहै इसान।
कातिक कंता सींक न डोलै, गाजैं सवै किसान ॥
यदि सावन में पछिवाँ, भादो में पुरुवा और आश्विन में ईशान कोण की हवा चले तथा कार्तिक में एक सींक भी न डोले, कोई हवा न चले तो हे स्वामी! सभी किसान सुखी रहेंगे।
सावन शुक्ला सप्तमी, गगन स्वच्छ जो होय |
कहै घाघ सुनु भड्डरी, पुहुमी खेती खोय ॥
यदि सावन के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को आकाश स्वच्छ हो तो पृथ्वी खेती को खो देगी।
सावन शुक्ला सप्तमी, उवत न देखिय भान।
तब लगि दैव वरीसैं, जब लगि देव विहान ॥
यदि सावन शुक्ला सप्तमी को उदय काल में सूर्य दिखाई न पड़े, तो जब तक देवताओं का सबेरा नहीं होता अर्थात् देवोत्थान एकादशी नहीं बीत जाती, तब तक वर्षा होती रहती है।
सावन सुकला सप्तमी जौ गरजै अधिरात ।
तू पिय जायौ मालवा हौं जइहौं गुजरात
यदि सावन शुक्ला सप्तमी को आधीरात के समय बादल गरजे तो घोर अकाल पड़ेगा।
एक पानी जो बरसै स्वाती । कुरमिन पहिरै सोनेके पाती ।
यदि स्वाती नक्षत्र एक बार बरस देता है तो कुर्मिन भी सोने के गहने पहनती है।
एक बूँदो चैत में परै। सहस बूँद सावन में हरै ॥
यदि चैत में एक बूँद भी पानी बरसता है। सावन में हजार बूँदे कम गिरती है, अर्थात् सूखा पड़ता है।
खन पुरवैया खन पछियाँव । खन खन बहै बबूरा बाव।
जौ बादर बादर माँ जाय। घाघ कहैं जल कहाँ अमाय ॥
यदि क्षण में पुरुवा-क्षण में पछिवाँ हवा बहे, क्षण में बवंडर उठे और बादल के ऊपर बादल दौड़े तो घाघ कहते हैं, खूब वर्षा होगी।
चैत मास दसमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ ।
चौमासे भर बादरा, भलीभाँति बरसाइ ॥
यदि चैत की दशमी को आकाश स्वच्छ हो तो वर्षाकाल में चौमासा भर अच्छी वर्षा होगी।
चैत पूर्णिमा होइ जो, सोम गुरौ बुधवार ।
घर घर होइ बधावड़ा, घर घर मंगलचार ॥
यदि चैत्र पूर्णिमा को सोमवार, बुध या गुरुवार पड़े तो घर घर आनन्द-मंगल की बधाई बजेगी और मंगलचार होगा।
चैत मास जो बीज बिजोवै । भरि बैसाखहि टेसू धोवै ॥
यदि चैत में बिजली चमक जाये तो वैशाख में इतनी वृष्टि होगी कि टेसू के फूल का रंग धुल जायेगा।
चढ़त जो बरसै चित्तरा, उतरत बरसै हस्त ।
कितनी राजा डाँड़ ले, हारे नाहिं गृहस्त ॥
यदि चित्रा नक्षत्र की चढ़ानी मैं और हस्त नक्षत्र की उतरानी में वर्षा हो तो राजा चाहे जितना कर ले, किसान उसे देने में हार नहीं मानेगा।
चित्रा बरसे तीनि जात है, उर्दी तिल्ल कपास।
चित्रा बरसे तीनि होत हैं, साली सक्कर मास ॥
चित्रा की वर्षा से उर्दी, तिल और कपास ये तीनों नष्ट हो जाते हैं किन्तु धान, ईख और गेहूँ की पैदावार बढ़ती है। किसान लोग यहाँ मास शब्द का अर्थ गेहूँ लगाते हैं।
चटका मघा पटकिगा ऊसर । दूध-भात में परिगा मूसर ।
मघा नक्षत्र में पानी न बरसने से ऊसर सूख जाता है जिससे मवेशियों के चरने का ठिकाना नहीं रह जाता और धान भी नहीं होता, इसलिये दूध-भात दोनों की तंगी पड़ जाती है।
चैत क पछिवाँ भादौं जला। भादौं पछिवाँ माघ क पाला ॥
चैत में पछिवाँ हवा चलने पर भादों में वर्षा अच्छी होती है और भादों में पछिवाँ हवा चलने पर माघ में पाला पड़ता है।
चमकै पच्छिम उत्तर ओर। तब पानो मानी है जोर ॥
यदि उत्तर-पश्चिम के कोन पर बिजली चमके तो समझ लो कि जोर की वर्षा होगी।
आदि न बरसे आर्द्रा, हस्त न बरसे निदान ।
कहै घाघ सुनु भड्डरी, भये किान पिसान ॥
यदि आर्द्रा नक्षत्र के प्रारम्भ में और हस्त के अन्त में पानी न बरसे तो घाघ कहते हैं कि हे भड्डरी, सुनो किसान बेचारे पिसान हो जायेंगे अर्थात् फसल अच्छी नहीं होगी।