थर्मली-इफिशिएंट रूफ : शहरी भारत के लिए जरूरी समाधान

थर्मली-इफिशिएंट रूफ शहरी भारत के लिए जरूरी समाधान

धरती का बढ़ता तापमान आज पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। भारत सहित दुनिया के विकासशील देशों के लिए यह समस्या और गंभीर है, क्योंकि तेजी से बढ़ते शहरीकरण और अनियोजित निर्माण ने शहरों को गर्मी के केंद्र में बदल दिया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की एक दशक-लंबी पड़ताल बताती है कि भारत के नौ बड़े शहरों में से छह शहरों की 80 प्रतिशत से अधिक भूमि हीट-स्ट्रेस में है। इसका एक बड़ा कारण हमारी छतें है। 

अधिकांश भारतीय घरों की छतें कंक्रीट, ईंट, स्लेट, पत्थर या धातु की चादरों से बनी होती हैं। ये सामग्री सूर्य की किरणों को सोख लेती हैं और धीरे-धीरे गर्मी को घर के भीतर और बाहर दोनों ओर छोड़ती हैं। इसका नतीजा होता है, भीतर तपता हुआ घर और बाहर बढ़ती गर्मी की वजह से अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट। ऐसी छतों के कारण एयर कंडीशनर के उपयोग में भी भारी बढ़ोत्तरी हुई है। अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या हम अपनी छतों को ऐसा बना सकते हैं जो गर्मी को कम करे? इसका उत्तर है हाँ, ‘थर्मली-इफिशिएंट रूफ’ ऐसी ही छतें हैं ये गर्मी को रोकती है, परावर्तित करती हैं या हरित परत से ठंडक पहुंचाती हैं। 

थर्मली-इफिशिएंट रूफ क्यों जरूरी हैं?

एक समय था जब भवन निर्माण में अधिकतर स्थानीय वस्तुओं का उपयोग होता था। इसके अलावा अलग अलग जलवायु के अनुसार तथा स्थानीय जरूरतों के अनुसार भवनों की डिजाइन भी अलग अलग होती थी। परंतु शहरी करण एवं वैश्वीकरण ने तथा पश्चिमी देशों के अंधानुकरण ने भवन निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामाग्री तथा भवनों की डिजाइन में एकरूपता ला दिया। एक समय था जब हम किसी शहर के घरों की बनावट को देखकर शहर पहचान सकते थे लेकिन अब अधिकतर शहर एक जैसे दिखने लगे हैं। 

भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार, शहरी घरों में 52 प्रतिशत से अधिक छतें कंक्रीट की हैं, 16 प्रतिशत धातु या एस्बेस्टस की, और बाकी ईंट-पत्थर की। ये सभी गर्मी को सोखने वाली सामग्री हैं। गर्मी का यह असर केवल असुविधा नहीं, बल्कि गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय संकट है। इनडोर हीट स्ट्रेस के कारण बिना एसी वाले घरों में रहना असंभव हो जाता है। इसके साथ ही, कूलर और एसी की मांग बढ़ती है, जिससे बिजली की खपत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ते हैं। यह स्थिति अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट को भी बढ़ाती है, जिससे शहरों में तापमान गांवों की तुलना में अधिक हो जाता है।

थर्मली-इफिशिएंट रूफ क्या हैं 

थर्मली-इफिशिएंट रूफ एक ऐसी छत है जो हमारे घर को गर्मी से बचाती है। इनका उद्देश्य है गर्मी को कम से कम घर में प्रवेश करने देना। यह मुख्यतः तीन तरीकों से संभव है। पहला तरीका है कूल रूफ, जो सूर्य की किरणों को अधिकतम परावर्तित करती है। इसमें हल्के रंग की टाइल्स, रिफ्लेक्टिव कोटिंग्स या विशेष पेंट का इस्तेमाल होता है। इससे छत की सतह का तापमान 15 से 20 डिग्री तक कम किया जा सकता है। अहमदाबाद में लो-इन्कम बस्तियों में 3,000 घरों पर रिफ्लेक्टिव पेंट लगाने से तापमान 2 से 4 डिग्री घटा है। 

दूसरा तरीका है इंसुलेटेड रूफ। इसमें छत के ऊपर या नीचे इंसुलेटिंग सामग्री लगाई जाती है, जैसे XPS शीट, ग्लास वूल, थर्मोक्रीट या मिट्टी-चूने का लेप। ये गर्मी के प्रवाह को धीमा करती हैं और इनडोर तापमान को स्थिर बनाए रखती हैं। तमिलनाडु के एक अध्ययन में मिनरल वूल इंसुलेशन से इनडोर और आउटडोर तापमान में 7 से 9 डिग्री का फर्क पाया गया।

तीसरा तरीका है ग्रीन रूफ। इसमें छत पर पौधे उगाए जाते हैं। यह न केवल इंसुलेशन देता है बल्कि इवैपो-ट्रांसपिरेशन से हवा को भी ठंडा करता है। ग्रीन रूफ दो प्रकार के होते हैं—इंटेंसिव, जिसमें बड़े पौधे और लॉन होते हैं, और एक्सटेंसिव, जिसमें पतली मिट्टी की परत और कम देखभाल वाले पौधे होते हैं। पुडुचेरी के ओवॉइड स्टूडियो में ग्रीन रूफ ने जीआई शीट की छत का तापमान 20 डिग्री तक कम कर दिया।

