परिचय
दिल्ली में ठोस कचरा प्रबंधन (Solid Waste Management SWM) की जिम्मेदारी मुख्यतः तीन शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) के पास है: दिल्ली नगर निगम (MCD), नई दिल्ली नगर निगम (NDMC), और दिल्ली छावनी बोर्ड (DCB)। हर दिन लगभग 11,342 टन ठोस कचरा दिल्ली में उत्पन्न होता है, जिसमें से 3,800 टन कचरा बिना संसाधित किए लैंडफिल में डाल दिया जाता है। इन लैंडफिल साइट्स पर 166 लाख टन का पुराना ‘लीगेसी वेस्ट’ जमा हो चुका है, जो प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहा है। दिल्ली की ठोस कचरा समस्या अब इतनी गंभीर हो चुकी है कि तत्काल समाधान की आवश्यकता है।
समस्या का विवरण
दिल्ली में हर दिन उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे में से लगभग 3,800 टन कचरा बिना किसी प्रसंस्करण के सीधे लैंडफिल साइट्स पर फेंक दिया जाता है। यह कचरा लंबे समय तक जमा होता रहता है और कई गंभीर समस्याओं का कारण बनता है:
वायु प्रदूषण: कचरे के सड़ने से मिथेन और अन्य विषैले गैसों का उत्सर्जन होता है, जो वातावरण में विषाक्तता फैलाते हैं। दिल्ली के गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट्स को मेथेन ‘सुपर एमिटर’ के रूप में चिह्नित किया गया है।
जल प्रदूषण: इन लैंडफिल साइट्स के आसपास के भूमिगत जल स्रोतों में टीडीएस स्तर सामान्य से बहुत अधिक पाया गया है, जिससे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव हो सकता है।
संक्रमण और बीमारियाँ: कचरे में जमा मच्छर और अन्य कीटों के कारण मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में कचरा निपटान के मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि एमसीडी में प्रति दिन 11,000 टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 65% कचरा संसाधित हो पाता है, जबकि NDMC और DCB के क्षेत्रों में 100% कचरे का प्रसंस्करण किया जा रहा है।
भविष्य के अनुमान
दिल्ली की जनसंख्या 2027 तक 3.4 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे कचरे का उत्पादन भी बढ़कर 20,400 TPD तक हो सकता है। भले ही दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कचरा प्रसंस्करण क्षमता को बढ़ाकर 15,923 TPD करने की योजना बना रहा है, फिर भी यह आवश्यकता के हिसाब से पर्याप्त नहीं है। इस परिस्थिति में, बिना प्रसंस्करण के छोड़े गए कचरे की मात्रा बढ़कर 5,000 TPD तक पहुँच सकती है।
प्रमुख समस्याएँ
1. कचरे का उचित पृथक्करण न होना: केवल 56% कचरे का स्रोत पर पृथक्करण हो पाता है, जिससे प्रसंस्करण में रुकावट आती है।
2. कचरा परिवहन में दक्षता की कमी: पुराने एवं अनुपयुक्त साधनों के कारण कचरे का परिवहन धीमा होता है।
3. सार्वजनिक जागरूकता की कमी: अधिकांश जनता को ठोस कचरा प्रबंधन के उपायों की जानकारी नहीं है।
4. स्वास्थ्य समस्याएँ: कचरे के निस्तारण से जुड़े कर्मचारी विषैले तत्वों के संपर्क में आते हैं।
5. पर्यावरण पर प्रभाव: बड़े पैमाने पर मिथेन उत्सर्जन और भूमिगत जल का प्रदूषण दिल्ली के पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं।
संभावित समाधान
1. स्रोत पर कचरे का पृथक्करण: जैविक और अजैविक कचरे को अलगअलग करना अनिवार्य किया जाए। बेंगलुरु और चेन्नई में वार्ड स्तर पर माइक्रोकम्पोस्टिंग केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिन्हें दिल्ली में भी लागू किया जा सकता है।
2. कचरे का पुनः प्रयोग और रीसाइक्लिंग: प्लास्टिक, धातु, और अन्य अजैविक कचरे को पुनः प्रयोग के लिए संसाधित किया जा सकता है।
3. स्थानीय कम्पोस्टिंग: दिल्ली के 550 घरों में पहले से ही होम कम्पोस्टिंग की प्रक्रिया चल रही है, इसे और अधिक घरों में लागू किया जाना चाहिए।
4. जन जागरूकता कार्यक्रम: सामुदायिक कार्यशालाएँ और संगोष्ठियाँ आयोजित करके लोगों को कचरे के उचित निपटान के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।
5. सख्त नियम और जुर्माने: स्रोत पर अधिक मात्रा में कचरा उत्पन्न करने वालों पर जुर्माना लगाया जाए और कम कचरा उत्पन्न करने वालों को प्रोत्साहन दिया जाए।
6. वेस्टटूएनर्जी प्लांट: जैविक कचरे को ऊर्जा के रूप में बदलने के लिए प्लांट स्थापित किए जा सकते हैं, जिससे ऊर्जा का उत्पादन और कचरे का निस्तारण साथसाथ हो सके।
केस स्टडी: इंदौर और भोपाल
इंदौर का मॉडल
इंदौर ने ठोस कचरा प्रबंधन में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। यहाँ 90% कचरे का स्रोत पर पृथक्करण किया जाता है और 95% कचरे को पुनः उपयोग किया जाता है। इंदौर में 600 से अधिक जीपीएसइनेबल्ड वाहन कचरे को एकत्र करने और स्थानांतरित करने में लगे हैं। इसके साथ ही नगर निगम द्वारा नागरिकों को नियमित रूप से जागरूक किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य समस्याओं में 60% तक की कमी देखी गई है।
इंदौर का मॉडल विशेष रूप से इन पहलुओं पर आधारित है:
- घरघर कचरा संग्रहण
- कचरे का पृथक्करण और प्रसंस्करण
- कठोर निगरानी और प्रवर्तन
- भोपाल का मॉडल
भोपाल ने बायोमाइनिंग और बायोकैपिंग के जरिये बानपुर खंती के 37 एकड़ लैंडफिल साइट को सफलतापूर्वक हराभरा क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया है। बायोमाइनिंग से न केवल 1.8 लाख टन कचरे का पुनर्चक्रण किया गया, बल्कि इससे 85 करोड़ रुपये की कमाई भी हुई। इसके अलावा, भोपाल में जीपीएस आधारित ट्रैकिंग प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है, जिससे कचरा संग्रहण और प्रसंस्करण की निगरानी हो सके।
निष्कर्ष
दिल्ली की ठोस कचरा समस्या एक गंभीर मुद्दा है, जिसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इंदौर और भोपाल जैसे शहरों के ठोस कचरा प्रबंधन मॉडल को लागू करके दिल्ली भी अपनी कचरा समस्या को एक स्थायी समाधान की ओर ले जा सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि नागरिकों की भागीदारी बढ़ाई जाए, कचरे का पृथक्करण और पुनर्चक्रण प्रणाली मजबूत की जाए, और शासन द्वारा कठोरता से नियमों का अनुपालन करवाया जाए।