परंपरागत तकनीकें भी कारगर

भारत के अलग अलग हिस्सों में पुराने समय से छतों को ठंडा रखने के उपाय अपनाए जाते रहे हैं। हमारे समाज ने भवन निर्माण की सामग्री में हमेशा ही स्थानीयता को प्राथमिकता दी। मिट्टी का फुस्का यानी गीली मिट्टी, भूसा और गोबर का लेप जैसी चीजें नेचुरली हीट इंसुलेशन का काम करती है। इसके अलावा, छत पर उल्टे मिट्टी के घड़े रखकर हवा की परत बनाई जाती थी, जो गर्मी को कम करने का पारंपरिक तरीका है। ये तकनीकें आज भी कम लागत वाले प्रभावी विकल्प हो सकती हैं। जरूरत इस बात की है कि पारंपरिक ज्ञान का उपयोग आधुनिक संदर्भों के अनुसार किया जाए। 

थर्मली-इफिशिएंट रूफ की नीतिगत पहल और नियम

भारत में थर्मली-इफिशिएंट रूफ को बढ़ावा देने के लिए अब ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। बढ़ते शहरी तापमान, हीटवेव और ऊर्जा खपत के संकट को देखते हुए, सरकार ने भवन निर्माण नियमों में बड़े बदलाव किए हैं। एनर्जी कंजर्वेशन बिल्डिंग कोड (ECSBC) 2024 के तहत यह स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि जो छतें सौर ऊर्जा संयंत्र या अन्य यूटिलिटीज से ढकी नहीं हैं, उन्हें अनिवार्य रूप से या तो कूल रूफ या ग्रीन रूफ बनाया जाए। इसके लिए न्यूनतम तकनीकी मानक भी तय किए गए हैं, जैसे – कूल रूफ की सतह का सोलर रिफ्लेक्टेंस कम से कम 0.70 और थर्मल एमिटेंस 0.75 होनी चाहिए। वहीं ग्रीन रूफ के लिए 50 मिमी से अधिक ऊंचाई वाले पौधों की परत आवश्यक है।

आवासीय भवनों के लिए भी दिशा-निर्देश तय किए गए हैं। ईको-निवास संहिता (ENS) 2024 में स्पष्ट सिफारिश है कि सभी नए मकानों में छत की थर्मल परफॉर्मेंस सुनिश्चित करने के लिए कूल या ग्रीन रूफ जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाए। इस संहिता के अनुसार, आवासीय भवनों की छतों का अधिकतम U-वैल्यू 1.2 W/m²•K होनी चाहिए। यह प्रावधान ऊर्जा खपत कम करने और थर्मल कम्फर्ट बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, कई शहरों ने भी अपने हीट एक्शन प्लान में इन समाधानों को शामिल किया है। अहमदाबाद और दिल्ली इसके प्रमुख उदाहरण हैं। अहमदाबाद, जिसने भारत में सबसे पहले हीट एक्शन प्लान लागू किया था, वहां लो-इन्कम बस्तियों में हजारों मकानों की छतों पर रिफ्लेक्टिव पेंट लगाया गया है, जिससे गर्मी में राहत मिली है। दिल्ली के हीट एक्शन प्लान में भी कूल रूफ को प्राथमिकता दी गई है और भविष्य में इसे बड़े पैमाने पर लागू करने की योजना है।

लाभ सिर्फ तापमान तक सीमित नहीं

थर्मली-इफिशिएंट रूफ का फायदा केवल तापमान घटाने तक सीमित नहीं है। इससे ऊर्जा की खपत में भारी कमी आती है। ऐसे समय में जब प्रति व्यक्ति बिजली की मांग अनवरत रूप से बढ़ती ही जा रही है, थर्मली-इफिशिएंट रूफ एक बेहतर समाधान हो सकता है। एक अध्ययन के अनुसार कूल रूफ से ऊर्जा खपत 15 से 35 प्रतिशत तक घटती है। हैदराबाद पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार प्रति वर्गमीटर छत से सालाना 11 से 12 किलो CO₂ की कमी हो सकती है। ग्रीन रूफ शहरी पारिस्थितिकी में सुधार करती है, प्रदूषण कम करती है और वर्षा जल प्रबंधन में मददगार होती है।

चुनौतियां और समाधान

सबसे बड़ी चुनौती है जागरूकता की कमी। अधिकांश लोग इन तकनीकों से अनजान हैं। इसका समाधान है व्यापक जनसंपर्क अभियान, प्रशिक्षण और डेमो प्रोजेक्ट्स। लागत भी एक मुद्दा है, लेकिन यह लागत 3 से 5 साल में ऊर्जा बचत से वसूल हो जाती है। ग्रीन रूफ के लिए ढांचागत मजबूती आवश्यक है, जिसे योजना बनाते समय ध्यान में रखना होगा।

टिकाऊ भविष्य की ओर कदम

भारत में बढ़ती हीट वेव, बिजली संकट और स्वास्थ्य जोखिम को देखते हुए थर्मली-इफिशिएंट रूफ अब विकल्प नहीं, आवश्यकता हैं। यह न केवल घरों को आरामदायक बनाएंगी, बल्कि ऊर्जा संकट, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी चुनौतियों का भी समाधान देंगी। आज जरूरत है कि सरकारें इन उपायों को नीति और योजना में प्राथमिकता दें, बिल्डिंग बायलॉज़ में शामिल करें और जन-जागरूकता के माध्यम से लोगों को प्रेरित करें। यदि आने वाले 10 वर्षों में शहरी भारत की आधी छतें थर्मली-इफिशिएंट हो जाएं, तो न केवल शहरों का तापमान घटेगा, बल्कि लाखों लोगों के जीवन में ठंडक और सुकून लौट आएगा।

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